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Karwa Chauth: करवा चौथ के दिन चंद्रमा का उदय 8 बजकर 10 मिनट पर, रोहिणी नक्षत्र का शुभ संयोग

Karwa Chauth 2022 Moon Rise: digi desk/BHN /जबलपुर/हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व है। इस साल करवा चौथ पर रोहिणी नक्षत्र का शुभ संयोग बन रहा है, जिसके कारण इस व्रत का महत्व और बढ़ रहा है। करवा चौथ व्रत निर्जला रखा जाता है। रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोला जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति को लंबी और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे ने बताया, करवा चौथ के दिन कृत्तिका नक्षत्र शाम 07 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। इसके बाद रोहिणी नक्षत्र लगेगा, जो 14 अक्टूबर को रात 09 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। इस दिन चंद्रमा वृषभ राशि और सूर्य कन्या राशि में विराजमान रहेंगे।

27 नक्षत्रों में आठवां नक्षत्र है पुष्य। सभी नक्षत्रों में इस नक्षत्र को सबसे अच्छा माना जाता है। रोहिणी नक्षत्र चंद्रमा का पसंदीदा नक्षत्र है, क्योंकि यह यहां सबसे लंबे समय तक रहता है। करवा चौथ के दिन रोहिणी नक्षत्र में चंद्रदेव को अर्घ्य देने से जीवन में संपन्नता और खुशहाली आने की मान्यता है। चंद्रोदय रात्रि 8 बजकर 10 मिनट पर होगा।

करवा चौथ की पूजन सामग्री में सबसे आवश्यक वस्तु करवा होता है। यह मिट्टी का बना टोंटी वाला छोटा सा कलश होता है, जिसके ऊपर ढंकने के लिए मिट्टी का दीया होता है। मिट्टी की जगह पीतल का करवा भी लिया जा सकता है, लेकिन मिट्टी के करवे की अधिक मान्यता होती है। मिट्टी के दो दीये। करवे में लगाने के लिए कांस की तीलियां। पूजन के लिए कुमकुम, चावल, हल्दी, अबीर, गुलाल, मेहंदी, मौली, फूल, फल, प्रसाद आदि। रात में चंद्र दर्शन के बाद पति का चेहरा देखने के लिए छलनी। जल से भरा कलश या आचमनी। चौकी, करवा चतुर्थी पूजन का पाना अर्थात् चित्र जिसमें चंद्रमा, शिव, पार्वती, कार्तिकेय आदि के चित्र बने होते हैं। करवा चौथ कथा की पुस्तक, धूप, दीप। सुहाग की सामग्री जिसमें हल्दी, मेहंदी, काजल, कंघा, सिंदूर, छोटा कांच, बिंदी, चुनरी, चूड़ी। करवे में भरने के लिए गेहूं, शकर, खड़े मूंग।

करवा चौथ पूजन विधि

  • सबसे पहले सूर्योदय पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत होकर अपने घर के पूजा स्थान को साफ स्वच्छ कर लें। भगवान श्री गणेश का ध्यान करते हुए करवा चौथ व्रत का संकल्प लें। पूरे दिन निर्जला रहें।
  • सामने दीवार पर करवा चौथ पूजा का पाना चिपकाएं। नीचे चौकी पर एक करवा रखें जिसमें गेहूं, चावल या शकर भरे जाते हैं। सामने पाने पर गणेशजी से प्रारंभ करके समस्त पूजन सामग्री से पूजन करें। करवे का पूजन करें। करवे पर स्वस्तिक बनाएं फल रखें, फूल अर्पित करें, कुछ मुद्रा अर्पित करें। करवे के ढक्कन में खड़े हरे मूंग या शकर भर दें।
  • गणेश गौरी का पूजन करें। गौरी को समस्त सुहाग की सामग्री भेंट करें।
  • इसके बाद करवा चतुर्थी व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। कथा सुनने से पहले हाथ में चावल के 13 दानें लें। इन दानों को साड़ी के छोर पर बांध लें।
  • इस प्रकार तीन बार पूजन किया जाता है। सुबह पूजा करने के बाद दोपहर में चार बजे और फिर रात्रि में चंद्रोदय के पूर्व। तीनों बार की पूजा हो जाने के बाद रात्रि में चंद्रोदय की प्रतीक्षा की जाती है।
  • रात्रि में चंद्रोदय होने पर चंद्र देव का पूजन करें। जल का अ‌र्घ्य दें, साड़ी के छोर में बंधे चावल के 13 दानें निकालकर उन्हें अ‌र्घ्य के साथ चंद्र को अर्पित करें। दीपक से चंद्र की आरती करें। फिर छलनी में से पति का चेहरा देखें। इसके बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें और भोजन ग्रहण करें।
  • पूजा में उपयोग किया हुआ करवा सास या सास के समान किसी सुहागिन महिला को भेंट करें।

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