जयपुर.
पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए इस बार राजधानी जयपुर में करीब पांच सौ स्थानों पर गाय के गोबर से बनी लकड़ी से होलिका दहन किया जाएगा। साथ ही दो सौ टन गौ काष्ठ गुजरात भेजा गया है। उत्तरप्रदेश और चेन्नई से भी गौ काष्ठ की मांग की गई है।
अखिल भारतीय गौशाला सहयोग परिषद के अंतरराष्ट्रीय संयोजक एवं भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि सात वर्ष पहले श्री पिंजरापोल गौशाला में शिवरतन चितलांगिया (महामंत्री) एवं राधेश्याम पाठक के नेतृत्व में गाय के गोबर से लकड़ी बनाने का काम शुरू किया गया था।
इस बार पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर जयपुर में पांच सौ जगहों पर होलिका दहन के लिए गौ काष्ठ की बुकिंग हो चुकी है। वहीं उत्तरप्रदेश और तमिलनाडु के चेन्नई से भी गौ काष्ठ की मांग की गई है। यहां से दस राज्यों में गौ काष्ठ भेजा जाएगा और इसके प्रति जागरूकता फैलाने का काम किया जाएगा।
प्रदेश से भेजे जाने वाले गौ काष्ठ के लिए सौ से अधिक स्वयं सहायता समूहों ने 2000 टन गोबर की लकड़ी बनाई है और लगभग 70 प्रतिशत की खपत हो चुकी है। उन्होंने कहा कि गौ काष्ठ की मांग लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन जब राज्य सरकारें इसके लिए आगे आएंगी तो इसकी मांग और बढ़ेगी। साथ ही पर्यावरण और गौ संरक्षण को और मजबूती मिलेगी।
बड़े पैमाने पर गोकाष्ठ की बुकिंग : जयपुर में पांच सौ जगह पर होलिका दहन के लिए गोकाष्ठ के लिए बुकिंग हो चुकी है, वहीं, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु के चेन्नई से भी मांग की गई है. दस राज्यों में गोकाष्ठ भेजा जाएगा और इसके प्रति जागरुकता फैलाने का काम किया जाएगा. सौ से अधिक स्वयं सहायता समूह ने कम से कम 2000 टन गोबर की लकड़ी बनाई है और करीब 70 फीसदी की खपत हो चुकी है. गोकाष्ठ की मांग बढ़ती जा रही है, लेकिन जब सरकारें इसके प्रति आगे आएगी, तो इसकी मांग और बढ़ेगी. वहीं, पर्यावरण और गाय संरक्षण को और मजबूती मिलेगी.
सरकार भी जुटेगी जागरूकता की मुहिम में : राजस्थान सरकार के मंत्री जोराराम कुमावत ने बताया कि गाय के गोबर से बने उत्पाद निश्चित तौर पर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बेहतर पहल कहे जाएंगे. उन्होंने कहा कि सरकार भी इस दिशा में काम करना चाहती है, जिसके लिए अधिकारियों से बात कर एक प्लान तैयार किया जाएगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग गाय के गोबर से बनी लकड़ी का इस्तेमाल कर सके और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अपनी भागीदारी निभाएं.