M.P.news: digi desk/BHN/ मध्य प्रदेश में वनकर्मियों पर हमले की बढ़ती वारदातों के बीच वन विभाग ने वनरक्षकों को बंदूक खरीदने की अनुमति दे दी है। वे आत्मरक्षा के लिए बंदूक खरीद सकते हैं। विभाग उन्हें लाइसेंस दिलाने और बंदूक खरीदने के लिए जीपीएफ से राशि निकालने में मदद करेगा, पर उन्हें बंदूक चलाने की अनुमति नहीं रहेगी। यदि किन्हीं परिस्थिति में वे बंदूक चलाते हैं और कोई हताहत होता है, तो इसके लिए वे खुद जिम्मेदार होंगे। विभाग ने वनवृत्तों में पदस्थ सभी मुख्य वनसंरक्षक और डीएफओ को जिला स्तर पर वनरक्षकों को लाइसेंस दिलाने और जीपीएफ की राशि निकालने में मदद करने के निर्देश दिए हैं।
गौरतलब है कि मप्र में पिछले 15 साल में करीब 150 वन अधिकारियों एवं कर्मचारियों की लकड़ी चोर, शिकारी, अतिक्रमणकारी और वनभूमि से अवैध उत्खनन करने वालों से मुठभेड़ में मौत हुई है। अलग-अलग घटनाओं में दो हजार से ज्यादा कर्मचारी घायल भी हुए हैं। इस साल भी ऐसी करीब 10 घटनाएं हुई हैं। अब जाकर वन विभाग को अपने कर्मचारियों की सुरक्षा की चिंता हुई है, लेकिन विभाग ने उसका भी ऐसा रास्तानिकाला है कि विभाग और सरकार पर आंच न आए। विभाग ने मैदानी वनकर्मियों को बंदूक खरीदने की इजाजत दे दी है। इसके लिए पैसा भी वनरक्षक को ही खर्च करना पड़ेगा। विभाग ने विकल्प भी बता दिया है कि वे बंदूक खरीदने के लिए जीपीएफ से राशि निकाल सकते हैं।
आमतौर पर यह राशि कर्मचारी के सुख-दुख के छणों में काम आती है। विभाग सिर्फ कलेक्टर से लाइसेंस दिलाने में मदद करेगा। वन अधिकारियों को मानना है कि कर्मचारी के पास बंदूक होने भर से अपराध कम हो जाएंगे। इसे लेकर विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं।
बंदूक चलाई तो वनकर्मी जिम्मेदार
वनकर्मी लाइसेंस ले लेंगे और बंदूक भी खरीद लेंगे, पर चलाने की इजाजत नहीं होगी। नए निर्देशों ने वनकर्मियों की मांग को फिर जीवित कर दिया है। कर्मचारियों को सरकारी तौर पर पहली बार 20 साल पहले बंदूक दी गई थीं, तभी से वे पुलिस के समान बंदूक चलाने का अधिकार मांग रहे हैं। विभाग ने तीन बार शासन को प्रस्ताव भेजे, पर गृह विभाग ने अधिकार देने से इन्कार कर दिया।