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Pramod Mahajan: 3 मई को BJP नेता प्रमोद महाजन का हुआ था निधन, अपने ही भाई ने मारी गोली

National pramod mahajan death anniversary history of pramod mahajan death consiperancy: digi desk/BHN/मुंबई/ बीजेपी को राष्ट्रीय पटल पर लाने का श्रेय जिन नेताओं को जाता है, उनमें से एक हैं प्रमोद महाजन, जो असमय मौत की वजह से राष्ट्रीय राजनीति में वो कद हासिल नहीं कर पाए, जिसके वह हकदार थे। 22 अप्रैल 2006 को उनके ही छोटे भाई प्रवीण महाजन ने उन्हें गोली मार दी। 13 दिनों तक मौत से संघर्ष के बाद उन्होंने 3 मई को मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके गुजरे हुए कई साल बीत चुके हैं, लेकिन ये बात आज तक सामने नहीं आ पाई कि उनकी हत्या क्यों हुई।

घटनाक्रम

22 अप्रैल, 2006 को प्रमोद महाजन, मुंबई के वर्ली इलाके में अपने आवास ‘पूर्णा’ में चाय पी रहे थे। सुबह 7.30 बजे दरवाजे की घंटी बजी और उनके भाई प्रवीण महाजन भीतर आए। प्रवीण उनके सामने सोफे पर बैठे और थोड़ी ही देर में दोनों में तकरार होने लगी। 10 मिनट के भीतर प्रवीण महाजन ने अपनी 32 बोर की पिस्टल निकाली और प्वाइंट ब्लांक रेंज से प्रमोद महाजन पर फायरिंग कर दी। उनके सीने में तीन गोलियां लगीं। उस समय उनकी पत्नी बेडरूम में थीं। गोलियों की आवाज सुनकर बाहर आईं तो प्रमोद खून से लथपथ पड़े थे। मदद के लिए वो गोपीनाथ मुंडे के घर पहुंचीं, जो उसी बिल्डिंग की 12वीं मंज़िल पर रह रहे थे। फिर दोनों ने मिलकर प्रमोद महाजन को अस्पताल पहुंचाया।

हत्या के बाद

उधर गोलियां चलाने के बाद प्रवीण महाजन चुपचाप घर से बाहर निकल गए और सीढ़ियां से उतरकर नीचे पहुंचे। उन्होंने अपनी कार पार्किंग में ही छोड़ दी और टैक्सी लेकर थाने पहुंचे। थाने में उन्होंने पिस्टल देते हुए मराठी में कहा कि मैंने प्रमोद महाजन को गोली मार दी है। पुलिस ने फौरन प्रवीण महाजन को गिरफ्तार कर लिया। 2007 में मुंबई सत्र न्यायालय ने प्रवीण महाजन को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई।

क्यों की हत्या?

अपने भाई की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाए जाने के बाद साल 2009 में प्रवीण महाजन ने नासिक जेल में एक किताब लिखी, जिसका नाम था ‘माझा एलबम’ यानी मेरी एलबम। इसमें प्रवीण महाजन ने दावा किया था कि यह सब कैसे हुआ और किसने किया, ये लोग कभी नहीं जान पाएंगे। 2009 में प्रवीण महाजन को ब्रेन हैमरेज हो गया और वो कोमा में चले गए। 3 मार्च 2010 को प्रवीण महाजन की मृत्यु हो गई। लेकिन प्रवीण महाजन और प्रमोद महाजन के बीच आखिर ऐसा क्या हुआ था, जिसकी वजह से एक भाई ने दूसरे पर गोली चलाई, ये कभी सामने नहीं आया।

जीवन परिचय

प्रमोद महाजन का जन्म 30 अक्टूबर 1949 को महबूबनगर (तेलंगाना) में हुआ था। शुरुआती दिनों में ही ये संघ से जुड़ गये। उन्होंने पुणे के रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म से पत्रकारिता की डिग्री ली। जल्द ही RSS के मराठी अखबार ‘तरुण भारत’ के उप संपादक बन गए। 1974 में उन्हें संघ प्रचारक बनाया गया और इमरजेंसी के दौरान उन्होंने इंदिरा विरोध का मोर्चा संभाला। उनकी सक्रियता और भाषण की कला को देखते हुए उन्हें भाजपा में शामिल कर लिया गया। 1983 से 1985 तक वह पार्टी के अखिल भारतीय सचिव थे और फिर 1986 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने। इसके बाद लगातार 3 बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष रहे।

1990 की शुरुआत में लालकृष्ण आडवाणी ने महाजन की काबिलियत को पहचाना और उन्हें केंद्र की राजनीति में ले आए। 1996 में अपना पहला लोकसभा चुनाव जीतकर आये प्रमोद महाजन को वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री बनाया गया। लेकिन ये सरकार केवल 13 दिन ही टिकी। 1998 में बीजेपी फिर सत्ता में आई, पर महाजन चुनाव हार गए। उन्हें राज्यसभा भेजा गया और ये सूचना प्रसारण मंत्री बने।

राजनीतिक उपलब्धियां

आडवाणी की रथयात्रा

माना जाता है कि लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा का आइडिया उनका ही था। आडवाणी की रथयात्रा और उसकी सफलता में प्रमोद महाजन की भी बड़ी भूमिका थी। इस वजह से जब आडवाणी ने सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, गोविंदाचार्य और एम वेंकैया नायडू जैसे धुरंधरों के साथ नई टीम बनाई, तो उसमें महाजन को भी जगह मिली। बाद में उनका कद इतना बड़ा हो गया कि उन्हें बीजेपी का संकटमोचक कहा जाने लगा।

पार्टी के संकटमोचक

महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना में गठबंधन करवाने में भी उनकी अहम भूमिका थी। माना जाता है कि शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे बीजेपी के तमाम नेताओं में सबसे ज्यादा प्रमोद महाजन पर ही भरोसा करते थे। 1995-96 में जब गुजरात बीजेपी के दिग्गज नेता शंकर सिंह वाघेला और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे थे, तो आडवाणी ने विवाद सुलझाने का जिम्मा प्रमोद महाजन को सौंपा। महाजन ने वाघेला और मोदी के बीच सुलह करा दी। उन्हें 2003 में कई विधानसभाओं में पार्टी की जीत का श्रेय मिला, लेकिन 2004 लोकसभा चुनावों में हार की जिम्मेदारी भी उठानी पड़ी।

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