जयपुर.
जहां हाथ डालो वहीं घोटाला…जाने क्या दिख जाए वाले राजस्थान के लिए अब यह नया स्लोगन बनता नजर आ रहा है। वित्त विभाग के आला अफसरों ने प्रदेश को कहीं का नहीं छोड़ा। एनपीएस के एक हजार करोड़ को गोलमाल कर चुके वित्त विभाग के अफसरों ने कर्मचारी कल्याण कोष पर भी डाका डाल दिया। जीपीएफ सेटलमेंट फंड में जमा तीन हजार करोड़ रुपये की जो राशि कर्मचारी कल्याण कोष में जमा करवानी थी, उसे रेवेन्यू घाटे को कम करने में लगा दिया।
सीएजी की ओर से राज्य सरकार को ऐसा करने से मना भी किया गया, लेकिन अफसर हर साल नया झूठ गढ़ कर पैसा ठिकाने लगा गए। पिछली गहलोत सरकार में वित्त वर्ष 2020-21 में तीन हजार करोड़ रुपये के कर्मचारी कल्याण कोष की घोषणा की गई थी। इस घोषणा की क्रियान्विति के लिए 10 जून 2021 व 14 जून 2021 को प्रमुख वित्त सचिव अखिल अरोड़ा की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह तय किया गया कि जीपीएफ के खातों में जो अनक्लेम्ड पैसा है। खाता धारकों के क्लेम मांगे जाने तक कर्मचारी कल्याण कोष में रखा जाएगा। जबकि यह राशि कर्मचारी कल्याण कोष में जमा करवाने की जगह वित्त विभाग ने राजस्व घाटे की पूर्ति में खर्च दिया। सीएजी ने इसे लेकर कई बार राज्य सरकार को पत्र भी लिखा। अक्तूबर 2023 तक की स्थिति में कर्मचारी कल्याण कोष में एक रुपया भी जमा नहीं हुआ था।
ऐसे माना था मिसलेनियस फंड
इसमें एक अप्रैल 2020 की स्थिति में जीपीएफ खातों में कुल तीन लाख 91 हजार कर्मचारियों के 34,262 करोड़ रुपये जमा थे। जबकि इसी अवधि में एसआईपीएफ पोर्टल पर राशि 31 हजार 279 करोड़ थी। यानी रिकंसिलिएशन में 2984 करोड़ रुपये का फर्क था, जिसे सरकार ने अनक्लेम्ड बता दिया। जबकि कई बार कटौती होने के बाद कर्मचारियों के एकाउंट में इसकी एंट्री नहीं होती। कर्मचारियों के सेवा काल में जीपीएफ पर लोन लेने या उनकी सेवानिवृत्ति के समय उनके खातों की जांच कर राशि समायोजित की जाती है
नियम ये: पैसा पब्लिक अकाउंट में रखा जाता
वित्त (मार्गेपाय) विभाग के अफसरों ने इसे अनक्लेम्ड बताते हुए पहले रेवेन्यू घाटे को कम करने में काम लिया। फिर फ्री स्कीमों को चलाने में। नियमानुसार यह पैसा यदि अनक्लेम्ड माना भी जाए तो भी इसे पहले पब्लिक अकाउंट में डिपोजिट किया जाना चाहिए था और कुछ समय अवधि तक इसे इसी खाते में सुरक्षित रखा जाना चाहिए था। इसके बाद ही यह रकम अनक्लेम्ड मानी जाती। सीएजी के पास जब इसकी जानकारी आई तो इस पर आपत्ति जताते हुए वित्त विभाग को दो बार पत्र भी लिखे। सीएजी ने इसी साल विधानसभा में टेबल की गई अपनी रिपोर्ट में इसका जिक्र भी किया।
कर्मचारियों की कटौती का पैसा है ये
दरअसल, सरकार कर्मचारियों के खाते से हर महीने जीपीएफ की कटौती करती है। लेकिन कई बार कटौती होने के बाद कर्मचारियों के एकाउंट में इसकी एंट्री नहीं होती। कर्मचारियों के सेवा काल में जीपीएफ पर लोन लेने या उनकी सेवानिवृत्ति के समय उनके खातों की जांच कर राशि समायोजित की जाती है और इन कटौतियों की एंट्री कर कर्मचारी को वापस खातों में लौटाई जाती है। इसके अलावा कई बार जीपीएफ विड्रा को लेकर न्यायिक विवाद भी होते हैं, जिसके चलते खाते से रकम नहीं निकाली जा पाती। लेकिन विवाद खत्म होने के बाद उन्हें इसी खाते से रकम लौटानी होती है। जब सरकार इस पैसे का इस्तेमाल अपने काम में कर लेगी तो कर्मचारियों को पैसा कैसे लौटाया जाएगा। अब देखने वाली बात यह होगी की भविष्य में ऐसे समायोजन व न्यायिक प्रकरणों में राशि किस फंड से लौटाई जाएगी। ऐसे में यह सरकार पर कर्ज के अलावा बड़ा बोझ
होगा।