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Spiritual: रवियोग व सुकर्मा योग के शुभ संयोग में शनिवार को दुर्गा अष्टमी, कार्य के मिलेंगे शुभ परिणाम

Durga ashtami on saturday in auspicious combination of ravi yoga and sukarma yoga work will get auspicious results in this yoga: digi desk/BHN/छिंदवाड़ा/  चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गा अष्टमी कहते है। इस अष्टमी को श्री तारा अष्टमी,अशोकाष्टमी आदि नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माँ के महागौरी रूप का पूजन किया जाता है। इस वर्ष अष्टमी 09 अप्रैल 2022 , शनिवार को पड़ रही है। पञ्चांग अनुसार अष्टमी तिथि 08 अप्रैल रात्रि 08:19 से 09 अप्रैल रात्रि 10:07 तक रहेगी। सूर्योदय के अनुसार अष्टमी का व्रत पूजन आदि कार्य 09 अप्रैल को ही किया जावेगा। शास्त्रों अनुसार कहा गया है कि अगर जो व्यक्ति नवरात्र में 9 दिन व्रत नही कर पाता तो वह अगर प्रथम दिन ओर अष्टमी के दिन व्रत कर ले तो उसे सम्पूर्ण नवरात्र के व्रत का फल प्राप्त हो जाता है।

रवियोग- ज्योतिष के अनुसार सूर्य जिस नक्षत्र पर हो, उस नक्षत्र से वर्तमान चंद्र नक्षत्र चौथा, छठा, नवां, दसवां, तेरहवां और बीसवां हो तो रवियोग बनता है। रवियोग समस्त दोषों को नष्ट करने वाला माना गया है। इसमें किया गया कार्य शीघ्र फलीभूत होता है।

सुकर्मा योग- ज्योतिष शास्त्र में सुकर्मा योग का विशेष महत्व है जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि इस योग में कोई शुभ कार्य करना चाहिए। मान्यता अनुसार इस योग में नई नौकरी ज्वाइन करें या घर में कोई धार्मिक कार्य का आयोजन करें। इस योग में किए गए कार्यों में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती है और कार्य शुभफलदायक होता है। ईश्वर का नाम लेने या सत्कर्म करने के लिए यह योग अति उत्तम है।

दुर्गाष्टमी का महत्व- दुर्गाष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा होती है। देवी महागौरी सुख, सफलता, धन, धान्य, संपत्ति और विजय की दाता हैं. उन्‍हें मां अन्नपूर्णा का स्वरूप भी माना जाता है। इसलिए कहा जाता है कि जिन लोगों पर उनकी कृपा हो जाए उनके जीवन में कभी भी धन धान्य की कमी नहीं रहती है।

कन्‍याओं को मां दुर्गा का स्‍वरूप माना गया है. इसलिए दुर्गाष्‍टमी के दिन कन्‍याओं की पूजा करके उनका आशीर्वाद लिया जाता है. ऐसा करने से मां दुर्गा प्रसन्‍न होती हैं। कन्‍या पूजन के लिए छोटी बालिकाओं को खीर-पूरी, हलवे का सम्‍मानपूर्वक भोजन कराएं। उन्‍हें तिलक लगाकर भेंट दें और उनका आशीर्वाद लें।

यह आलेख ज्योतिषाचार्य पं.सौरभ त्रिपाठी द्वारा लिखा गया है (साभार)

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