Nirjala Ekadashi 2022: digi desk/BHN/नई दिल्ली/ इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 10 जून शुक्रवार को आ रहा है। हिंदू धर्म के अनुसार साल भर पड़ने वाली सभी एकादशी में निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन और अत्यंत फलदायी माना गया है। जिस तरह हर एकादशी से जुड़ी धार्मिक कथाएं धर्म ग्रंथो में वर्णित है। उसी तरह निर्जला एकादशी से संबंधित धार्मिक कथा उल्लेखित है। निर्जला एकादशी को पांडव या भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। आइए जाने एकादशी के इन नामों से जुड़ी पौराणिक कथा।
भीमसेनी एकादशी यह नाम क्यों पड़ा
एक बार की बात है भीमसेन ने व्यास जी से कहा कि हे पितामह भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि आप सभी एकादशी का व्रत करें। लेकिन महाराज ने उनसे कहा कि भाई मैं भगवान की पूजा आदि तो कर सकता हूं, दान भी दे सकता हूं, लेकिन भोजन के बिना नहीं रह सकता। इसके बाद व्यास जी ने कहा कि हे भीमसेन यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रत्येक माह की दोनों तिथियों को अन्न मत खाया करो। भीमसेन ने इसके उत्तर में कहा कि मैं तो पहले ही कह चुका हूं कि मैं भूख सहन नहीं कर सकता। अगर साल में कोई एक ही व्रत हो तो वो मैं रख सकता हूं। क्योंकि मेरे पेट मैं वृक नामक अग्नि है जिसके कारण मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार ही करने से मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। व्यास जी ने कहा हे पुत्र, बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं। जिनसे बिना परिश्रम के ही स्वर्ग की प्राप्ति हो जाएगी। ठीक उसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है। व्यास जी के ये वचन सुनकर भीमसेन भयभीत हो गए और नरक में जाने के नाम से डर गए और कहने लगे कि अब क्या करुं? एक माह में दो व्रत तो नहीं कर सकता। लेकिन हां वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न मैं अवश्य कर सकता हूं। वर्ष में एक दिन व्रत करने से अगर मुक्ति हो सकती है तो कृपा करके ऐसा कोई व्रत बताइए।
भीम को ऐसे डरता देख व्यासजी ने भीमसेन से कहा कि वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है उसे निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। अगर तुम स्वर्ग की प्राप्ति चाहते हो इस निर्जला एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के अलावा जल वर्जित होता है। वहीं आचमन में छ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए। अन्यथा वह मध्य पान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है। व्यासजी के अनुसार इस एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न किया जाए। समस्त एकादशी तिथियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्रह्मणों को दान आदि देना चाहिए इसके बाद फिर स्वयं भोजन करना चाहिए। इसका फल पूरे एक वर्ष की संपूर्ण एकादशी तिथियों के समान होता है।
व्यासजी ने भीमसेन ने कहा कि इस व्रत के बारे में मुझको स्वयं भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य सभी तीर्थों और दानों से अधिक है। व्यक्ति द्वारा केवल एक दिन निर्जल रहने से तमाम पापों से मुक्ति मिल जाती है। जो भी जातक निर्जला एकादशी का व्रत करता है। उसे मृत्यु के समय यमदूत आकर नहीं घेरते है। बल्कि भगवान के पार्षद उसे पुष्पक विमान में बैठाकर स्वर्ग को ले जाते है। संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत माना जाता है। श्रद्धा पूर्वक इस व्रत को करना चाहिए और इस दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण तथा गौदान करना चाहिए।
धार्मिक कथाओं के अनुसार व्यास जी की आज्ञानुसार भीमसेन ने इस व्रत को किया था। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी कहते हैं। निर्जला व्रत करने से पहले भगवान से प्रार्थना करना चाहिए। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन जल से भरा हुआ एक घड़ा वस्त्र से ढंककर स्वर्ण सहित दान करना बहुत लाभकारी माना जाता है।