Shraddh Paksh 2021:digi desk/BHN/ सनातन संस्कृति के शास्त्रों में पूर्वजों को देव तुल्य माना गया है। पितृ भले ही सशरीर पृथ्वी पर विद्यमान न रहते हो, लेकिन आत्मा स्वरूप में वह ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं और अपने परीजनों से यह उम्मीद रखते हैं की वो उनकी आत्मा को तृप्त करेंगे और उनको मोक्ष दिलाने के लिए आवश्यक कर्मकांड को भी करेंगे। इसलिए सोलह दिनों में तिथियों के हिसाब से श्राद्धकर्म का शास्त्रोक्त प्रावधान किया गया है। इसमें तिथियों के अनुसार पूर्वजों के श्राद्ध किए जाते हैं।
पूर्णिमा श्राद्ध
इस तिथि को उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु पूर्णिमा को हुई थी। इसको प्रोष्ठपदी पूर्णिमा भी कहा जाता हैं।
प्रतिपदा श्राद्ध
जिस व्यक्ति की मृत्यु शुक्ल या कृष्ण की प्रतिपदा तिथि को हुई हो उनका श्राद्ध इसी दिन किया जाता है। इस दिन नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला नहीं हो साथ ही मृत्यु की तिथि भी ज्ञात न हो तो उनका श्राद्ध भी प्रतिपदा को किया जाता है।
द्वितीया श्राद्ध
जिस व्यक्ति की मृत्यु शुक्ल या कृष्ण की द्वितीया तिथि को हुई हो उसका श्राद्ध द्वितीय तिथि को किया जाता है।
तृतीया श्राद्ध
जिस व्यक्ति की मृत्यु शुक्ल या कृष्ण की तृतीया तिथि को हुई हो उसका श्राद्ध तृतीया तिथि को किया जाता है। इसको महाभरणी भी कहते हैं।
चतुर्थी श्राद्ध
जिस व्यक्ति की मृत्यु शुक्ल या कृष्ण की चतुर्थी तिथि को हुई हो उसका श्राद्ध चतुर्थी तिथि को किया जाता है।
पंचमी श्राद्ध
पंचमी तिथि का श्राद्ध विशेष होता है। इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु अविवाहिक स्थिति में हुई हो। यह तिथि कुंवारों को समर्पित है इसलिए इसको कुंवारा पंचमी भी कहा जाता है।
षष्ठी श्राद्ध
जिस व्यक्ति की मृत्यु शुक्ल या कृष्ण की षष्ठी तिथि को हुई हो उसका श्राद्ध षष्ठी तिथि को किया जाता है।
सप्तमी श्राद्ध
जिस व्यक्ति की मृत्यु शुक्ल या कृष्ण की सप्तमी तिथि को हुई हो उसका श्राद्ध सप्तमी तिथि को किया जाता है।
अष्टमी श्राद्ध
श्राद्ध में इस तिथि का भी विशेष महत्व है। यदि किसी का निधन पूर्णिमा तिथि को हुआ है तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या सर्वपितृमोक्ष अमावस्या को किया जा सकता है।
नवमी श्राद्ध
नवमी तिथि को महिलाओं के श्राद्ध की तिथि माना जाता है। इसलिए इस दिन दिवंगत सुहागन महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है। जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि मालूम न हो, उनका भी श्राद्ध इसी दिन किया जाता है। माता की मृत्यु हो गई हो तो उनका श्राद्ध भी मृत्यु तिथि को न कर नवमी तिथि को करने का प्रावधान है।
दशमी श्राद्ध
जिस व्यक्ति की मृत्यु शुक्ल या कृष्ण की दशमी तिथि को हुई हो उसका श्राद्ध दशमी तिथि को किया जाता है।
एकादशी श्राद्ध
एकादशी तिथि को उनलोगों का श्राद्ध किया जाता है, जो सांसरिक जीवन का त्याग कर मोह-माया के बंधनों से मुक्त हो संन्यास की राह पर निकल गए थे और संन्यासी रहते ही जिनका निधन हुआ हो।
द्वादशी श्राद्ध
द्वादशी श्राद्ध को भी को ‘संन्यासी श्राद्ध’ के नाम से जाना जाता है। इसलिए इस तिथि को जो पूर्वज संन्यासी रहते हुए दिवंगत हुए हो उनका इस दिन श्राद्ध किया जाता है।
त्रयोदशी श्राद्ध
श्राद्ध महालय के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को घर-परिवार में मृत हुए बच्चों का श्राद्ध किया जाता है।
चतुर्दशी श्राद्ध
चतुर्दशी तिथि को उन मृतात्माओं का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो। जिनकी मृत्यु जल में डूबने, शस्त्रों के आघात, जलने और जहर खाने से हुई हो या किसी और इस तरह की वजह से हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।
सर्वपितृमोक्ष अमावस्या श्राद्ध
सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितृों का श्राद्ध करने की परंपरा है। इसे पितृविसर्जनी अमावस्या, महालय समापन आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन उन सभी पितृों का श्राद्ध किया जा सकता है, जिनकी तिथि और विस्तृत जानकारी आपको ना हो।