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MP Election: बागियों की धरती पर तोमरों की भिडंत… जीते तो ताज, हारे तो तोहमत

  • विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरे केंद्रीय कृषि मंत्री का कड़ा मुकाबला
  • कांग्रेस से मैदान में हैं वर्तमान विधायक रवींद्र तोमर ‘भिड़ौसा’
  • जातिगत समीकरण को साधने की चुनौती

Madhya pradesh narendra singh tomar faces tough competition on dimani seat in mp assembly election: digi desk/BHN/ग्वालियर/ ‘नाम क्या है तुम्हारा! पान सिंह तोमर। गांव भिड़ौसा जिला मुरैना साब’..ओहो चंबल..डाकू एरिया..। डाकू नहीं साब बागी। .. हमाय मामा, बागथरी वारे बागी हैं साब, बड़ी इज्जत है विनकी, आज तक पुलिस न पकड़ पाई…। यदि यह डायलाग आपको याद आ गया हो तो आप चंबल के बारे में समझ रखते हैं। यहां काम करते हुए पिछले छह सालों में मैंने ठेठ चंबल के बीहड़ों में घुली हवा और बहती चंबल नदी के पानी को कई बार पीया है। खून में उबाल मारते स्वाभिमान और जरा सी बात बिगड़ने पर बागी तेवर देखे हैं।

तोमरों के चक्रव्यू में फंसे नरेंद्र सिंह तोमर

चुनावी माहौल में यहां की फिजा थोड़ी बदली हुई दिख रही है, क्योंकि अंचल की राजनीति में ‘बास’ कहे जाने वाले पीएम मोदी के कैबिनेट के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को 15 साल बाद विधानसभा चुनाव के अखाड़े में रणनीति के तहत उतारा गया है। नरेंद्र खुद तोमर होते हुए भी तोमरों के चक्रव्यू में फंस गए हैं..। मुकाबला कड़ा है।

चंबल का चुनावी हाल जानने के लिए हमने चंबल के भ्रमण का निर्णय लिया। उससे पहले सुबह कैमरामैन के साथ केंद्रीय कृषि मंत्री व दिमनी सीट से विधानसभा चुनाव के भाजपा प्रत्याशी नरेद्र सिंह तोमर के ग्वालियर बंगले पर पहुंच गया। रेसकोर्स रोड स्थित उनके सरकारी बंगले पर चुनिंदा लोग ही मौजूद दिखे, जो गुनगुनी धूप में अखबार पढ़ रहे थे।, मुझे याद है जब तोमर केंद्रीय कृषि मंत्री के प्रोटोकाल में आते रहे हैं तो बंगला परिसर में प्रवेश पाना भी मुश्किल होता था। आज बिना रोक-टोक के सीधे बंगले में प्रवेश मिल गया।

जातिगत समीकरण को साधने की चुनौती

थोड़ी देर में तोमर बैठक कक्ष में आए। 66 बसंत देख चुकीं उनकी आंखें नींद से बोझिल दिखीं। भाव शून्य चेहरे पर चुनावी थकावट की लकीरें स्पष्ट नजर आईं। कैसे हो बालकृष्ण जी,..उपस्थित जनों में से एक का उन्होंने हालचाल पूछा। कुछ लोग विधानसभा क्षेत्र के छोटे-छोटे फूफाओं का हाथ पकड़कर कोने में मिलवा रहे हैं। एक अधपके बाल वाले थोड़े अति सक्रिय दिख रहे हैं, पूछा तो स्थानीय बोली में कहने लगे- “मंत्रीजी, जितें(जहां से) चुनाव लड़ रए उते कछु काम ना आत, न कुर्सी नै पइसा, जीतत वोई है जो जात- बिरादरी को साध लेए, अब भां तोमर ही तीन-तीन हो गए तें एक-एक वोट की मारा-मारी होईए, एक-एक नाराज को लुबा लाए रए, का है कि उते सब नाक वारे हैं।”

उनके कहने का आशय यह था कि मंत्री जी जहां से लड़ रहे हैं, वहां पैसा, कुर्सी काम नहीं आती। सबकी इज्जत ऊंची रखनी होती है। जातिगत समीकरण साधने होते हैं। बता दें कि दिमनी से कांग्रेस ने वर्तमान विधायक रवींद्र तोमर ‘भिड़ौसा’ को चुनाव मैदान में उतारा है जबकि आम आदमी पार्टी से सुरेंद्र सिंह तोमर भी मैदान में हैं। तोमरों की इस तिकड़ी के कारण हाथी पर सवारी कर रहे बलवीर दंडौतिया सीधी टक्कर दे रहे हैं, क्योंकि वह चुनावी रण में एकलौते बामन(ब्राह्मण) हैं और दिमनी में दोनों ही जातियां (क्षत्रिय-ब्राह्मण) ज्यादा भी हैं, और जुदा भी।

जाम में फंसी प्रोटोकाल वाले मंत्री जी की कार

इसी बीच गाड़ी चलने को तैयार हो गई। वो आगे की सीट पर बैठ गए हैं, मैं, मेरे साथी और पीए पीछे की सीट पर। बंगले से निकलकर गाड़ी मुरैना की ओर दौड़ने लगी। केंद्रीय मंत्री के काफिले के कारण हर चौराहे के ट्रैफिक को जहां दस मिनट पहले बंद कर दिया जाता था, वहां अब नजारा बदला दिखा। आज गाड़ी जगह-जगह जाम में फंसती हुई चलती रही। देखकर लगा बिना तामझाम के कोई खास भी कितना आम सा हो जाता है। तोमर भाजपा के चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक भी हैं सो रास्तेभर वह अंचल के प्रत्याशियों से राजनाथ सिंह की सभा अपने क्षेत्र में कराने को लेकर चर्चा कर रहे हैं। सामने से प्रत्याशी अन्य दमदार स्टार प्रचारक की मांग करते तो उन्हें समझाया- अरे भाई जो मिल रहा है, वह ले लो उसके बाद देखते हैं।

दिमनी में फंस तो नहीं गए..?

मौका मिला तो मैंने पूछा-दिमनी में फंस तो नहीं गए..? थोड़ी देर की खामोशी के बाद बोले-हां बड़ी वैसी सीट है..। वैसी का मतलब मैं समझ गया क्योंकि 2008 के बाद भाजपा यहां से कभी नहीं जीती..2013 में तो हाथी के मुकाबले तीसरे नंबर पर रही..। 2018 में कांग्रेस जीती लेकिन जब सिंधिया के साथ विधायक ने पल्टी मारकर भाजपा से उपचुनाव लड़ा तो हार गए। हमने अब उनसे विदा लेकर साथ चल रही अपनी गाड़ी में सवार होकर उसे दिमनी की तरफ दौड़ा दी।

नाक का सवाल बना चुनाव

जींगनी, कसमडा, रानपुर यह वह गांव हैं जहां पार्टियों की झंडे लिए भीड़ आसानी से दिखाई दे रही है। पूछने पर एक कार्यकर्ता दिनेश बताते हैं- यहां तो हर गांव में चुनाव लड़ा जा रहा है..यही माहौल मिलेगा.. पहले तोमर और अब दिनेश की बात से समझ आ गया कि ग्राउंड पर यह चुनाव कितनी नाक का सवाल बन चुका है। इस क्षेत्र में हम जितना भीतर जा रहे हैं प्रचार उतना ही जोर पकड़ता दिख रहा है..। शाम होते-होते एक गांव में हमें दर्जनों लक्जरी गाड़ियां दिखीं.. अधिकतर उत्तर प्रदेश के नंबरों की..। हम भी रुक गए हैं..। भीड़ में से एक को बुलाकर पूछा क्या मामला है ? बोले- भैया आए हैं..कुछ लोग नाराज हैं तो प्राइवेट में बात कर रहे हैं..।

नरेंद्र सिंह तोमर की अग्निपरीक्षा
नरेंद्र तोमर के बड़े लड़के देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर हैं, जिन्हें समर्थक रामू भैया कहते हैं..पिछले तीन बार से टिकट के लिए जबरदस्त संघर्ष किया लेकिन सफल नहीं हुए। अब पिता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वैसे टिकट नहीं मिलने पर एक दो-बार पारिवारिक खटपट की बात तक आ चुकी है..खैर। थोड़े आगे बढ़े तो पान सिंह तोमर का गांव भिड़ौसा आ गया। एक समय था जब सूरज ढलने के पहले लोग घरों में कैद हो जाते थे..अब ऐसा नहीं है..स्ट्रीट लाइट जलने के बाद भी गांव में हल्की-फुल्की चहल-पहल दिखाई दे रही है।

पास में ही लेपा गांव हैं, जहां कुछ माह पहले अंधाधुंध फायरिंग में एक ही परिवार के आठ लोगों की हत्या की गई थी, लाइव वीडियो देखा ही होगा आपने। पूरे क्षेत्र में प्रचार में पंजा और हाथी अंडर करंट पैदा कर रहे हैं जबकि सड़कों पर केंद्रीय मंत्री की पावर और पैसे की झलक साफ दिखाई दे रही है। लगा कि यह नरेंद्र सिंह तोमर की अग्निपरीक्षा है..जीते तो प्रदेश की कमान भी मिल सकती है..हारे तो तोहमत।

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