Sankashti Chaturthi 2021:digi desk/BHN/ । संकष्टी चतुर्थी का व्रत माघ माह की कृष्णपक्ष 31 जनवरी को रखा जाएगा। चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 31 जनवरी रात 8:24 बजे से होगा और 1 फरवरी शाम 6:24 बजे तक रहेगा। चौथ के दिन चंद्रोदय समय रात 8:40 बजे का होगा। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि इस व्रत को रखने से संतान दीर्घायु होती है। चतुर्थी के देवता शिवपुत्र गणेश को माना जाता है। इस तिथि में भगवान गणेश के पूजन से सभी विघ्नों का नाश हो जाता है। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि संकष्टी चौथ के दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही यह व्रत पूरा माना जाता है। इस दिन को संकष्टी चतुर्थी, सकट चौथ, वक्रतुण्डी चतुर्थी, माही चौथ या तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता हैं।
संकष्टी चतुर्थी का मतलब संकट को हरने वाली चतुर्थी माना जाता है। संतान को लंबी उम्र की प्राप्ति हो, साथ ही साथ वे निरोग जीवन व्यतित करें यही कामना से व्रत किया जाता है। यही नहीं इस व्रत को करने वालों के ग्रह-नक्षत्र मजबूत स्थिति में बने रहते है। इस व्रत को करके आप अपने कुंडली में अशुभ प्रभावों को कम कर सकते हैं। जिन जातकों का कुंडली मे केतु ग्रह खराब है, उन्हें इस व्रत को करना चाहिए क्योंकि इस व्रत को करने से केतु के बुरे प्रभाव को कम किया जा सकता है।
इस व्रत से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है और मांगलिक कार्य भी होते हैं। संकष्टी के दिन गणपति की पूजा करने से घर से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं और शांति बनी रहती है। ऐसा कहा जाता है कि गणेश जी घर में आ रही सारी विपदाओं को दूर करते हैं और व्यक्ति की मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।
सुबह जल्दी उठें, स्नान करके, साफ कपड़े पहनें। भगवान गणेश की मूर्ति को पवित्र गंगा जल से स्नान करावाएं, फिर भगवान गणेश की पूजा करें। सूर्यास्त के बाद फिर से स्नान कर लें या गंगा जल से छिड़काव करके, स्वच्छ वस्त्र पहने। कलश में जल भरकर गणेश जी की मूर्ति के पास रख दें। उन्हें धूप-दीप, नैवेद्य, तिल, लड्डू, शकरकंद, अमरूद, गुड़ आदि चढ़ाएं।
श्रीगणेश को दूर्वा अर्पण करने का मंत्र ‘श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि।’
पूजन के समय गणेश मंत्र का जप करें। गणेश मंत्र का जप करते हुए 21 दूर्वा गणेश जी को अर्पित करनी चाहिए। साथ ही भगवान गणेश को बूंदी के लड्डूओं का भोग लगाना चाहिए। रात में चंद्र दर्शन के बाद इस व्रत को खोला जाता है। रात्रि में चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। चंद्रमा को शहद, रोली, चंदन मिश्रित दूध से अर्घ्य देना चाहिए।