Nottingham discover commonly parasite could treat certain types of cancer: digi desk/BHN/लंदन/परजीवी जंतु दूसरों को बीमार करने के लिए जाने जाते हैं। वे अपना अस्तित्व अन्य प्राणी के जीवित रहने तक उस पर निर्भर रह कर बनाए रखते हैं लेकिन अब एक नए अध्ययन में पाया गया है कि एक जानलेवा परजीवी (पैरसाइट), जो खासतौर पर गर्भवती महिलाओं और प्रतिरक्षा विहीन लोगों को बीमार करता है, वह विभिन्न प्रकार के कैंसर वाले ट्यूमरों के इलाज में भी काम आ सकता है।
ट्यूमर के विकास को रोकने में मिलेगी मदद
यह निष्कर्ष ‘जर्नल फार इम्यूनो थेरेपी कैंसर’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है। यह शोध यूनिवर्सिटी आफ नौटिंघम, निंगबो यूनिवर्सिटी तथा चीन की शांक्सी एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के विज्ञानियों ने किया है। इससे कुछ विशिष्ट कैंसर जनित ट्यूमरों के इलाज को प्रभावी बनाने, ट्यूमर के विकास को रोकने में मदद मिल सकती है।
कैंसर के इलाज में कारगर
अपने इस अध्ययन में विज्ञानियों ने बताया है कि दुनियाभर में पाया जाने वाला यह सामान्य परजीवी कोल्ड ट्यूमर को संवेदनशील बना देता है। इस प्रकार का ट्यूमर शरीर की मजबूत प्रतिरक्षा के काम को बाधित करता है, इससे इम्यून चेकप्वाइंट ब्लाकेड थेरेपी प्रभावित होती है। विज्ञानियों का मानना है कि यह अध्ययन विभिन्न प्रकार के कैंसर के इलाज में काम आ सकता है।
कैसा है यह परजीवी
शोधकर्ताओं की टीम ने यह प्रयोग परजीवी टोक्सोप्लाज्मा गोंडी को लेकर किया है। यह एक प्रकार का एक कोशिकीय प्रोटोजोआ है, जो गर्म खून वाले प्राणियों को संक्रमित करता है। एक अनुमान के अनुसार, यह प्रोटोजोआ दुनियाभर में लगभग एक तिहाई इंसानी आबादी में पाया जाता है।
ऐसे करता है काम
टोक्सोप्लाज्मा गोंडी अपने होस्ट (मेजबान या पोषिता) की कोशिकाओं के भीतर होता है। यह विभिन्न प्रकार के प्रोटीन स्रावित करता है, जिससे मेजबान की प्रतिरक्षा से मुकाबला करते हुए अपना आक्रमण बढ़ाता है और मेजबान कोशिकाओं की एक कालोनी बना लेता है।
क्या किया प्रयोग
शोधकर्ताओं ने सबसे पहले टोक्सोप्लाज्मा गोंडी का सीमित विकास क्षमता वाला एक म्यूटेटेड (उत्परिवर्तित) स्ट्रेन बनाया। यह प्रयोग कोशिकीय कल्चर (सेल कल्चर) तथा चूहों पर किया गया। यह स्ट्रेन मेजबान के प्रतिरक्षा तंत्र में बदलाव करने में सक्षम था।
ट्यूमरों पर देखा गया असर
इसके बाद शोधकर्ताओं ने इस म्यूटेटेड पैरसाइट को इंजेक्शन के जरिये सीधे ट्यूमर तक पहुंचाया। इससे ठोस ट्यूमर में इंफ्लेमेट्री प्रतिक्रिया तो हुई ही, साथ ही चूहों के शरीर में स्थित ट्यूमरों पर भी असर देखा गया। उन्होंने यह भी पाया कि इस प्रक्रिया में ट्यूमर का इलाज ज्यादा प्रभावी रहा। साथ ही इम्यून चेकप्वाइंट इन्हीबिटर पर भी सकारात्मक असर रहा।
जीवनकाल बढ़ा
चूहों पर आजमाए गए इस दोहरे इलाज से उनमें मेलानोमा, लेविस लंग कार्सिनोमा तथा कोलोन एडेनोकार्सिनोमाजैसे कैंसर के ट्यूमरों का विकास कम हुआ तथा उनका जीवनकाल भी बढ़ा।
एंटी ट्यूमर इम्युनिटी हुई मजबूत
यूनिवर्सिटी आफ नौटिंघम में स्कूल आफ वेटरनरी मेडिसिन एंड साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर और शोध की प्रमुख लेखक डाक्टर हनी एल्शेखा ने बताया कि वैसे तो टोक्सोप्लाज्मा गोंडी का म्यूटेंट चूहों के माडलों में कुछ खास प्रकार के ट्यूमरों के इलाज में इस्तेमाल किए जाने की बात पहले भी हुई लेकिन इस ताजा प्रयोग से ट्यूमर के भीतर इंजेक्शन के जरिये पहुंचाए गए इस स्ट्रेन से एंटी ट्यूमर इम्युनिटी मजबूत हुआ और चेकप्वाइंट इन्हीबिशन थेरेपी में भी प्रभावी पाया गया।
ट्यूमर के इलाज में हो सकता है कारगर
डाक्टर एल्शेखा ने बताया कि ये निष्कर्ष ट्यूमर के भावी इलाज के लिए उपयुक्त हो सकते हैं। इससे ट्यूमर के आकार में कमी और चूहों का जीवनकाल बढ़ना काफी महत्वपूर्ण है। लेकिन इंसानों पर इसके इस्तेमाल को लेकर अभी सतर्क रहना होगा तथा इस दिशा में और भी प्रयोग करने होंगे।