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साढ़े तीन दिन के लिए मेहमान बनकर मुरैना गांव पहुंचे भगवान श्रीकृष्ण

मुरैना/ आज भी मुरैना शहर का अंग मुरैना गांव भगवान श्रीकृष्ण की मेहमानी के लिए अपनी विशेष पहचान रखता है। किवदंतियों के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण हर साल दीपावली के दूसरे दिन पड़वा को मुरैना गांव में आते हैं। इसके बाद साढ़े तीन दिन की मेहमानी करके वापस द्वारिका चले जाते हैं। मुरैना गांव के दाऊजी मंदिर पर यह परपंरा पिछले 700 साल से चली आ रही है। रविवार को भी इस परंपरा का निर्वहन किया गया।

भगवान द्वारिकाधीश यहां साढ़े तीन दिन के लिए आते है। बताया जाता है कि इस दौरान द्वारिका स्थित उनके मंदिर में पूजा पाठ को बंद कर दिया जाता है। भगवान मुरैना गांव दाऊजी मंदिर पर विराजमान रहते हैं। इस दौरान तीन दिन तक लीला मेला का आयोजन किया जाता है। हालांकि कोरोना संक्रमण के चलते इस साल मेला का आयोजन नहीं किया जाएगा लेकिन परंपरा के अनुसार रविवार को गाजे बाजे के साथ मुरैना गांव में लाया गया। इस दौरान सैंकड़ों की संख्या में लोगों ने पहुंचकर भगवान की आगवानी की।

उल्लेखनीय है कि मुरैना गांव के संत गोपराम स्वामी को 700 साल पहले भगवान द्वारिकाधीश ने स्वप्न में दर्शन दिए थे। चूंकि मुरैना गांव तक भगवान श्रीकृष्ण गाय चराने के लिए आते थे। जिस पर गोपमरा स्वामी भगवान के परमभक्त थे। जिस पर भगवान ने उन्हें मुरैना में आकर रहने का आशीर्वाद दिया था। तभी से यहां भगवान को साढ़े तीन दिन के लिए पडवा गोवर्धन पूजा के दिन लाया जाता है। दोपहर बाद भगवान आते है। इसके बाद तीन दिन तक यहां विराजमान रहते हैं इस दौरान कई तरह के आयोजन मुरैना गांव दाऊजी मंदिर पर किए जाते है। इस दौरान प्रतीकात्मक भगवान की लीलाओं का भी आयोजन किया जाता है। रविवार को दो बालकों को भगवान के वेष में घोड़ा बग्गी पर बैठाकर लाया गया। इसके बाद भक्त इन बालकों को कंधों पर बैठाकर मंदिर तक लेकर आए। गाजे बाजे के साथ भगवान को मंदिर तक लाया गया। इसके बाद यहां आयोजन शुरू हो गए। हालांकि इस साल तीन दिन लगने वाले मेला का आयोजन नहीं किया जाएगा।

नाग नाथने का होगा आयोजन
तीन दिन के कार्यक्रम में मुरैना गांव तालाब पर कालिया नाग नाथने का आयोजन किया जाता है। दरअसल ऐसा माना जाता है कि स्वामी परिवार में हर साल किसी न किसी बालक का जन्म होता है। जिसे भगवान श्रीकृष्ण का अवतार मानकर नाग नाथने की परंपरा का निर्वहन किया जाता हैं। इसके बाद दौज पर यहां घुड़दौड़ का भी आयोजन किया जाता हैं जहां क्षेत्र के घोड़ा पालने वाले लोग अपने घोड़ों को लेकर यहां पहुंचते है। जिसके बाद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। लेकिन इस बार इस घुड़दौड़ पर भी संशय बना हुआ है। क्यों कि मेला का आयोजन नहीं किया जा रहा है।

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