Tyohar makar sankranti will be celebrated on january 14 know why it is an auspicious festival puja shubh muhurat puja vidhi: digi desk/BHN/नई दिल्ली/ 14 जनवरी, शुक्रवार को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। यह पर्व अपने आप में बहुत महत्व रखने वाला होता है। इसका संबंध खगोल से भी है, ज्योतिष से भी, मौसम से भी और धर्म से भी। मकर संक्रांति को उत्तरायण भी कहा जाता है। इस दिन का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व है, क्योंकि इस दिन सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ता है और मकर राशि में प्रवेश करता है। वेदों में, भगवान सूर्य को ‘पिता’ के रूप में जाना जाता है और उनका मार्ग हमारे जीवन के चरणों और ऋतुओं के परिवर्तन को निर्धारित करता है। ऐसा माना जाता है, यदि आप एक नया व्यवसाय शुरू करने की योजना बना रहे हैं, कार्यालय में एक नया पद ग्रहण कर रहे हैं, आदि तो यह शुभ दिन है। जानिये मकर संक्रांति के बारे में खास बातें।
देश में मनाई जाती है इतने नामों से
मकर संक्रांति पूरे भारत में कई नामों से मनाई जाती है- असम में माघ बिहू, पंजाब में माघी, हिमाचल प्रदेश में माघी साजी, जम्मू में माघी संग्रांद या उत्तरायण (उत्तरायण), हरियाणा में सकरत, मध्य भारत में सुकरत, तमिलनाडु में पोंगल, गुजरात और उत्तर प्रदेश में उत्तरायण, उत्तराखंड में घुघुटी, ओडिशा में मकर संक्रांति, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, पश्चिम बंगाल (जिसे पौष संक्रांति भी कहा जाता है), उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश (जिसे खिचड़ी संक्रांति भी कहा जाता है) या आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में संक्रांति के रूप में।
इन वस्तुओं का होता है दान
इस दिन भक्त सूर्य को अर्घ्य देते हैं, भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और चावल, दाल, गुड़, मटर, रेवड़ी आदि दान करते हैं क्योंकि यह शुभ माना जाता है। साथ ही लोग इस दिन पतंग उड़ाते हैं और कई प्रतियोगिताएं आयोजित करते हैं।
मकर संक्रांति की तिथि और शुभ मुहूर्त
- दिनांक: 14 जनवरी, शुक्रवार
- मकर संक्रांति पुण्य काल – दोपहर 02:43 से शाम 05:45 बजे तक
- मकर संक्रांति महा पुण्य काल – 02:43 अपराह्न से 04:28 अपराह्न
- मकर संक्रांति क्षण – 02:43 अपराह्न
मकर संक्रांति की पूजा विधि
- – एक लकड़ी की चौकी रखें और इसे साफ करने के लिए थोड़ा गंगाजल छिड़कें। फिर उस पर कलश लगाएं।
- – अब, प्रत्येक ढेर पर भगवान गणेश, भगवान शिव, भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी और सूर्य भगवान की मूर्ति/छवि रखें
- – तेल का दीपक जलाकर देवताओं के सामने रखें।
- – एक-एक करके सभी देवताओं पर थोड़ा-सा जल छिड़कें।
- – भगवान गणेश का आह्वान करके और उनका आशीर्वाद मांगकर पूजा शुरू करें।
- – हल्दी, चंदन, कुमकुम, दूर्वा घास, फूल, धूप और एक फल चढ़ाएं।
- -गणेश गायत्री मंत्र का जाप करें: ओम एकदंताय विद्धमहे, वक्रतुंडय धीमहि तन्नो दंति प्रचोदयत, रुद्र गायत्री मंत्र: ओम तत्पुरुषाय विद्माहे महादेवय धिमहि तन्नो रुद्रा प्रचोदयत, विष्णु गायत्री मंत्र:
- और लक्ष्मी गायत्री मंत्र: ओम महालक्षमैच्य विद्महे विष्णु पटनाच्य धीमही तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात
- – आरती कर पूजा समाप्त करें और फिर प्रसाद बांटें।
मकर संक्रांति का महत्व
हिंदू मान्यता के अनुसार, पवित्र नदी गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा और कावेर में डुबकी लगाने का बहुत महत्व है। यह आपके सभी अतीत और वर्तमान पापों को धो देता है और आपको एक स्वस्थ, समृद्ध और सफल जीवन प्रदान करता है। भारत के कई हिस्सों में, जैसे कि यूपी, बिहार, पंजाब और तमिलनाडु में, यह नई फसलों की कटाई का समय है। किसान इस दिन को कृतज्ञता दिवस के रूप में भी मनाते हैं।
पौष माह में सूर्य की आराधना मंगलकारी
हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह का अपना महत्व रहा है। पौष माह हिंदू पंचांग के अनुसार 10वां महीना होता है। इसी माह में मकर संक्रांति का पर्व भी मनाया जाता है। ज्योतिष के अनुसार पौष मास की पूर्णिमा पर चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है जिसके कारण ठंड अधिक बढऩे के साथ इस मास को पौष अर्थात पूस माह भी कहा जाता है। यही माह भगवान सूर्य और विष्णु की उपासना के लिए श्रेयकर होता है। ज्योतिष आचार्य के अनुसार पौष माह में भगवान सूर्य की उपासना करने से आयु व ओज में वृद्धि होने के साथ स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। सूर्य की उपासना का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
गर्म वस्त्रों का दान करने से शुभ फल की प्राप्ति
गरीब और असहाय लोगों को गर्म कपड़े का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस माह में लाल और पीले रंग के वस्त्र धारण करने से भाग्य में वृद्धि होती है। माह के रविवार के दिन तांबे के बर्तन में जल भर कर उसमें गुड़, लाल चंदन से सूर्य को अर्ध्य देने से पद सम्मान में वृद्धि होने के साथ शरीर में सकारात्मक शक्तियों का विकास होता है। साथ ही आध्यात्मिक शक्तियों का भी विकास होता है।
यह है संक्रांति की पौराणिक कथा
मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर फेंका था। भगवान की जीत को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। शरद ऋतु का प्रभाव कम होने लगता है और इसके बाद बसंत मौसम का आगमन आरंभ हो जाता है। इसके फलस्वरूप दिन लंबे और रात छोटी होने लगती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव के घर जाते हैं। ऐसे में पिता और पुत्र के बीच प्रेम बढ़ता है। ऐसे में भगवान सूर्य और शनि की अराधना शुभ फल देने वाला होता है।