Supreme court dismisses review petition of madhya pradesh government in uapa case: digi desk/BHN/नई दिल्ली/सुप्रीम कोर्ट ने UAPA मामल में एक बड़ा फैसला लिया है। कोर्ट ने अपने 2021 के आदेश के खिलाफ मध्य प्रदेश सरकार की एक समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया है। इस याचिका में कहा गया है कि मजिस्ट्रेट गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत, मामले से संबंधित जांच को पूरा करने के लिए समय के विस्तार से संबंधित अनुरोध पर विचार करने के लिए सक्षम नहीं होगा।
UAPA याचिका खारिज
इस पूरे मामले पर जस्टिस उदय उमेश ललित, एस रवींद्र भट और बेला एम त्रिवेदी की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने यह फैसला लिया, जिसमें मध्य प्रदेश सरकार की समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया गया, इस याचिका में UAPA मामले में 2021 के आदेश की समीक्षा की मांग की गई थी।
क्या कहा कोर्ट ने
उच्च कोर्ट ने कहा कि ‘जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाने के अनुरोध पर विचार करने वाला एकमात्र सक्षम प्राधिकारी ‘कोर्ट’ होगा जैसा कि यूएपीए की धारा 43-डी (बी) में प्रावधान में नियम है।’ अदालत ने आगे कहा, ‘इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर, हम अपीलकर्ताओं द्वारा उठाई गई याचिका को स्वीकार करते हैं और उन्हें डिफाल्ट जमानत की राहत का हकदार मानते हैं।’
आपको बता दें कि लंबे वक्त से उच्च न्यायालय में 7 सितंबर, 2021 के शीर्ष न्यायालय के आदेश के खिलाफ मध्य प्रदेश सरकार की समीक्षा याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस मामले के आरोपी व्यक्ति ने मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय द्वारा पारित 11 सितंबर, 2017 के फैसले और आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
क्या है पूरा मामला
यह पूरा मामला एसटीएफ/एटीएस पुलिस स्टेशन, जिला भोपाल में दर्ज प्राथमिकी के बाद सामने आया, जब इस संबंध में पुलिस ने 24 दिसंबर, 2013 को आतंकी मामलों में चारों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था ।
20 मार्च 2014 को, यूएपीए की धारा 43-डी (2) (बी) के तहत जांच तंत्र की ओर से पेश किए गए एक आवेदन पर कार्रवाई करते हुए, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, भोपाल द्वारा एक उपयुक्त मामले पर विस्तार दिया था।
गिरफ्तार हुए आरोपियों की हिरासत के 90 दिन पूरे होने पर, आरोपी व्यक्ति की ओर से जमानत के लिए आवेदन शीर्ष न्यायालय में आवेदन पेश किया गया था, जिसमें जांच एजेंसी द्वारा 90 दिनों के भीतर कोई आरोप-पत्र दायर नहीं किया गया था, लेकिन सीजेएम, भोपाल की अदालत ने इस खारिज कर दिया गया था। फिर आरोपी सत्र न्यायालय चले गए, जिसने उनकी याचिकाओं को भी खारिज कर दिया। इसके बाद, आरोपी ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में अपील की, लेकिन उसे भी समझाने में विफल रहा।