MP, jhabua news farmers feeding watermelons to cattles due to straw cost is high: digi desk/BHN/झाबुआ, बावड़ी/ पांच हजार किसान परिवारों की उम्मीद इस साल ने तरबूज ने तोड़ दी है। किसानों को इसके उत्पादन की लागत छह रुपये प्रति किलो आई है, लेकिन थोक भाव सिर्फ साढ़े चार से पांच रुपये ही मिल पा रहे हैं, ऐसे में इनका तरबूज की खेती से मोह ही खत्म हो गया है। स्थिति यह है कि खेतों में पड़े-पड़े तरबूज सड़ रहे हैं। दूसरी ओर गेहूं का भूसा इस समय छह रुपये प्रति किलो मिल रहा है, ऐसे में किसान मवेशियों को तरबूज खिला रहे हैं।
लगातार हर उपज के भाव गिरने की सूची में तरबूज ने भी खड़े होकर किसानों की कमर तोड़ डाली है। ऐसे में किसान आक्रोशित हैं। इनका कहना है कि महंगाई बढ़ने के साथ खेती की लागत बढ़ रही है और उस तुलना में उपज का भाव नहीं मिल रहा। यह स्थिति खेती को लेकर निराशा पैदा करती जा रही है।
बढ़ती लागत
वर्तमान में एक बीघा में तरबूज की फसल लेने का खर्च 41 हजार 500 रुपये आ रहा है। ट्रैक्टर के पांच हजार, मल्ब बिछाने के चार हजार 500, पौधे के 20 हजार, दवा के तीन हजार और श्रमिकों के तीन हजार रुपये लगते हैं। कुल मिलाकर छह रुपये प्रति किलो की लागत तरबूज आ रही है।
ऐसे बने हालात
रमजान माह शुरू होते ही खेतों से नौ रुपये प्रति किलो के भाव से तरबूज थोक में जाने लगा। कुछ दिन में ही मांग घट गई। ऐसे में भाव भी तेजी से नीचे गिरते हुए साढ़े चार से पांच रुपये प्रतिकिलो पर आ गए।
एक नजर में
– 2 हजार हेक्टेयर तरबूज का रकबा
– 1800 हेक्टेयर पिछले साल था
– 5 हजार के करीब किसान करते हैं खेती
– 2017 के बाद तरबूज लेने लगे किसान
मांग ही नहीं
पेटलावद क्षेत्र के तरबूज को काफी पसंद किया जाता है। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में यह फल जाता रहा है, लेकिन इस साल बिलकुल भी मांग नहीं है। अधिकतम 12 रुपये प्रति किलो तक का भाव किसानों को मिलता रहा है। माही नहर आने के बाद पिछले चार सालों से ही इसका उत्पादन लिया जाने लगा है।
यह है खास
तरबूज ग्रीष्म ऋतु का फल है। इसका सेवन शरीर में पानी की कमी को दूर करता है, क्योंकि 97 प्रतिशत इसमें पानी होता है। इसका सेवन कई रोगों से छुटकारा दिलाता है।
किसानों की पीड़ा
– कृष्णा पाटीदार का तरबूज काटकर गाय को खिलाने का वीडियो खूब बहुप्रसारित हुआ। इनका कहना है कि मेहनत से फसल तैयार करते हैं, मगर लागत भी नहीं निकलती है तो तकलीफ होती है।
– नूतन पाटीदार ने बताया कि टमाटर के भाव नहीं मिलने से निराश होकर तरबूज लगाए। अब इसकी लागत भी नहीं निकल रही है। ऐसे में खेती को लाभ का धंधा बनाने के सरकार के दावे पर ही सवाल उठ रहे हैं। सरकार भी कोई ठोस कदम नहीं उठाती।
– कैलाश सिंगार ने चार बीघा में तरबूज उगाया। इनका मानना है कि महंगाई बढ़ती जा रही है। पहले एक बीघा में फसल लेने का खर्च 20 हजार के लगभग ही आता था, जबकि अब 40 हजार से अधिक आ रहा है। उधर भाव गिर रहे हैं। उपज की लागत ही नहीं निकल रही।
सिर्फ जुमलेबाजी
भारतीय किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष महेंद्र हामड़ का मानना है कि नीतियां किसानों के हित में बिल्कुल नही है इसलिए दिक्कत आ रही है। लगातार हर उपज के भाव औंधे मुंह गिर रहे हैं। लागत भी नहीं निकल पा रही।
कोई ठोस जवाब नहीं
इधर, अधिकारियों के पास कोई ठोस जवाब ही नहीं है। उद्यानिकी विभाग पेटलावद के एसडीओ सुरेश ईनवाती कहते हैं कि बेमौसम वर्षा होने से तरबूज की मांग घटी है।