Mahakal lok 2022 know the history of ujjain mahakaleshwar from dwapar era to mahakal temple: digi desk/BHN/ उज्जैन/ आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् । भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥ इसका तात्पर्य यह है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है। देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ‘महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग’ उज्जैन में स्थित है। इतिहास के पन्नों को देखा जाए तो ज्ञात होता है कि महाकाल मंदिर की स्थापना द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पालनहार नंद जी के आठ पीढ़ी पूर्व हुई थी। शिवपुरण के अनुसार मंदिर के गर्भ गृह में मौजूद ज्योर्तिलिंग की प्रतिष्ठा नन्द से आठ पीढ़ी पूर्व एक गोप बालक द्वारा की गई थी।
महाकवि कालिदास ने महाकाल की भव्यता का बहुत सुंदर वर्णन किया है। आज भी कोई सहित्यकार उज्जैन या मालवा को केन्द्र में रखकर कुछ रचना करता है तो महाकाल का स्मरण जरुर करता है। इस मंदिर की महिमा का वर्णन बाणभट्ट, पद्मगुप्त, राजशेखर, राजा हर्षवर्धन, कवि तुलसीदास और रवीन्द्रनाथ की रचनाओं में भी मिलता है। मंदिर द्वापर युग का है लेकिन समय -समय पर इसका जीर्णोंद्धार होता रहा है। मंदिर परिसर से ईसवीं पूर्व द्वितीय शताब्दी के भी अवशेष मिले हैं, जो इस बात का प्रमाण है। दसवीं शताब्दी के राजशेखर, ग्यारहवी शताब्दी के राजा भोज ने न केवल महाकाल का स्मरण किया, बल्कि राजा भोज ने तो महाकाल मन्दिर को पंचदेवाय्रान से सम्पन्न भी कर दिया था। महाकालेश्वर का विश्व-विख्यात मन्दिर पुराण-प्रसिद्ध रुद्र सागर के पश्चिम में स्थित रहा है। महाशक्ति हरसिद्धि माता का मन्दिर इस सागर के पूर्व में स्थित रहा है, जो आज भी वहीं है।
ग्रंथों के अनुसार 14वीं और 15वीं सदी के ग्रंथों में महाकाल का उल्लेख मिलता है। 18वीं सदी के चौथे दशक में मराठा राजाओं का मालवा पर आधिपत्य होने के बाद पेशवा (प्रधानमंत्री) बाजीराव प्रथम ने उज्जैन का प्रशासन अपने विश्वस्त सरदार राणौजी शिंदे को सौंपा। राणौजी के दीवान थे सुखटंकर रामचंद्र बाबा शैणवी। इन्होंने ही 18वीं सदी के चौथे-पांचवें दशक में मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। वर्तमान में जो महाकाल मंदिर स्थित है उसका निर्माण राणौजी शिंदे ने ही करवाया है।
तीन भागों में है मंदिर
महाकाल मंदिर तीन भागों में बना हुआ है। दिव्य ज्योतिर्लिंग मंदिर के सबसे नीचे के भाग में प्रतिष्ठित है। मध्य के भाग में ओंकारेश्वर का शिवलिंग है तथा सबसे ऊपर वाले भाग पर साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी पर खुलने वाला नागचंद्रेश्वर मंदिर है। महाकाल मंदिर को पृथ्वी का सेंटर पाइंट या नाभि कहा जाता है। क्योंकि कर्क रेखा शिवलिंग के ठीक ऊपर से गुजरी है।