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Rohini Vrat: जानिए किस दिन है रोहिणी व्रत, इसका महत्व, मुहूर्त, कथा और पूजन विधि

Rohini Vrat Dec 2020:digi desk/BHN/ रोहिणी व्रत खासतौर पर जैन धर्म की महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र के लिए किया जाता है। यह व्रत वर्ष में 12 बार रोहिणी नक्षत्र में किया जाता है। वर्ष 2020 को अंतिम व्रत 28 दिसंबर को है। रोहिणी नक्षत्र 27 दिसंबर को दोपहर 1 बजकर 20 मिनिट से 28 दिंसबर का दोपहर 3.40 मिनिट तक रहेगा। माना जाता है कि यह व्रत सभी प्रकार के दुख और परेशानियों को दूर करता है। जैन समाज के पं. विनय झांझरी बताते है कि इस व्रत में भगवान भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है। इस व्रत को तीन, पांच या सात वर्षों तक लगातार किया जाता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर को स्वच्छ करे। इसके बाद गंगाजल मिश्रित पानी से स्नान के बाद ध्यान कर व्रत को संकल्प ले। इसके बाद सूर्य भगवान को जल का अर्घ्य दे। जैन धर्म में रात्रि के समय भोजन नहीं किया जाता है इसलिए सूर्यास्त से पहले फलाहार का सेवन करें।

जानिए क्यों मनाया जाता है रोहिणी व्रत

यह व्रत महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र के लिए किया जाता है। यह व्रत रखने से मां रोहिणी व्रत रखने वालों लोगों के घर से कंगाली को दूर भगाकर सुख व समृद्धि प्रदान करती है। व्रत की पूजा के द्वारा उनसे गलतियों को क्षमा करने की प्रार्थना करने से जीवन में आए सभी कष्ट दूर होते है।

क्या कहती है रोहणी व्रत की कथा

प्रचीन समय में वस्तुपाल नाम का राजा था उसका धनमित्र नामक एक मित्र था। उस धनमित्र की दुर्गंधा कन्या उत्पन्ना हुई। धनमित्र को हमेशा चिंता रहती थी कि इस कन्या का विवाह कैसे होगा। इसके चलते धनमित्र ने धन का लोभ देकर अपने मित्र के पुत्र श्रीषेन से उसका विवाह कर दिया। इसके बाद वह दुगंध से परेशान होकर एक ही मास में दुर्गंधा को छोड़कर चला गया। इसी समय अमृतसेन मुनिराज विहार करते हुए नगर में आए तो धनमित्र ने अपनी पुत्री दुर्गंधा के दुखों को दूर करने के लिए उपाय पूछा। इस पर उन्होंने बताया कि गिरनार पर्व के निकट एक नगर में राजा भूपाल राज्य करते थे। उनकी सिंधुमती नाम की रानी थी। एक दिन राजा, रानी सहित वनक्रीडा के लिए चले तब मार्ग में मुनिराज को देखकर राजा ने रानी से घर जाकर आहार की व्यवस्था करने को कहा। राजा की आज्ञा से रानी चली तो गई परंतु क्रोधित होकर उसने मुनिराज को कडवी तुम्बी का आहार दिया। इससे मुनिराज को अत्यंत परेशानी हुए और उन्होंने प्राण त्याग दिए। इस बात का पता जब राजा को चला तो उन्होंने रानी नगर से निकाल दिया। इस पाप से रानी को शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया। दुख भोगने के बाद रानी का जन्म तुम्हारे घर पर हुआ।दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक रोहणी व्रत धारण किया। इससे उन्हें दुखों से मुक्ति मिली।

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