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Satna: जनजाति वर्ग के समूह की महिलाएं उगा रहीं मशरूमः कमा रहीं मुनाफा

(जनजातीय गौरव दिवस पर विशेष)

सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ राज्य सरकार प्रदेश के अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के कल्याण एवं विकास की मुख्यधारा में सहभागी बनाकर उन्हें आत्म-निर्भरता की ओर ले जाने अनेक कल्याणकारी योजनाएं संचालित कर रही है। सतना जिले में भी सरकार की योजना का लाभ देकर जनजाति वर्ग की महिलाओं ने स्व-सहायता समूह के माध्यम से आत्म-निर्भरता की ओर कदम बढ़ाकर अपने जीवन को खुशहाल किया है।

सतना जिले के रामस्थान ग्राम की 12 अनुसूचित जनजाति की महिलाओं ने आजीविका मिशन के तहत सृष्टि स्व-सहायता समूह बनाया और कोरोना काल में मशरूम की खेती कर मुनाफा भी कमाया। समूह की यह महिलायें मेहनत, मजदूरी के अलावा अपने पास उपलब्ध भूमि में जैविक खेती के माध्यम से सब्जी-भाजी भी उगा रही हैं। रामस्थान में बन चुकी गौशाला के संचालन का जिम्मा भी इन महिलाओं को दिया गया है। समूह में सभी महिलाएं जनजाति वर्ग की हैं।
रामस्थान की मेधावी छात्रा सृष्टि सिंह ने एग्रीकल्चर में पीएचडी करने के बाद अपने ही गांव में रहकर महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने का बीड़ा उठाया। उन्होने गांव की अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को संगठित महिला स्व-सहायता समूह बनाया और जैविक खेती तथा आर्थिक लाभ के लिये मशरूम उगाने की पद्धति सिखाई। सभी महिलाओं ने मिलकर बांस और घांस फूस तथा भूसा जैसी स्थानीय सामग्री का उपयोग कर झोपड़ी बनाई। सिंचाई के लिये पैरचलित पंप लिया और कृषि विज्ञान केन्द्र से मशरूम के बीज लाकर खेती प्रारंभ की। समूह की सचिव रामकली आदिवासी बताती हैं कि विगत 7-8 महीने में 100 किलो से ऊपर मशरूम तैयार कर 150 किलो के भाव से स्थानीय मार्केट में बेंच चुके हैं। महिलाओं द्वारा तैयार किये जा रहे रामस्थान के मशरूम की चर्चा अब आम हो चुकी है। मशरूम के ग्राहक अब रामस्थान आकर स्वयं मशरूम ले जाते हैं। जनप्रतिनिधि और बड़े अधिकारी जब भी रामस्थान आते है ंतो अनुसूचित जनजाति की महिलाओं द्वारा की जा रही मशरूम की खेती देखना नहीं भूलते।

सृष्टि स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष अर्चना सिंह बताती हैं कि समूह से जुड़ने के बाद महिलाओं में जागरूकता भी आई है और वे शासन की पात्रतानुसार योजनाओं का लाभ भी ले रहीं है। समूह की महिलाओं को गौशाला संचालन का प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है। रामस्थान में 100 गौवंश की क्षमता की गौशाला भी समूह संचालित कर रहा है। वर्तमान में 25-30 गौवंशी पशुओं का रख-रखाव किया जा रहा है। समूह की महिलाओं ने गांव वालों को खेतों की नरवई नहीं जलाने की जागरूकता फैलाई है। अब वे सृष्टि सिंह के निर्देशन में खेती की नरवई से कंपोस्ट खाद भी बना रहीं हैं। समूह की महिलाओं ने बताया कि सभी महिलायें परस्पर सहयोग से मशरूम की खेती और गौशाला का संचालन कर रही है। ये महिलायें गौशाला से प्राप्त होने वाले अपशिष्ट से गोबर काष्ठ, गमले, गौमूत्र, से विनाईल जैसे उपयोगी उत्पाद तैयार कर गौशाला को आत्मनिर्भर और आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र बनाना चाहती हैं।

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