भास्कर हिंदी न्यूज़ सतना
उप संचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास ने बताया कि जिले की धान फसल में निम्नानुसार कीट एवं बीमारी देखा गया है, जिसका प्रकोप बढ़ने की संभावना है। वर्तमान समय में धान की फसल में कीट एवं बीमारी के लक्षण एवं उपचार की अनुशंसा की गई है।
केसवर्म (वंकी, बका)- इस कीट का प्रकोप कंसे फूटने की अवस्था से लेकर पुष्पन अवस्था तक होती है। (प्रायः अगस्त से अक्टूबर माह के बीच तक) इसमें इल्लिया पत्ती के ऊपरी सिरे को काट कर तथा पत्तियों को मोड़ कार पांेगडी (नलीनुमा) बना लेती है और पोंगड़ी के अन्दर इल्लियां हरे पदार्थ को खुरच-खुरच कर खाती है, जिससे पत्तियों में सफेद धारी बन जाती है एवं धीरे-धीरे पत्तियों का हरापन सफेदी में बदल जाता है। इस कीट से फसल की सुरक्षा हेतु क्युनालफास 25 ई.सी. 2 मि.ली. या क्लोरोपायरीफास 20 ई.सी. 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी (40 एमएल प्रति स्प्रेपर) की दर छिडकाव करें। एक एकड हेतु 200 लीटर (13 स्प्रेयर) पानी का उपयोग करने पर कीट को समाप्त कर फसल बचाया जा सकता है।
गंगाई कीट- इस कीट को स्थानीय भाषा में करील या पांेगा के नाम से भी जानते है। प्रायः इस कीट का प्रकोप कंसे फूटने की अवस्था से (माह अगस्त से 15 सितंबर तक अधिक होता है) इसकी गुलाबी रंग की इल्ली जड़ों के पास से छेदकर कंसों को काटती है जिससे प्याज के पत्तियों जैसी सफेद गोल पोंगड़ी बन जाती है। जिससे प्रभावित कंसो में बालियां नही निकलती। प्रति वर्ग मी0 5 प्रतिशत प्रभावित कंसे दिखने पर तत्काल फोरेट-10-जी दानेदार दवा का छिड़काव 4 किलो प्रति एकड़ की दर से करें। उक्त दवा का उपयोग करते समय खेत में 2 से 3 सेंटीमीटर पानी का भराव होना चाहिए।
तना छेदक- धान के पौधे में अगर मध्य भाग सूख रहा हो और खींचने से आसानी से निकल आये तो यह तना छेदक की समस्या हो सकती है। इसके नियंत्रण हेतु क्युनालफास 25 ई.सी. 2 मि.ली या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। 200 लीटर प्रति एकड़ पानी का उपयोग करें।
धान का झुलसा रोग-यदि धान फसल की पत्तियां ऊपर से सूख रही है और पत्ती के दोनों किनारे सूखने जैसे लक्षण प्रदर्शित करते हुये पूरी पत्ती बाद में सफेद हो जाये तो यह झुलसा रोग के लक्षण होते है। इसके नियंत्रण हेतु खेत का पानी निकाल दें और कॉपर आक्सी क्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर एवं स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 2.5 ग्राम प्रति 10 लीटर एक स्प्रेयर डब्बे में 50 ग्राम काॅपर आक्सीक्लोराइड एवं लगभग 5 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन को एक साथ घोलकर छिड़काव करें या कासुगामाइसिन 1.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें, इसके अतिरिक्त इस रोग के नियंत्रण हेतु 20 किलो कच्चा गोबर 100 लीटर पानी में घोल कर प्रयोग कारने से भी लाभ मिलता है। उप संचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास ने जिले के सभी किसानों से अपील की है कि किसान अपने खेतों का सतत् निरीक्षण करते हुए उपरोक्तानुसार लक्षणों के आधार पर अनुशंसित दवाओं का निर्धारित मात्रा में उपयोग करते हुए फसल का उपचार करें, जिससे फसल को संभावित नुकसान से बचाया जा सके। आवश्यकतानुसार अपने क्षेत्र के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी एवं वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी या जिले मे स्थापित कीट व्याधि नियंत्रण कक्ष से सम्पर्क कर सकते है।