सोनीपत । आधुनिक भागदौड़ वाली जिंदगी में लोग जहां अपने मूल स्थान से कटते जा रहे हैं वहीं केरल के एक कुलपति ने करीब 15 पीढ़ियों के पहले वाले अपने मूल गांव को खोज निकालने का अनोखा काम किया है। केरल के पलक्कड़ निवासी दीनबंधू छोटूराम यूनिवर्सिटी साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीक्रस्ट) के कुलपति डॉ. राजेंद्र कुमार अनायत ने 15 पीढ़ियों के बाद अपने पुरखों की जन्मस्थली खोज निकाली है। इस खोज की कहानी भी बड़ी रोचक है। कुलपति को पुरखों के जन्मस्थान का पता अपने उपनाम (सरनेम) के कारण ही चल पाया है। कुलपति के पूर्वज सोनीपत जिले के गोहाना के गांव अनायत से ही केरल में जाकर बसे थे। ग्रामीणों का कहना है कि कुलपति के पूर्वज करीब ढाई सौ साल पहले गांव से जाकर केरल में बस गए होंगे।
डॉ. राजेंद्र कुमार अनायत केरल के पलक्कड़ जिले के रहने वाले हैं। वीसी ने वर्षों पहले पिता गोपाल अनायत वासुदेवन और दादा वासुदेवन भट्टाचारी अनायत से कई बार अपने सरनेम का अर्थ पूछा था, लेकिन वे बता नहीं पाए। यहां एक दिन उनके पास अनायत गांव के महेंद्र सिह शास्त्री, डॉ. अजीत सिह व सरपंच के पति मुकेश मिलने पहुंचे और बताया कि वे भी अनायत हैं। इस पर कुलपति की जिज्ञासा हुई कि ये अनायत कौन होते हैं। महेंद्र सिह ने उन्हें बताया कि उनके गांव का नाम अनायत है और शायद आपके पूर्वज भी इसी गांव से गए होंगे। कई मुलाकातों के बाद हरिद्वार जाकर अनायत गांव के लोगों की वंशावली देखी गई। इससे कुलपति को 15 पीढ़ी पहले अपने पूर्वज श्रीकृष्ण अच्युत अनायत का उल्लेख मिला। सबसे पहले उन्होंने अनायत सरनेम का प्रयोग किया था। ग्रामीणों ने दावा किया कि करीब ढाई सौ साल पहले उनके पूर्वज गांव से केरल गए होंगे।
यह है गांव का इतिहास
अनायत गांव की एक शानदार विरासत रही है। ग्रामीणों ने बताया कि 100 साल में गांव में कोई हत्या या दुष्कर्म की वारदात नहीं हुई। गांव का कोई व्यक्ति किसी मामले में जेल में नहीं है। लोग पुलिस थाने नहीं जाते। छोटे-बड़े मामले गांव में ही निपटा लिए जाते हैं। लोगों में देश सेवा का जज्बा कूट-कूटकर भरा है। गांव से करीब 100 लोग सेना में हैं। लिखने-पढ़ने में गांव का नाम अनायत है, जबकि बोलचाल में इसे न्यात गांव कहा जाता है।