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Sidhi: संजय टाइगर रिजर्व में तेजी से बढ़ रहा बाघों का कुनबा, विस्थापन की प्रक्रिया अटकने से विचरण में परेशानी

  1. बाघों के लिए संजय टाइगर रिजर्व अनुकूल
  2. संजय टाइगर रिजर्व में तेजी से बढ़ रहा बाघों का कुनबा
  3. विस्थापन की प्रक्रिया अटकने से बाघों के विचरण में समस्या

सीधी,भास्कर हिंदी न्यूज़/  संजय टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा तेजी से बढ़ा है। 2016 में यहां महज छह बाघ थे, जिनकी संख्या चार वर्ष में 42 पहुंच गई है। प्रबंधन के अनुसार वर्तमान में 22 बाघ व 20 शावक हैं। बाघों के रहवास व विकास के लिहाजा से संजय टाइगर रिजर्व काफी अनुकूल माना गया है। हालांकि, जंगल के भीतर उनके लिए जरूरी सुविधाओं का विकास नहीं हो पा रहा। सीधी- शहडोल जिले की सीमा स्थित इस टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में दुबरी अभ्यारण्य व संजय राष्ट्रीय उद्यान अहम है। दक्षिण में छत्तीसगढ़ के कोरिया जिला में स्थित गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान है। इसी से लगा कृष्ण मृगों के लिए मशहूर बगदरा अभयारण्य है।

संजय टाइगर रिजर्व के जंगल में लोगों ने कब्जा कर पक्के मकान बना लिए हैं। जहां सैकड़ों हेक्टेयर भूमि पर खेती की जा रही है। जंगल में रहने वालों को विस्तापित किया जाना है। ताकी बाघाें को विचरण के लिए अनुकूल माहौल मिल सके। विस्थापन की प्रक्रिया अटकने से बाघों के विचरण में समस्या हो रही है। प्रबंधन के अनुसार यहां पहला बाघ 2013 में ट्रैप किया गया था। दो शावकों के साथ इसे गोइंदवार बीट में चहल कदमी करते देखा गया था। गत वर्ष यहां 14 बाघ व सात शावक विचरण करते देखे गए थे।

54 में 20 गांव विस्थापित

केदार परौहा दुबरी रेंज रेंजर बताते हैं कि कोर एरिया के गांवों का विस्थापन विभाग के लिए बड़ी चुनौती है। टाइगर रिजर्व के कोर एरिया अंतर्गत बसे 54 गांवों को विस्थापन के लिए चिह्नित किया गया है। जिसमें से अब तक 20 गांव ही विस्थापित हो सके हैं। 10 गांव आधे विस्थापित हुए है। विभाग की ओर से गांवों को विस्थापित तो किया जा चुका है, लेकिन आधे परिवार अभी वहीं निवासरत हैं। गांवों का विस्थापन न होने से बाघों का रहवास क्षेत्र विकसित नहीं हो पा रहा है।

रेलवे लाइन प्राण घातक बना
दुबरी अभ्यारण्य क्षेत्र से गुजरने वाली कटनी-चोपन रेलवे लाइन भी बाघों के लिए प्राणघातक बन रही है। रेलवे लाइन का 23 किमी का हिस्सा यहीं से गुजरता है। इसके साथ ही बिजली की जाने वाली लाइन से करंट लगाकर शिकार करने का मामला भी आ चुका है।

निगरानी के लिए बनाई गई समितियां
पेट्रोलिंग कैंप हैं जो सोलर लाइट से लैस हैं। कोर क्षेत्र के सभी बीटों में बीट गार्ड व पेट्रोलिंग समितियां भी हैं, जो प्रतिदिन 15-20 प्रति वर्ग किमी क्षेत्र में पेट्रोलिंग करती हैं। साथ ही बाघों की निगरानी के लिए तीन ड्रोन कैमरे हैं। एक नाइट विजन ड्रोन कैमरा, चार प्रशिक्षित हाथी भी पेट्रोलिंग करते हैं।

पहला सफेद बाघ मोहन
संजय टाइगर रिजर्व के दुबरी अभयारण्य अंतर्गत वस्तुओं का पनखोरा नाला सफेद बाघ मोहन की जन्म स्थली है। यहां से सफेद बाध मोहन को 4 जून 1951 को रीवा के महाराजा मार्तंड सिंह ने सफेद बाघ मोहन को पकड़ा था। जानकार बताते हैं कि शिकार के दौरान महराजा ने 6 माह के सफेद बाघ की आंख में आंसू देखा और उसका शिकार करने की बजाय पकड़कर गोविंदगढ़ के किले में बेगम नाम की बाधिन के साथ रखा था। इसका नाम मोहन रखा गया। आगे चलकर इनसे सफेद रंग के 34 शावक पैदा हुए। आगे चलकर मोहन ने पूरे विश्व में सफेद बाघों की अपनी संतति को फैलाया।

रियासती शासनकाल में जंगली जानवरों का शिकार करना प्रतिबंधित था केवल राजा ही शिकार कर सकता था। बताया जाता है कि पनखोरा क्षेत्र में 27 मई से 6 जून 1951 तक चले अभियान में 13 बाघों (6 नर, 5 मावा व 2 शावक) का शिकार करने के पश्चात प्रांतों के साथ इंग्लैंड व अमरीका तक भेजा गया। 19 वर्ष की आयु में 18 दिसंबर 1969 को मोहन की मौत हो गई थी। जिले के जिस जंगल से मोहन पकड़ा गया था उसे मोहन रेंज नाम दिया गया है।

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