World Wetland Day 2021:digi desk/BHN/ कहते हैं तालों में ताल भोपाल ताल, बाकी सब तलैया। लगभग एक हजार साल पुराने इस एशिया के सबसे बड़े मानवनिर्मित तालाब के बारे में तो खूब कहानियां मिलती है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह विशालकाय तालाब दुनिया के सबसे छोटे पौधे को भी जीवन देता है, जो अपने आप में खास है। यही नहीं, इस तालाब में ऐसे कई मांसाहारी पौधे पनपते हैं, जो उन कीड़ों और मच्छरों को खाते हैं जो इंसानों में बीमारी फैला सकते हैं। इस तालाब को अंतरराष्ट्रीय महत्व का मानते हुए 2002 में ‘रामसर साइट’ का दर्जा दिया गया था। यह मध्यप्रदेश की एक मात्र ‘रामसर साइट’ है। रामसर साइट का दर्जा नमभूमि के कैचमेंट एरिया के संरक्षण के लिए दिया जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक करीब 32 वर्गकिमी क्षेत्र में यह तालाब फैला है और इसका 26 वर्ग किमी एरिया नमभूमि या दलदलीय है। यह तालाब हजारों प्रवासी पक्षियों को संरक्षण देता है।
0.1 से 0.2 मिमी व्यास वाला पौधा
मध्य भारत की नम भूमि (वेटलैंड) पर कई किताबें लिख चुके पर्यावरणविद अशोक बिसवाल बताते हैं कि इस तालाब में दुनिया का सबसे छोटा पौधा वोल्फिया ग्लोबोसा पाया जाता है। दुनियाभर में यह पौधा अब खतरे में है, क्योंकि हर जगह इंसान का दखल बढ़ गया है। इसका व्यास 0.1 से 0.2 मिलीमीटर होता है, लेकिन पर्यावरण के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है। बिसवाल के मुताबिक यह पौधा पानी में मौजूद विषैले तत्व को खत्म करता है, और पानी स्वच्छ बनाता है।
मांसाहारी पौधे, जिनके फूल और जड़ें कीड़ों को खाते हैं
जी, हां। पौधे भी मांसाहारी होते हैं। इस तालाब में भी 3 तरह के मांसाहारी पौधे पाए जाते हैं। यह पौधे भी अब दुर्लभ हो गए हैं और खतरे में हैं। बिसवाल के मुताबिक इस तालाब में यूट्रीक्यूलेरिया ऑरिया, यूट्रीक्यूलेरिया स्टेलैरिस और द्रोसेरा इंडिका नाम के पौधे मौजूद हैं, ऐसे मच्छरों को खाते हैं, जो इंसानों में कई तरह की बीमारी फैला सकते हैं। खास बात यह है कि इनके सुंदर दिखने वाले फूल और जड़ें ही इन कीड़ों को अपना शिकार बनाते हैं।
रामसर साइट का महत्व
बरकतउल्ला विवि के प्रोफेसर विपिन व्यास के मुताबिक रामसर साइट का आशय है कि यह जलस्रोत अंतरराष्ट्रीय महत्व का है। 1971 में इरान के रामसर शहर में एक सम्मेलन हुआ था, जहां विश्व की ऐसी सभी नमभूमि को संरक्षित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के साथ कई देश की सरकारों ने एक समझौते पर दस्तखत किए थे। प्रोफेसर व्यास के मुताबिक मप्र में ऐसी और भी जल संरचनाएं हैं, जिनकी नमभूमि को यह दर्जा दिया जा सकता है। रामसर साइट का दर्जा उन जल संरचनाओं को दिया जाता है, जिनका पर्यावरण के लिहाज से अंतरराष्ट्रीय महत्व है। रामसर साइट का दर्जा देने के लिए जलीय निकायों को 9 मानकों पर परखा जाता है, जिसमें मुख्य रूप से यह देखा जाता है कि जल संरचना पौधों और जीव-जंतुओं की स्थानीय प्रजातियों को किस तरह संरक्षण दे सकता है। इसके साथ ही इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी देखा जाता है। साथ ही लगभग 20 हजार प्रवासी पक्षियों को संरक्षण देने की क्षमता वाली जल संरचनाओं को इसमें शामिल किया जाता है।