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वित्त मंत्री ने उठाया एंट्रिक्स-देवास का मुद्दा, कहा- यूपीए सरकार ने देश के साथ की धोखाधड़ी

Finance minister raised the antrix dewas issue and accused that UPA government has cheated the country: नई दिल्ली/ केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नई दिल्ली स्थित मीडिया सेंटर में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने एंट्रिक्स देवास मुद्दे पर सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि मैं देवास-एंट्रिक्स मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बात करना चाहती हूं। सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक आदेश दिया है। UPA(संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) ने 2011 में यह सौदा रद्द कर दिया था। यह धोखाधड़ी का सौदा था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पता चलता है कि कैसे यूपीए सरकार ग़लत कामों में लिप्त थी। एंट्रिक्स-देवास सौदा राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ था। अब कांग्रेस पार्टी की बताना चाहिए कि भारत के लोगों के साथ इस तरह की धोखाधड़ी कैसे की गई। प्राइमरी वेवलेंथ, सैटेलाइट या स्पेक्ट्रम बैंड की बिक्री करके इसे निजी पार्टियों को देना और निजी पार्टियों से पैसा कमाना कांग्रेस सरकार की विशेषता रही है।

उन्होंने कहा कि जब 2005 में यह सौदा हुआ था। तब यूपीए की सरकार थीं। यह एक फ्रॉड सौदा था। इसे रद्द करने में यूपीए सरकार को छह साल लग गए। मामला इतना बढ़ गया कि एक केंद्रीय नेता गिरफ्तार हो गया। इस सौदे को कैबिनेट से मंजूरी भी नहीं मिली थीं। 2011 में जब इसे रद्द किया गया, तब देवास अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में चला गया। भारत सरकार को 21 दिनों के भीतर मध्यस्थता के लिए नियुक्ति के लिए कहा गया, लेकिन सरकार ने नियुक्ति नहीं की।

क्या है मामला

ये मामला सन 2005 का है जब देवास मल्टीमीडिया का इसरो की वाणिज्यिक इकाई एंट्रिक्स के साथ एक करार हुआ था। इसके तहत वह पट्टे पर S-Band उपग्रह स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल कर मोबाइल फोनधारकों को मल्टीमीडिया सेवाएं मुहैया कराने वाली थी। आपको बता दें कि S-Band का इस्तेमाल नेशनल सिक्योरिटी के लिए किया जाता था। S-Band, 2 से 4 गीगाहर्ट्ज वाले स्पेक्ट्रम फ्रीक्वेंसी का हिस्सा हैं। इनका इस्तेमाल खासतौर पर एयर ट्रैफिक कंट्रोल के लिए एयर सर्विलांस रडार, वेदर रडार, सरफेस शिप रडार के लिए किया जाता है। इसका कुछ हिस्सा कम्युनिकेशंस सैटेलाइट के तौर पर होता है, जिसका इस्तेमाल NASA स्पेस शटल और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में बात करने के लिए किया जाता है।

बाद में स्पेक्ट्रम नीलामी में धांधली के आरोप लगने के बाद वर्ष 2011 में इस सौदे को रद्द कर दिया गया था। तब इसरो सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन था। इस डील पर साल 2005 से लेकर 2010 तक काफी सवाल खड़े किये गये और अंत में ये डील रद्द कर दी गई थी।

इस आदेश के खिलाफ देवास मल्टीमीडिया ने मध्यस्थता की कार्रवाई शुरू की। इस कंपनी में हिस्सेदारी रखने वाली मॉरीशस इंवेस्टर्स और डायचे टेलीकॉम ने भी इस मामले पर अलग से मध्यस्थता कार्रवाई शुरू कर दी थी। भारत को तीनों ही मामलों में हार का सामना करना पड़ा था। भारत सरकार को सौदा निरस्त करने के एवज में 1.3 अरब डॉलर का भुगतान करने का आदेश मध्यस्थता अधिकरण ने दिया था। उस आदेश को अमल में लाने के लिए देवास के निवेशकों ने भारत सरकार की संपत्ति जब्त करने का आदेश देने की अपील की थी।

इस मामले में राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण ( NCLT) ने Devas मल्टीमीडिया बंद करने और कंपनी के लिक्विडेशन यानी इसे बेचकर फंड जुटाने का आदेश जारी किया था। NCLT ने कहा था कि देवास मल्टीमीडिया को बैंडविड्थ प्राप्त करने के लिए एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन के तत्कालीन अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर फर्जी तरीके से बनाया गया था। इसके खिलाफ देवास ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी NCLT के आदेश को सही ठहराया। माना जा रहा है कि SC के फैसले से भारत का पक्ष मजबूत होगा और इतना ही नहीं इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन में भी भारत का पक्ष मजबूत होगा।

 

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