सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पढ़ाई कर रहे छात्रों को अध्ययन के लिए सहजता से देह उपलब्ध हो सके इसके लिए खेरमाई रोड स्थित संत मोतीराम आश्रम द्वारा देहदान संकल्प अभियान में बीते दिन तीन देहदानी “दधिचियों” के नाम और जुड़ गए। स्थानीय भरहुत नगर निवासी सेवा निवृत्त शिक्षिका श्रीमती कमलेश अग्रवाल, समीपस्थ पन्ना जिले के महावीर वार्ड में रहने वाले विजय चौरसिया एवं सतना मुख्त्यारगंज निवासी वरिष्ठ पत्रकार तथा रामकथा वाचक ऋषि पंडित (ऋषिराज त्रिपाठी) ने आश्रम पहुँच कर नेत्रदान एवं देहदान का संकल्प ले लिया। संत मोतीराम आश्रम के प्रख्यात संत एवं अखिल भारतीय सिंधी संत समाज के अध्यक्ष स्वामी खिम्यादास जी महाराज ने सादे परन्तु गरिमामय समारोह में इन सभी देहदानियों को संकल्प पत्र देकर सम्मानित किया। महाराज श्री ने इन सभी को दीर्घायु होने का आशीर्वाद भी प्रदान किया । इस अवसर पर संत श्री के परम शिष्य प्रह्लाद जी, आश्रम के सभी सेवादार तथा बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्तगण उपस्थित रहे।
संत मोतीराम आश्रम जगा रहा देहदान की अलौकिक अलख
सतना जिले में खेरमाई रोड स्थित संत मोतीराम आश्रम के प्रख्यात संत एवं अखिल भारतीय सिंधी संत समाज के अध्यक्ष स्वामी खिम्यादास जी महाराज एवं उनके शिष्य प्रह्लाद जी के मार्गदर्शन में आश्रम के सभी सेवादार समाजसेवा के अन्य प्रकल्पों के साथ देहदान की अलौकिक अलख भी जगा रहे है।
अब तक इस आश्रम के सौजन्य से 52 देहदानियों ने मृत्युपरांत मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों के लिए देहदान का संकल्प लिया है। इनमे से अधिकतर देहदान ‘दधिचियों’ ने नेत्रदान का संकल्प भी लिया है जिनकी आँखों से कई नेत्रहीन दुनिया और प्रकृति की सुंदरता देख पाएंगे।देहदान के संबंध में आश्रम के सेवादारों का एक संकल्प वाक्य है कि देहदान के लिए न किसी का एक पैसा खर्च हो और न एक कदम चलना पड़े।
निःशुल्क स्वास्थ्य सेवा की अनूठी मिसाल संत मोती राम आश्रम
संत मोती राम आश्रम दीन-हीनो के लिए प्रतिदिन निःशुल्क स्वस्थ सेवाएं भी उपलब्ध करा रहा है जिसमे नगर के 87 चिकित्सक प्रतिदिन क्रमवार सुबह आश्रम में अपनी सेवायें देते हैं । इस दौरान मरीजों को निःशुल्क परामर्श तथा दवाईयां उपलब्ध कराई जा रही हैं । आश्रम में इन सबके अतिरिक्त गरीब बच्चो के लिए शिक्षण सामग्री तथा वस्त्रदान भी किया जाता है ।
महर्षि दधिचि ने धर्म की रक्षा के लिए किया था अपनी हड्डियों का दान
भारतीय धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि दधिचि को एक ऎसे महान ऋषि के रुप में स्थान प्राप्त है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देवताओं के मान समान की रक्षा की महर्षि दधीचि के त्याग की गाथा आज भी सभी के लिए प्रेरणा की स्त्रोत रही है। पौराणिक कथाओं मान्यता के अनुसार महर्षि दधीचि का स्थान एक महान दानी के रुप में स्थान पाता है।
दधीचि शिव के परम भक्त
दधीचि को भगवान शिव के भक्त के रूप में भी जाना जाता है। भगवान शिव के शक्ति से विच्छेह होने पर, वह एक एकांत स्थान में रहने के लिए एक जंगल में चले गए। पहली बार भगवान शिव अपने भक्तों के लिए एक ऋषि के रूप में प्रकट हुए, जिसमें दधीचि और उनके शिष्य शामिल थे, जो शिव की पूजा करते थे। भगवान शिव से उन्हें अस्त्र के समान देह की प्राप्ति भी होती है जिसे वह देवताओं को समर्पित कर देते हैं ।
वज्रयुद्ध की कथा
देवों के राजा इंद्र को एक बार वृत्रासुर नामक असुर ने देवलोक से बाहर निकाल दिया था. असुर को एक वरदान प्राप्त था जिससे उसे किसी भी हथियार से नहीं मारा जा सकता था । वह अजेय हो गया था अपनी शक्ति का उसने गलत उपयोग किया और दानव, वृत्रा ने भी अपने उपयोग के लिए और अपनी दानव सेना के लिए दुनिया का सारा पानी चुरा लिया। उसने ऐसा इसलिए किया ताकि अन्य सभी जीवित प्राणी प्यास और भूख से मर जाएं, स्वर्ग में अपने स्थान को चुनौती देने के लिए कोई मानव या ईश्वर जीवित न रहे । वहां भी अपना अधिकार स्थापित कर लिया ।
इंद्र, जो अपने राज्य को पुनः प्राप्त करने की सभी आशा खो चुके थे, ब्रह्मा जी की सहायता लेने गए । ब्रह्मा जी ने उन्हें श्री विष्णु के पास भेजा ओर तब न उन्होंने इंद्र को बताया कि ऋषि दधीचि की हड्डियों से बना हथियार ही वृत्रा को हरा सकता है । इंद्र और अन्य देवता ऋषि के पास गए, और उनसे वृत्रा को हराने में उनकी सहायता मांगी । दधीचि ने देवों के अनुरोध को स्वीकार कर लिया लेकिन कहा कि उनकी इच्छा है कि उनके पास अपने जीवन को त्यागने से पहले सभी पवित्र नदियों की तीर्थ यात्रा पर जाने का समय हो तब पवित्र नदियों के सभी जल को नैमिषारण्य में एक साथ लाया गया जिससे ऋषि को बिना समय गंवाए अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर प्राप्त हुआ । तब दधीचि ने योग द्वारा अपना जीवन त्याग दिया था जिसके बाद देवों ने उनकी रीढ़ से वज्रयुध का निर्माण किया, इस हथियार का इस्तेमाल असुर को हराने के लिए किया गया था, जिससे इंद्र ने देवलोक के राजा के रूप में अपना स्थान पुनः प्राप्त किया।
देहदान सबसे बड़ा दान
देहदान को सबसे बड़ा दान माना जाता है। जिंदा रहकर हर कोई तरह-तरह के दान करता है, लेकिन जो व्यक्ति अंगदान या देहदान करके जाता है वह मरने के बाद भी कई लोगों को नई जिंदगी देकर जाता है। इसलिए देहदान या अंगदान को सबसे महान दान माना गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देहदान और अंगदान में अंतर है। जी हां, दोनों सुनने में एक ही जैसा लगता है, लेकिन दोनों में काफी ज्यादा अंतर है। किसी भी व्यक्ति के मरने के बाद उसका देह यानि शरीर दान किया जाता है। मेडिकल रिसर्च व एजुकेशन को मृत व्यक्ति का शरीर दान किया जाता है। यह शरीर वहां के छात्रों के रिसर्च के काम आती है। रिसर्च में शोधकर्ता इंसानी शरीर को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। कुछ व्यक्ति मरने से पहले अपना शरीर दान करके जाते हैं। वहीं, कुछ व्यक्तियों के घरवाले उनका शरीर दान कर देते हैं।
देहदान और अंगदान में अंतर
देहदान और अंगदान में काफी ज्यादा फर्क होता है। देहदान में व्यक्ति का पूरा शरीर दान किया जाता है। यानि देहदान सिर्फ मरने के बाद ही किया जाता है। वहीं, अंगदान में आप शरीर के उस हिस्से को डोनेट कर सकते हैं, जिससे आपका यानि दानदाता का जीवन प्रभावित न हो। साथ ही आपके शरीर का वह हिस्सा किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित न हो। अंगदान में शरीर के कुछ अंगों को आप मरने से पहले भी दान कर सकते हैं। जैसे- कई जीवित व्यक्ति अपनी दो किडनी में से एक किडनी दान करते हैं, ताकि दूसरे की जान बचाई जा सके। ब्रेन डेड होने पर शरीर के सभी अंगों को दान में दिया जा सकता है। मृत शरीर के 3 घंटे तक आंखों की कॉर्निया जीवित रहती है, जिसे मृत व्यक्ति मरने से पहले या उसका परिजन दान कर सकता है। हमारे देश में किडनी, लिवर और कॉर्निया की सबसे ज्यादा डिमांड है। किसी भी मृत व्यक्ति के शरीर में सबसे कम समय तक कॉर्निया और सबसे ज्यादा समय तक किडनी जीवित रहती है। इन अंगों को मृत व्यक्ति के शरीर से निकालकर प्रत्यारोपित किया जा सकता है। शरीर के इन अंगों को निकालकर मृत व्यक्ति के शरीर को मेडिकल छात्रों को दान भी किया जा सकता है। पूरे शरीर के दान को देहदान कहते हैं।
देहदान क्यों जरूरी
मेडिकल छात्रों को एनेटोमी पढ़ाने के लिए देह यानि शरीर का इस्तेमाल किया जाता है। इससे छात्र शरीर के स्ट्रक्चर और वह किस तरह से काम करता है, इसके बारे में पढ़ते हैं। सर्जन्स, डेंटिस्ट्स, फिजिशियंश और अन्य हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स के कोर्स में यह सबसे अहम हिस्सा माना जाता है। मेडिकल कॉलेज को वॉल्टनरी डोनेशंस से मृत व्यक्ति का शरीर मिलता है। इसके अलावा पुलिस को मिले अज्ञात शव, जिसे कोई नहीं लेता है उन शवों को मेडिकल इंस्टीट्यूट में भेजा जाता है।
देहदान की क्या होती हैं शर्तें
हर व्यक्ति अपना देह दान कर सकता है। मेडिकल इंस्टीट्यूशंस द्वारा आसानी से देहदान को स्वीकार कर लिया जाता है। हालांकि कुछ ऐसी परिस्थितियां हैं, जिसमें देहदान को स्वीकार नहीं किया जाता है। जैसे- अगर किसी व्यक्ति का मौत के बाद पोस्टमार्टम किया जाता है, तो उस मृत व्यक्ति के देहदान को स्वीकार नहीं किया जाता है।
आप कैसे करें देहदान?
आप अपने जीवन में कभी भी देहदान का फैसला ले सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले आपको किसी मेडिकल कॉलेज या फिर बॉडी डोनेशन NGO से संपर्क करना होगा। यहां संपर्क करके आप देहदान के लिए अपना रजिस्टर करवा सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें कि इसका फैसला लेने से पहले आपको अपने परिजन और परिवार वालों से सलाह लेने की आवश्यकता है। क्योंकि इस निर्णय में कई बार परिजन साथ नहीं देते हैं। इसलिए देहदान का फैसला लेने से पहले एक बार अपने परिवार वालों से अपने निर्णय के बारे में सलाह जरूर लें।