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Jaya Ekadashi : कब है जया एकादशी? जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

Jaya Ekadashi 2022: digi desk/BHN/नई दिल्ली/   हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को जया एकादशी का व्रत रखा जाता है जया एकादशी को अजा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार जया एकादशी का व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है। इस बार उन्हें एकादशी का व्रत 22 एवं 23 अगस्त को रखा जाएगा। पंचांग अनुसार इस बार 2 दिन एकादशी तिथि पड़ रही है जिसके कारण पहले दिन स्मार्त व दूसरे दिन वैष्णव को व्रत रखना चाहिए।

पंचांग अनुसार एकादशी- स्थानीय पंचांग भुवन विजय पंचांग अनुसार एकादशी तिथि 21 अगस्त को रात्रि 03:46 को प्रारंभ हो रही है जो 22 अगस्त दिन-रात रहेगी और इसका समापन 23 अगस्त को प्रातः 05:42 पर होगा। इसके बाद द्वादशी तिथि का प्रारंभ हो जायेगा जो की 24 अगस्त प्रातः 07:44 तक उसके बाद त्रयोदशी।

किस दिन करें व्रत-शास्त्रों की माने तो जब भी एकादशी तिथि की वृद्धि होती है तब 2 दिन एकादशी पड़ती है तो ऐसी स्थिति में प्रथम दिन स्मार्त(गृहस्थ) को एवं द्वितीय दिन वैष्णव को एकादशी व्रत करना चाहिए। क्योंकि गृहस्थ लोगो को एकादशी व्रत का पारणा द्वादशी को करना चाहिए क्योंकि त्रयोदशी में पारणा का दोष है। और वैष्णवो को त्रयोदशी में पारणा का कोई दोष नही लगता। अब अगर इस स्थिति में संस्कृत श्लोक 23 तारीख को एकादशी का व्रत करेंगे तो 24 तारीख को पारणा के समय त्रयोदशी तिथि लग जाएगी इस कारण से वैष्णव को 23 और स्मार्त को 22 अगस्त के दिन एकादशी का व्रत करना चाहिए।

वैष्णव और स्मार्त में अंतर

स्मार्त

सांसारिक नियमों का पालन करने वाले लोग स्मार्त कहे जाते हैं. अर्थात् ऐेसे व्यक्ति जो वेद-पुराणों के पाठक, आस्तिक, पंचदेवों (गणेश, विष्णु,‍ शिव, सूर्य व दुर्गा) के उपासक और गृहस्थ धर्म का पालन करने वाले होते हैं। उन्हें स्मार्त कहा जाता है। स्मार्त श्रुति स्मृति में विश्वास रखता है। उसकी आस्था पांच प्रमुख देवताओं में होती है वह स्मार्त है। प्राचीनकाल में देश भर में अलग-अलग देवता को मानने वाले अलग अलग संप्रदाय के लोग थे। श्री आदिशंकराचार्य द्वारा यह प्रतिपादित किया गया कि सभी देवता परमब्रह्म परमात्मा के स्वरूप हैं। तब जन साधारण ने उनके द्वारा बतलाए गए मार्ग को अंगीकार कर लिया तथा स्मार्त कहलाये।

वैष्णव

जो व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए श्रीहरि को अपना सर्वस्व सौंप देता है और संन्यास ग्रहण करके भागवत मार्ग पर बढ़ जाता है। वैष्णव सम्प्रदाय में शामिल होने के लिए इसके गुरु या धर्माचार्य से विधिवत दीक्षा लेनी होती है। जिसके बाद गुरु से कंठी या तुलसी माला गले में ग्रहण करना होता है। वैष्णव व्यक्ति के शरीर पर तप्त मुद्रा से शंख चक्र का निशान गुदवाया जाता है। ऐसे ही धर्मनिष्ठ व्यक्ति ही वैष्णव कहे जा सकते है।

वैष्णव गृहस्थ धर्म से दूर रहने वाले लोग हैं। वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है। इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं। जिन्हें छ: गुणों ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज से सम्पन्न होने के कारण भगवान या ‘भगवत्’ कहा गया है। उन भगवत् के उपासक भागवत कहे जाते हैं।

अजा एकादशी का महत्व

धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि अजा एकादशी सब पापों का नाश करने वाली है। जो भगवान ऋषिकेश का पूजन करके इसका व्रत करता है,वह इस लोक में सुख भोगकर अंत में विष्णुलोक में जाता है। इस व्रत का फल अश्वमेघ यज्ञ,तीर्थों में दान-स्नान,हजारों वर्षों की तपस्या,कन्यादान आदि से मिलने वाले फलों से भी अधिक होता है। इस एकादशी का व्रत मन को निर्मल बनाकर बुद्धि को स्थिर रखता है।

 

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