The issue of inequality in the inheritance of the property of a childless hindu widow supreme court asked the center its view: digi desk/BHN/नई दिल्ली/वैसे तो संविधान और देश के कानून में महिलाओं को बराबरी का हक दिया गया है लेकिन अभी भी कहीं कुछ कोर कसर बची रह गई है। हिंदू उत्तराधिकार कानून में महिलाओं की संपत्ति के उत्तराधिकार में ऐसी ही कुछ कमियां नजर आती हैं। विशेषकर बिना वसीयत किए नि:संतान हिंदू विधवा की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति के उत्तराधिकार में गैर बराबरी का पेच दिखता है। लेकिन अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट देख रहा है। गत सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता का ध्यान कानून की कमियों की ओर दिलाते हुए उस पर केंद्र सरकार का नजरिया पूछा।
हिंदू महिला और पुरुष की संपत्ति के उत्तराधिकार में असमानता
मेहता ने इसके लिए कोर्ट से समय मांग लिया है। मामले पर कोर्ट 21 जनवरी को फिर सुनवाई करेगा। केस की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही है। पर्सनल ला से जुड़े इस केस में वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा न्यायमित्र (एमाइकस क्यूरी) हैं। अरोड़ा ने सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रविधानों में महिला और पुरुष की संपत्ति के उत्तराधिकार में असमानता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कानून की कमियों पर केंद्र से पूछा उसका नजरिया
उन्होंने कहा कि अगर कोई विवाहित पुरुष बगैर वसीयत के नि:संतान मरता है तो उसकी संपत्ति उसके माता पिता को जाती है जबकि बगैर वसीयत के नि:संतान विधवा के मरने पर उसकी संपत्ति, सिर्फ उस संपत्ति को छोड़कर जो उसने अपने माता पिता से उत्तराधिकार में प्राप्त की है, बाकी सारी संपत्ति उसके पति के माता पिता (सास-ससुर) और रिश्तेदारों को जाती है। उन्होंने कहा कि नि:संतान हिंदू विधवा की संपत्ति पर उत्तराधिकार के मामले में पति के रिश्तेदारों को प्राथमिकता दी गई है। कोर्ट ने भी माना कि नि:संतान विधवा की संपत्ति उत्तराधिकार में भेदभाव दिखता है। पीठ ने सालिसिटर जनरल से इस पर चार सप्ताह में केंद्र सरकार का नजरिया बताने को कहा है।
कोर्ट ने कहा कि अगर कोई नि:संतान विधवा अपने माता-पिता से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति को बेच कर उसी से दूसरी संपत्ति खरीदती है तो वह नई अर्जित संपत्ति उसके माता-पिता से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति की श्रेणी में नहीं आती है और वह संपत्ति उसकी मृत्यु के बाद उन्हें नहीं जाती। सालिसिटर जनरल ने कहा कि कोर्ट ने नि:संतान हिंदू विधवा की संपत्ति के उत्तराधिकार के बारे में जो चिंता जाहिर की है, उस पर संसद और विधायिका के विचार करने की जरूरत है। पीठ ने मेहता से सहमति जताते हुए कहा कि कानून की किताब में लंबे समय से जो खामियां विद्यमान हैं, उन्हें न्यायिक दखल से या विधायिका के जरिए ठीक किये जाने की जरूरत है।
कानून के इन पहलुओं पर विचार की जरूरत
मीनाक्षी अरोड़ा कहती हैं कि हिंदू उत्तराधिकार कानून की धारा 15 और 16 महिलाओं की संपत्ति के उत्तराधिकार का प्रविधान करती हैं लेकिन उसमें महिलाओं की संपत्ति के उत्तराधिकार पुरुषों के समान नहीं हैं। जैसे कि नि:संतान हिंदू विधवा चाहे मां से उत्तराधिकार में संपत्ति प्राप्त करे या पिता से लेकिन दोनों ही तरह की संपत्तियां उसकी मृत्यु के बाद पिता के उत्तराधिकारियों को जाएंगी।
चाहें उसने संपत्ति मां से उत्तराधिकार में पाई हो लेकिन बिना वसीयत मरने वाली नि:संतान विधवा की वह संपत्ति माता के उत्तराधिकारियों को नहीं जाएगी यहां तक कि अगर विधवा की मौत के बाद उसकी मां जीवित होती है तो भी वह उस संपत्ति में सिर्फ पिता के उत्तराधिकारियों में से एक उत्तराधिकारी ही मानी जाएगी। मीनाक्षी कानून के इन पहलुओं पर विचार की जरूरत बताती हैं। वह कहती हैं कि इस बारे में विधि आयोग की रिपोर्ट भी है। हालांकि इन कुछ चीजों के अलावा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में महिलाओं को संपत्ति में पूर्ण और बराबरी का अधिकार दिया गया है। कानून में संपत्ति पर बेटियों और बेटों का बराबरी का हक है।