Lata mangeshkar death, new conspiracy to poison lata ji her life was narrowly saved: digi desk/BHN/मुंबई/ जनवरी 1963 में लता मंगेशकर ने अपना अमर ‘गीत ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाया था लेकिन ये बहुत कम लोगों को पता है कि उसके पहले 1962 में उनको जहर देकर मारने का षडयंत्र रचा गया था। 1960 के आरंभिक वर्षों तक लता मंगेशकर बेहद लोकप्रिय हो चुकी थीं। उनके गानों की वजह से फिल्में हिट होने लगी थीं। ऐसे ही दौर में 1962 में वो बेहद गंभीर रूप से बीमार पड़ गईं और बहुत लंबे समय तक बीमार रहीं। उस दौर में लता मंगेशकर का हौसला टूटने लगा था और उनको लगने लगा था कि शायद वो अब कभी फिल्मों के लिए पार्श्व गायन नहीं कर पाएंगी। एक दिन सुबह जब वो सोकर उठीं तो उनके पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा था। वो बिस्तर से उठकर कहीं जाने की हालत में नहीं थीं और बेहद कमजोर हो चुकी थीं। अचानक उनको उल्टियां होने लगीं। फौरन उनके पारिवारिक डाक्टर को बुलाया गया।
डाक्टर ने चेकअप के बाद बताया कि लता मंगेशकर के पेट का एक्सरे करना होगा। लता मंगेशकर की ऐसी हालत नहीं थी कि उनको एक्सरे करवाने के लिए अस्पताल या किसी क्लीनिक तक ले जाया जाए। ऐसी हालत में उनके घर पर ही एक्सरे मशीन मंगवाई गई। डाक्टर ने एक्सरे किया और उल्टियों की जांच की गई। इन दोनों की रिपोर्ट के विश्लेषण के बाद डाक्टर ने बताया कि लता जी को धीमा जहर दिया जा रहा था। नसरीन मुन्नी कबीर को दिए एक साक्षात्कार में लता जी ने जहर देने के इस प्रसंग पर बात की थी।
लता जी ने बताया कि जब उनकी बहन उषा को ये पता चला कि उनको जहर दिया जा रहा है तो वो सीधे उनकी रसोई में पहुंची। उनका एक नौकर था जो खाना बनाया करता था। उषा ने उस दिन उस नौकर से कहा कि अब उसको खाना बनाने की जरूरत नहीं है, उषा खुद अपनी दीदी के लिए खाना बनाया करेगी। इतना सुनते ही वो नौकर बगैर किसी को बताए लता जी का घर छोड़कर चला गया। उसने अपना हिसाब भी नहीं किया और अपने बकाए पैसे भी नहीं लिए। तब परिवार के लोगों को ये लगा था कि किसी ने लता जी के घर में उस नौकर को जहर देने के लिए ही रखवाया था। जब नौकर को लगा कि उसका भेद खुलनेवाला है तो वो घर छोड़कर चला गया। परिवारवालों को ये भी याद नहीं था कि उस नौकर को कैसे उन्होंने घर पर खाना बनाने के लिए रखा था। लता मंगेशकर करीब तीन महीने तक बीमार रही थीं। इस दौरान बेहद कमजोर हो गई थीं। उनके पारिवारिक डाक्टर ने उनको सलाह दी थी कि वो घर पर ही रहें और गाने न गाएं। गाना नहीं गाने की बेचैनी भी लता मंगेशकर को परेशान कर रही थी।
अपने उस दौर के बारे में बात करते हुए लता मंगेशकर गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को शिद्दत से याद करती थीं। जब मजरूह सुल्तानपुरी को पता चला कि लता मंगेशकर बीमार हैं तो नियमित रूप से शाम को वो लता मंगेशकर के घर आने लगे थे। ये क्रम लता जी के स्वस्थ होने तक चला। वो लता जी के साथ बैठकर उनको कविता और कहानियां सुनाकर उनका मन बहलाया करते थे। लता जी के अंदर विश्वास भरने के लिए वो भी वही खाना खाते थे जो लता मंगेशकर को दिया जाता था। लता मंगेशकर ने माना था कि मजरूह की सोहबत ने उनके अंदर एक विश्वास पैदा किया। इस बीमारी से उठने के बाद लता मंगेशकर ने गीतकार हेमंत कुमार के साथ फिल्म ‘बीस साल बाद’ का गाना ‘कहीं दीप जले कहीं दिल’ रिकार्ड करवाया था।