पिछले महीने जारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 3421 तेंदुए
Leopard counting m.p: digi desk/BHN/मध्य प्रदेश बाघ के बाद तेंदुओं की संख्या के मामले में भी देश का सिरमौर है, पर यहां दोनों वन्यजीवों की मौत के आंकड़े भी सबसे ज्यादा हैं। मध्य प्रदेश में पिछले एक साल में 48 तेंदुओं की मौत हुई है। इसमें दुखद यह है कि 17 तेंदुओं का शिकार हुआ है। उन्हें जहर देकर या करंट और फंदा लगाकर मारा गया है। इनमें से ज्यादातर मामलों में वन विभाग के हाथ तेंदुओं के सड़े-गले शव ही लगे हैं। हालांकि आरोपितों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। तेंदुओं की गिनती के पिछले महीने जारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 3421 तेंदुए हैं और यह संख्या देश में सर्वाधिक है।
तेंदुओं की संख्या के मामले में मध्य प्रदेश हमेशा से अव्वल रहा है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने वर्ष 2014 में पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर तेंदुओं की गिनती शुरू की। पहली बार में प्रदेश में 1517 तेंदुए पाए गए थे, जो देश में सर्वाधिक थे। दूसरी बार की गिनती दिसंबर 2017 से मार्च 2018 के बीच बाघ आकलन के दौरान हुई है। इस गणना में प्रदेश में 3421 तेंदुए पाए गए हैं। खुशी की बात यह है कि महज चार साल में प्रदेश में 1904 तेंदुए बढ़ गए। तेंदुओं की आबादी ने 16 उन जिलों में भी आमद दर्ज करा दी, जिनमें कई दशक से तेंदुए नहीं देखे गए थे, पर दुखद पहलू उनकी अनदेखी है। बाघ की मौत पर जिस तरह की सख्ती की जाती है, वास्तव में तेंदुओं के मामले में ऐसी सख्ती और सतर्कता नहीं दिखाई दे रही है।
ग्रामीणों ने पीट-पीटकर मार डाला
तेंदुओं की बाघ जैसी कद्र नहीं है इसलिए उनकी मौत को भी कोई गंभीरता से नहीं लेता है। जबकि यह भी अनुसूची-1 का वन्यप्राणी है। अनुसूची-1 में उन प्रजातियों को रखा जाता है, जो खत्म होने की कगार पर हैं। शायद यही कारण है कि प्रदेश में पिछले साल एक तेंदुए को ग्रामीणों ने डंडों से पीट-पीटकर मार डाला।
कुएं में गिरने से मौत : प्रदेश में छह मामले ऐसे भी हैं, जिनमें तेंदुओं की मौत सड़क और ट्रेन दुर्घटना के अलावा कुएं में गिरने और चैनलिंग जाली में फंसने से हुई है। इसमें अलावा बाघ के हमले, आपसी लड़ाई और प्राकृतिक रूप से तेंदुओं की मौत हुई है।
आठ मामलों में विभाग को मौत का कारण तक पता नहीं चला
चौंकाने वाली बात यह है कि बाघों के संरक्षण को लेकर मुस्तैद वन विभाग की चाक-चौबंद निगरानी के बीच 17 तेंदुओं का शिकार हो गया। ये घटनाएं सामान्य वनमंडल के अलावा संरक्षित क्षेत्रों में भी हुई हैं। इनमें फंदे से चार, करंट से चार और जहर से दो तेंदुओं की मौत हुई है। जबकि आठ मामलों में विभाग को अब तक उनकी मौत का कारण नहीं पता है। सेंधवा एवं उत्तर बालाघाट वन क्षेत्रों में ऐसे भी दो मामले सामने आए हैं, जिनमें आरोपितों से तेंदुओं के अंग जब्त किए गए हैं। इनमें से एक का शिकार गोली मारकर किया गया था।