Pitru paksha will be from september 25 to september 25 ancestors get peace by offering prayers: digi desk/BHN/हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष भरद्रपक्ष की पूर्णिमा तिथि और आश्विन महा के कृष्णा पक्ष की प्रतिपदा तक पितृपक्ष रहता है। पितृपक्ष के दौरान पितरों की पूजा और उनकी आत्मा शांति के लिए तर्पण या पिंडदान करने की परंपरा निभाई जाती है। पितृपक्ष के 15 दिन मैं पितरों की पूजा तर्पण और पिंडदान करने से पितर प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषाचार्य डॉ पंडित गणेश शर्मा ने बताया कि गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पितृगण तिथि आने पर वायु रूप मैं घर के दरवाजे पर दस्तक देते हैं वह अपने स्वजनों से श्रद्धा की इच्छा रखते हैं। जब उनके पुत्र या कोई सगे संबंधी श्राद्ध कर्म करते हैं तो वह तृप्त सोकर आशीर्वाद देते हैं पितरों की प्रसंता से दीर्घायु संपत्ति धन विद्या राज्य सुख स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पितरों का श्राद्ध करना क्यों जरूरी
शास्त्रों में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसका उसके परिवार के सदस्यों द्वारा श्राद्धकर्म करना बहुत ही जरूरी होता है। अगर विधि विधान से मृत्यु के बाद परिवार के सदस्यों का तर्पण पिया पिंडदान ना किया जाए तो उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। पितृगण की पिंडदान ना करने पर उसकी आत्मा मृत्यु लोक में भटकती रहती है। मान्यताओं के अनुसार हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है लेकिन पितृपक्ष के बुरांश राज और गया में पिंडदान करने का अलग ही महत्व होता है। पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए पितृपक्ष मैं उनका श्राद्ध करना चाहिए।
पितरों का श्राद्धकर्म कब और कैसे करें
मान्यता है जिस पितर की मृत्यु जिस तिथि को होती है उसी किसी को श्राद्धकर्म किया जाता है। अगर किसी परिजन की मृत्यु की सही तारीख पता नहीं है तो आश्विनी अमावस्या के दिन उसका श्राद्ध किया जा सकता है। पिता की मृत्यु होने पर अष्टमी तिथि और माता की मृत्यु होने पर नवमी तिथि तय की गई है। जब किसी व्यक्ति की मृत्यु दुर्घटना में हुई हो तो श्राद्ध चतुर्दशी तिथि पर करना चाहिए। आर्थिक कारण या अन्य कारणों से यदि कोई व्यक्ति बड़ा श्राद्ध नहीं कर सकता लेकिन अपने पितरो की शांति के लिए वास्तव मैं कुछ करना चाहता है तो उसे पूर्ण श्राद्ध भाव से अपने समर्थन अनुसार उपलब्ध अत्र,साग-पाद -फल और जो संभव हो सके उतनी दक्षिणा किसी ब्राह्मण को आदर भाव से दे देनी चाहिए।
श्राद्ध की सामग्री व तर्पण विधि
- श्राद्ध में गाय का दूध और उन से बनी हुई वस्तु जो धान,तेल,गेहूं, आम,अनार,खीर नारियल,अंगूर, चिरौंजी,मिठाई, मटर और सरसों या तिल का तेल प्रयोग करना चाहिए।
- पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण करने से तात्पर्य उन्हें जल देना है। सभी तर्पण की सामग्री लेकर दक्षिण की ओर मुख करके बैठ जाएं। अपने हाथ में जल,कुशा,अक्षत, पुष्प और काले तिल लेकर दोनों हाथ जोड़कर पितरों का ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करेंगे। अपने पितरों का नाम लेते वह आप कहें कृपया यहां आकर मेरे दिए जल को आप ग्रहण करें। जल पृथ्वी पर 5-7 या 11 बार अंजली से गिराए।
- आचार्य को भोजन कराने से पूर्व गाय,कुत्ता,चींटी, और देवताओं के नाम की पूरी निकालनी चाहिए।
- यदि कितनी परिस्थिति मैं यह भी संभव ना हो तो 7-8 मोटी तिल, जल सहित किसी योग ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए। इससे वी श्राद्ध का पुण्य प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में गाय को विशेष महत्व दिया गया है। किसी गायक को भरपेट घास खिलाने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं।
पितरपक्ष श्राद्ध कर्म की तिथियां
- 10 सितंबर 2022- पूर्णिमा का श्राद्ध/ प्रतिपदा का श्राद्ध
- 11 सितंबर 2022- द्वितीया का श्राद्ध
- 12 सितंबर 2022- तृतीया का श्राद्ध
- 13 सितंबर 2022- चतुर्थी का श्राद्ध
- 14 सितंबर 2022- पंचमी का श्राद्ध
- 15 सितंबर 2022- षष्ठी का श्राद्ध
- 16 सितंबर 2022- सप्तमी का श्राद्ध
- 18 सितंबर 2022- अष्टमी का श्राद्ध
- 19 सितंबर 2022- नवमी श्राद्ध
- 20 सितंबर 2022- दशमी का श्राद्ध
- 21 सितंबर 2022- एकादशी का श्राद्ध
- 22 सितंबर 2022- द्वादशी (सन्यासियों का श्राद्ध)
- 23 सितंबर 2022- त्रयोदशी का श्राद्ध
- 24 सितंबर 2022- चतुर्दशी का श्राद्ध
- 25 सितंबर 2022- अमावस्या का श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध महालय श्राद्ध…..