Gujarat high court stayed implmentation of 4 section: digi desk/BHN/ अहमदाबाद। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की ओर से बनाए गए गुजरात धर्म स्वतंत्रता संशोधन कानून की 4 धाराओं के अमल पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने कहा कि केवल शादी कर लेने से कोई अपराधी नहीं हो सकता इसके लिए यह साबित करना आवश्यक है कि विवाह लालच या भय से किया गया है। जमीयत उलेमा ए हिंद और माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमेटी के संयोजक मुजाहिद नफीस ने गुजरात धर्म स्वतंत्रता संशोधन कानून ( चर्चित लव जिहाद कानून) को चुनौती कि यह संविधान दी थी। याचिका में बताया गया कि यह कानून संविधान प्रदत्त व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन करता है। इसमें अंतर धार्मिक विवाह कानूनी रूप से अनैतिक बताया गया है जो संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 25 एवं 26 के तहत व्यक्ति को दी गई स्वतंत्रता को भी बाधित करता है। नए धर्म स्वतंत्रता कानून के अस्तित्व में आने के बाद अंतरधार्मिक विवाह ही अपने आप में एक अपराध हो गया है। इस कानून केे पुलिस दुरूपयोग की भी आशंका जताई गई है। गत सप्ताह सरकार की ओर से महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने अदालत में कहा था अंतर्धाधार्मिक विवाह करना अपराध नहीं है लेकिन बहला फुसलाकर तथा धमकी देकर या प्रभाव में लेकर विवाह करना व धर्म परिवर्तन को अपराध माना गया है। ऐसे मामलों की जांच पुलिस उपाधीक्षक स्तर का अधिकारी करता है जिससे गलती होने की आशंका भी कम रहती है। उनका यह भी कहना था कि गलत तरीके से विवाह कर लडकी का धर्म परिवर्तन करने वालों को इस कानून से डरना चाहिए।
धर्म स्वतंत्रता संशोधन कानून की इन धाराओं पर है आपत्ति
- धारा 3 – विवाह के लिए कपटयुक्त साधनों के उपयोग का उल्लेख है
- धारा -4 विवाह से नाराज कोई व्यक्ति, माता-पिता, भाई – बहन अथवा कोई रक्त या विवाह संबंधी एफआईआर करा सकता है
- धारा -5 विवाह में सहयोग करने वाले व परामर्श देने वाला भी आरोपी
- धारा -6 विवाह के पहले या बाद में धर्म परिवर्तन को अपराध माना गया है साथ ही इसमें मदद करने वाले व्यक्ति व संस्था को भी आरोपी माना जाकर उनके लिए 3 से 10 साल की सजा व 5 लाख तक के जुर्माने के प्रावधान के साथ ऐसी संस्था को सरकारी अनुदान से वंचित करने का भी प्रावधान है।