MP news mahasammelan of tribal community in bhopal tomorrow people from all over the state will gather: digi desk/BHN/भोपाल/ डीलिस्टिंग के लिये जनजातीय समुदाय बड़ा सम्मेलन करने जा रहा है। शहर के भेल दशहरा मैदान में शुक्रवार को जनजाति सुरक्षा मंच की ओर से आयोजित डीलिस्टिंग गर्जना रैली में जनजाति समाज के लोग जुटेंगे। जनजाति सुरक्षा मंच के क्षेत्रीय संयोजक कालू सिंह मुजाल्दा ने बताया कि प्रदेश के 40 जिलों से हजारों लोग 10 फरवरी को जुटेंगे। इस रैली को प्रदेश के जनजातीय समुदाय की भावनाओं का प्रकटीकरण बताते हुए उन्होंने ने कहा कि मांगें पूरी होने तक यह अभियान अनवरत जारी रहेगा।
मुजाल्दा ने कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप जनजाति की पात्रता के लिए विशिष्ट प्रकार की संस्कृति पूजा-पद्धति अनिवार्य रूप से सुनिश्चित की गई है। यदि कोई इसको त्यागकर दूसरी पूजा पद्धति और संस्कृति को मानता है तो वह जनजाति के लिये सुनिश्चित लाभ का अधिकारी नहीं रह जाता है। बावजूद इसके नौकरियों, छात्रवृत्तियों एवं शासकीय अनुदान देने के मामले में संविधान की भावनाओं को लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है।
पांच दशकों से लंबित है मुद्दा
आयोजनकर्ताओं ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 342 में कनर्वटेड लोगों को बाहर करने के लिए देश की संसद अब तक न तो कानून बना पाई है और ना ही अब तक इसमें संशोधन के लिये प्रस्ताव पर विचार किया है। जबकि यह मसौदा 1970 के दशक से संसद में ही विचाराधीन है। तत्कालीन सांसद (स्व.) डॉ. कार्तिक बाबू उरांव 1968 में इस संवैधानिक व कानूनी विसंगति को दूर करने के प्रयास लोकसभा भंग होने के कारण असफल हो गए थे। इसे लगातार टाला जाता रहा है।
इसलिए उठी मांग
जनजातीय सुरक्षा मंच के प्रांतीय संयोजक कैलाश निनामा ने डीलिस्टिंग की मांग के पीछे वजह स्पष्ट करते हुए बताया कि कन्वर्जन के बाद जनजाति का सदस्य भारतीय क्रिश्चयन कहलाता है। इसके बाद कानूनन वह अल्पसंख्यक की श्रेणी में आ जाता है। चूंकि संविधान के अनुच्छेद 341 व 342 में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, इसलिए कन्वर्टेड लोग दोहरी सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं। इसके कारण सरकार पर दोहरा आर्थिक भार बढ़ता जा रहा है।
अब तक यह हुए प्रयास
जनजातीय सुरक्षा मंच द्वारा आयोजित इस डीलिस्टिंग गर्जना रैली के संयोजक सौभाग्य सिंह मुजाल्दा ने बताया कि इस विषय को लेकर जनजातीय सुरक्षा मंच लंबे समय से जागरूकता अभियान चला रहा है। 2000 की जनगणना और 2009 की डा जेके बजाज के अध्ययन से सामने आए तथ्यों को सामने रखते हुए वर्ष 2009 में राष्ट्रपति को 28 लाख पोस्टकार्ड लिखे गए और सौंपे गए। इसके बाद 2020 में 448 जिलों के जिलाधीशों व संभागीय आयुक्तों के साथ ही राज्यों के राज्यपाल व मुख्यमंत्रियों से मिलकर राष्ट्रपति महोदय को ज्ञापन भेजकर डीलिस्टिंग का अनुरोध किया जा चुका है।