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मध्‍य प्रदेश में दूसरी बार गंभीर रूप में आ रहा कोरोना, भर्ती मरीजों में 20 से 50 फीसद आइसीयू में

Coronavirus : भोपाल/ कोरोना की दूसरी लहर में मरीजों की हालत गंभीर हो रही है। कोरोेना से ज्यादा संक्रमित जिलों भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, विदिशा आदि में 20 से 50 फीसद तक मरीज आइसीयू में हैं। 20 नवंबर की स्थिति में सरकारी या अनुबंधित अस्पतालों में भोपाल में 564 में 126, इंदौर में 696 में 141, जबलपुर में 83 में 45, ग्वालियर में 173 में 50 मरीज आइसीयू में थे।

कोविड-19 को लेकर राज्य सरकार के सलाहकार व हमीदिया के छाती व श्वास रोग विभाग के एचओडी डॉ. लोकेन्द्र दवे ने कहा कि पिछली बार करीब 40 फीसद मरीज लक्षण वाले थे, लेकिन नई लहर में 70 फीसद लक्षण वाले हैं। इसकी बड़ी वजह यह कि कांटेक्ट ट्रेसिंग नहीं होने के कारण बिना लक्षण वाले मरीजोंं की पहचान ही नहीं हो पा रही है। सिर्फ लक्षण वाले मरीज ही अस्पताल पहुंच रहे हैं। मरीजों के गंभीर होने की भी यही वजह है।

सरी बात यह कि ठंड में अस्थमा, क्रॉनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसआर्डर (सीओपीडी), एलर्जी समेत फेफड़े की कई बीमारियों के मरीज 30 फीसद तक बढ़ जाते हैं। इन मरीजों को कोरोना होने पर वह गंभीर हो रहे हैं।

25-26 नवंबर तक और बढ़ सकते हैं मरीज

छाती व श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ. पराग शर्मा ने कहा कि दीपावली व धनतेरस के दौरान बाजारों में भीड़ में जो लोग संक्रमित हुए होंगे, उन पर बीमारी का ठीक से असर 25-26 नवंबर तक दिखाई देगा। डॉ. शर्मा ने बताया कि इस बार कई मरीज निमोनिया के साथ इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। जांच में कोरोना संक्रमित मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि मरीज गंभीर हालत में आ रहे हैं, लेकिन यह राहत की बात है कि अभी मौत की दर पिछली लहर जैसी नहीं है।

इसलिए जरूरी है कांटेक्ट ट्रेसिंग

प्रदेश में अभी तक के आंकड़ों में सामने आया है कि कोरोना से संक्रमित एक व्यक्ति करीब 10 लोगों को संक्रमित करता है। इनमें ज्यादातर लोग उसके पहले संपर्क वाले होते हैं। मार्च में प्रदेश में कोरोना संक्रमण की दस्तक के साथ ही मरीज के बताए अनुसार उसके संपर्क में आए लोगों की पहचान स्वास्थ्य विभाग व जिला प्रशासन करता था। घर-घर जाकर पहले संपर्क में आए लोगों की जांच कराई जा रही थी। दो महीने पहले यह व्यवस्था प्रदेश भर में बंद कर दी गई। अब मरीजों की जिम्मेदारी है कि वह अपने संपर्क में आए लोगों को जांच के लिए फीवर क्लीनिक भेजें, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इस वजह से मरीजों की फौरन पहचान नहीं हो पा रही है।

 

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