Sunday , December 22 2024
Breaking News

Ahoi Ashtami : संतान प्राप्ति के लिए जरूर करें अहोई अष्टमी व्रत, जानिए पूजा विधि, महत्व और व्रत कथा

  1. कई स्थानों पर अहोई अष्टमी को अहोई आठे भी कहा जाता है
  2. कथा सुने बिना कोई भी व्रत पूरा नहीं माना जाता है
  3. निसंतान महिलाएं इस व्रत को करती हैं, तो उन्हें संतान प्राप्ति होती है

Spiritual vrattyohar ahoi ashtami 2023 to have a child do ahoi ashtami vrat know the puja vidhi auspicious time and vrat katha: digi desk/BHN/इंदौर/ हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत भारत के उत्तरी राज्यों में अधिक प्रचलित है। कई स्थानों पर अहोई अष्टमी को अहोई आठे भी कहा जाता है। इस व्रत को बिना जल ग्रहण किए रखने का नियम है। साथ ही कथा सुने बिना कोई भी व्रत पूरा नहीं माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह व्रत वे महिलाएं करती हैं, जिनके अभी तक संतान नहीं हुई है। इस दिन अहोई माता की पूजा की जाती है। रात में तारों को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। वहीं, कुछ लोग चांद देखने के बाद ही अपना व्रत खोलते हैं। इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 5 नवंबर 2023 को रखा जाने वाला है।

अहोई अष्टमी व्रत महत्व
माताएं अपने बच्चों की सुरक्षा और सफल जीवन की कामना से अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु और अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है। यदि निसंतान महिलाएं इस व्रत को करती हैं, तो अहोई माता की कृपा से उन्हें संतान की प्राप्ति होती है।

अहोई अष्टमी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक शहर में एक साहूकार रहता था, जिसके सात बच्चे थे। एक बार दिवाली से पहले साहूकार की पत्नी घर लीपने के लिए मिट्टी लाने खेतों पर गई थी। खेत पहुंचकर उसने फावड़े से जमीन खोदना शुरू कर दिया। इसी बीच अनजाने में उसके फावड़े से साही का एक बच्चा (झानुमुसा) मारा गया। क्रोधित होकर साही की मां ने महिला को श्राप दिया कि उसके बच्चे भी एक-एक करके मर जाएंगे। श्राप के कारण साहूकार के सातों बेटे एक के बाद एक मरते गए।

इससे दुखी होकर साहूकार की पत्नी एक सिद्ध महात्मा की शरण में गई और उन्हें पूरी घटना बताई। इस पर महात्मा ने महिला को अष्टमी के दिन देवी भगवती का ध्यान करते हुए साही और उसके बच्चों का चित्र बनाने की सलाह दी। इसके बाद उनकी पूजा करें और अपने किए कृत्य की माफी मांगें। देवी मां की कृपा से तुम्हें पाप से मुक्ति मिलेगी। साधु की बात मानकर साहूकार की पत्नी ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को व्रत और पूजन किया। देवी मां की कृपा से उसके सातों बच्चे जीवित हो गए। तभी से अहोई माता की पूजा और संतान के लिए व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है।

अहोई अष्टमी पूजा विधि

इस दिन महिलाएं स्नान करके साफ और नए कपड़े पहनती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं और अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करके व्रत पूरा करती हैं। शाम के समय घर की उत्तर-पूर्व दिशा को साफ करके एक लकड़ी की चौकी पर नया कपड़ा बिछाएं और उस पर अहोई माता की तस्वीर रखें। इस दिन कई माताएं चांदी की अहोई बनवाकर गले में धारण करती हैं। इसे स्याहु के नाम से जाना जाता है। माता की स्थापना करने के बाद उत्तर दिशा में एक जमीन पर गोबर से लिपकर उस पर जल से भरा कलश रखें और उस पर चावल छिड़कें।

कलश पर कलावा अवश्य बांधें और रोली का टीका भी लगाएं। अब अहोई माता को रोली चावल का तिलक लगाकर भोग लगाएं। आठ पूड़ी और आठ मीठी पूड़ी का भोग लगाया जाता है। पूजा के समय देवी मां के सामने एक कटोरी में चावल, मूली और सिंघाड़े भी रखे जाते हैं। अब दीपक जलाकर अहोई मां की आरती करें और फिर प्रार्थना करें। कथा सुनते समय अपने दाहिने हाथ में चावल के कुछ दाने रखें। एक बार जब आप कथा समाप्त कर लें, तो चावल के दानों को अपने पल्लू में गांठ बनाकर रख लें। रात को अर्घ्य देते समय कलश में थोड़े से गांठ के चावल डाल दें। पूजा में शामिल सामग्री किसी ब्राह्मण को दान करें। अहोई माता की फोटो को दिवाली तक वहीं लगे रहने दें।

About rishi pandit

Check Also

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में शुभता और समृद्धि लता है केले का पेड़

वास्तु शास्त्र के अनुसार, केले का पेड़ (विशेषकर उसका पौधा) घर में शुभता और समृद्धि …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *