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Vijayadashami: मंगलवार को मनाई जाएगी विजयादशमी, जानिए शुभ मुहूर्त और महत्व

  1. विजयादशमी त्योहार का बहुत धार्मिक महत्व है
  2. भगवान श्री राम के साथ-साथ मां दुर्गा की भी पूजा करते हैं
  3. मां दुर्गा ने भयानक राक्षस महिषासुर का वध किया था

Vrat tyohar vijayadashami 2023 will be celebrated on tuesday know the date shubh muhurat and importance: digi desk/BHN/इंदौर/ विजयादशमी सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे पूरे भारत में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है। इस त्योहार का हिंदुओं के बीच बहुत धार्मिक महत्व है। यह आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा या विजयादशमी मनाया जाता है। इस दिन लोग भगवान श्री राम के साथ-साथ मां दुर्गा की भी पूजा करते हैं।

विजयादशमी पर करें इन चौपाई का पाठ –

”कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती।।

सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी।।”

”एक समय सब सहित समाजा। राजसभां रघुराजु बिराजा।।

सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू।।”

”मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली।।

राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।।”

विजयादशमी शुभ मुहूर्त

दशमी तिथि का प्रारम्भ 23 अक्टूबर – शाम 05:44 बजे तक।

दशमी तिथि का समापन 24 अक्टूबर- शाम 03:14 तक।

दशमी तिथि विजय मुहूर्त – दोपहर 01:26 बजे से दोपहर 02:12 बजे तक।

विजयादशमी महत्व

भारत में दशहरे का बहुत धार्मिक महत्व है। नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए भी लोग इस त्योहार को मनाते हैं। दशहरा की कहानी हिंदू पौराणिक कथाओं से जुड़ी हुई है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन भगवान राम ने राक्षस रावण का वध किया था। इसी दिन मां दुर्गा ने भयानक राक्षस महिषासुर का वध किया था। ऐसे में इस दिन को असत्य पर सत्य की जीत के रूप में भी माना जाता है। इसके अलावा इस दिन कई जगहों पर रामलीला का भी आयोजन होता है।

विजयादशमी पर करें रामरक्षा स्तोत्र का पाठ, भगवान राम दूर करेंगे हर कष्ट

सनातन धर्म में विजयादशमी का पर्व बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। देशभर में तैयारियां चल रही हैं। दशहरा पर भगवान राम की पूजा करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस शुभ दिन पर भगवान श्री राम की पूजा करते हैं, उनके जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। इस त्योहार में भगवान राम की पूजा को लेकर भी सभी की अलग-अलग मान्यताएं हैं। दशहरा पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। साथ ही रामचरित मानस या राम रक्षा स्तोत्र का पाठ भी करना चाहिए। इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में चल रही समस्याओं का अंत होता है।

”विनियोग”

अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः ।

श्री सीतारामचंद्रो देवता ।

अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः ।

श्रीमान हनुमान कीलकम ।

श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः ।

”अथ ध्यानम”

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं,

पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम ।

वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम्नी,

रदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम ॥

”राम रक्षा स्तोत्र”

चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् ।

एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥॥

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।

जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं ॥॥

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् ।

स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥॥

रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।

शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥॥

कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति ।

घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥॥

जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः ।

स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥॥

करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित ।

मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥॥

सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।

उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः ॥॥

जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतकः ।

पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामअखिलं वपुः ॥॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत ।

स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥॥

पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः ।

न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥॥

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन ।

नरौ न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥॥

जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।

यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥॥

वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत ।

अव्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥॥

आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।

तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥॥

आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।

अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः ॥॥

तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।

पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥॥

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।

पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥॥

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।

रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥॥

आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ ।

रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम ॥॥

सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।

गच्छन् मनोरथान नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥॥

रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।

काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।

जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥॥

इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ।

अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥॥

रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम ।

स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः ॥॥

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं,

काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम ।

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं,

वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम ॥॥

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।

रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥॥

श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम,

श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।

श्रीराम राम रणकर्कश राम राम,

श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥॥

श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि,

श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि ।

श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि,

श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥॥

माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी,

रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।

सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं,

जाने नैव जाने न जाने ॥॥

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज ।

पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥॥

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं ।

कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम ।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ॥॥

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम ।

आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ॥॥

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।

लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥॥

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम् ।

तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥॥

रामो राजमणिः सदा विजयते,

रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता,

निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।

रामान्नास्ति परायणं परतरं,

रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः,

सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः ॥॥

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।

सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥॥

पैसों की कमी दूर करने के लिए विजयादशमी के दिन जरूर करें ये उपाय, होगा धनलाभ

 विजयादशमी के दिन नकारात्मक शक्तियों को खत्म करने के लिए कई उपाय किए जाते हैं, जिससे घर में देवी लक्ष्मी का आगमन होता है। धन की कमी के कारण आपको परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, तो आप इन उपायों को कर सकते हैं।

इस तरह करें पूजा
विजयादशमी के दिन भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा में एक श्रीफल शामिल करें। इसके बाद इसे घर या कार्यस्थल पर तिजोरी में रख दें। यह उपाय से कुछ ही दिनों में आपको असर दिखने लगेगा।

मां दुर्गा के चरण

विजयादशमी के दिन मां दुर्गा के पैरों को लाल रंग के कपड़े से पोंछें। इसके बाद उस पवित्र कपड़े को अपनी तिजोरी या धन रखने के स्थान पर रख दें। ध्यान दें कि कपड़ा रखते समय आसपास कोई नहीं होना चाहिए।

ब्रह्म मुहूर्त में करें ये काम

अगर आप रावण दहन में शामिल हों, तो वहां से दहन की एक चुटकी राख घर ले आएं। उस राख को अपनी तिजोरी में या जहां भी आप पैसे रखते हों वहां रख दें। ध्यान दें कि यह उपाय ब्रह्म मुहूर्त में ही किया जाना चाहिए।

बनने जा रहे हैं 5 अद्भुत शुभ संयोग, प्राप्त होगा कई गुना लाभ

ज्योतिषियों के अनुसार दशहरा पर्व पर इस बार पांच अद्भुत संयोग बन रहे हैं। आइए, आपको दशहरा पर बनने वाले शुभ योग और पंचांग के बारे में बताते हैं।

दशहरा तिथि

पंडित आशीष शर्मा के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 23 अक्टूबर को शाम 5.44 बजे प्रारंभ होगी और अगले दिन 24 अक्टूबर को दोपहर 3.14 बजे समाप्त होगी।

विजय मुहूर्त

विजय मुहूर्त दोपहर 1.58 बजे से 2.43 बजे तक रहेगा।

दशहरा पूजा समय
दशहरे के दिन पूजा का समय 2 घंटे 15 मिनट तक है। विजयादशमी के दिन पूजा का शुभ समय दोपहर 1.13 बजे से 3.18 बजे तक रहेगा।

रवि योग

दशहरे पर रवि योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का निर्माण सुबह 06:27 बजे शुरू होकर दोपहर 03:28 बजे तक रहेगा। इसके बाद शाम 06:38 बजे से पूरी रात रहेगा।

वृद्धि योग

ज्योतिषियों के अनुसार, दशहरा पर अत्यंत लाभकारी वृद्धि योग बन रहा है। यह शुभ योग 25 अक्टूबर को दोपहर 3.40 बजे से दोपहर 12.14 बजे तक रहेगा।

करण

दशहरे के दिन दोपहर 3 बजकर 14 मिनट तक गर करण रहेगा। इसके बाद पूरी रात वणिज करण है। वणिज एवं गर करण शुभ कार्यों के लिए सर्वोत्तम माने गए हैं।

सूर्योदय – सुबह 06.27 पर।

सूर्यास्त – शाम 05.43 पर।

पंचांग

ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04.45 से सुबह 05.36 तक।

अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11.43 से 12.28 तक।

गोधूलि बेला मुहूर्त – शाम 05.43 से 06.09 तक।

निशिता मुहूर्त – रात्रि 11.40 बजे से 12.31 बजे तक।

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