Jagannath Rath Yatra 2021:digi desk/BHN/ रायपुर/ भगवान जगन्नाथ पिछले 15 दिनों से बीमार हैं और उनके एकांतवास में रहने की परंपरा का पालन किया जा रहा है। कुछ मंदिरों में शुक्रवार को अमावस्या तिथि पर भगवान को अंतिम काढ़ा पिलाए जाने की रस्म निभाई गई। शनिवार को भी अमावस्या तिथि होने से काढ़ा पिलाया गया। यह परंपरा निभाने के बाद भगवान स्वस्थ हो जाएंगे। तीन दिवसीय रथ उत्सव की शुरुआत शनिवार से ही हो गई है।
कोरोना महामारी के चलते सार्वजनिक कार्यक्रमाें पर प्रतिबंध होने से मंदिरों में रथ उत्सव की केवल परंपरा निभाई जाएगी। भगवान को नगर भ्रमण करने नहीं ले जाया जाएगा। भगवान की प्रतिमा को रथ पर विराजित करके फिर पुनथ मंदिर परिसर में ही स्थित गुंडिचा मंदिर में प्रतिष्ठापित किया जाएगा।
नेत्रोत्सव की परंपरा से तीन दिवसीय उत्सव की शुरुआत
तीन दिवसीय रथ उत्सव की शुरुआत शनिवार को भगवान के नेत्र खोलने की परंपरा के साथ होगी। इसके पश्चात पुजारी, ट्रस्टी के सान्निध्य में पूजा-अर्चना की जाएगी। तीसरे दिन 12 जुलाई को सादगी से रथयात्रा उत्सव मनाया जाएगा। चूंकि भगवान अपने भक्तों को दर्शन देने नगर भ्रमण नहीं करेंगे इसलिए भक्तगण मंदिर पहुंचेंगे और कोरोना नियमों का पालन करते हुए बारी-बारी से भक्तों को प्रवेश दिया जाएगा।
टुरी हटरी में 400 साल से निभा रहे परंपरा
पुरानी बस्ती के टुरी हटरी इलाके में दूधाधारी मठ के अंतर्गत संचालित 400 साल से अधिक पुराने मंदिर में रथयात्रा की परंपरा मंदिर निर्माण के समय से ही निभाई जा रही है। मठ के महंत रामसुंदर दास ने बताया कि इस साल कोरोना महामारी के चलते सादगी से उत्सव मनाया जाएगा।
सुबह भगवान का श्रृंगार करके 12 बजे हवन किया जाएगा। दोपहर बाद भगवान को रथ पर विराजित करने की औपचारिकता निभाई जाएगी। इसके बाद मंदिर परिसर में ही अन्य कमरे में भगवान को विराजित किया जाएगा, जहां 10 दिन के बाद भगवान को पुनथ मूल गर्भगृह में प्रतिष्ठापित करेंगे।
200 साल से सदर बाजार में मच रही धूम
राजधानी का दूसरा प्रसिद्ध मंदिर सदरबाजार इलाके में है, जो लगभग 200 साल पुराना है। आठ पीढ़ी से लगातार पूजा कर रहे पुजारी परिवार के वंशज तोरण प्रकाश पुजारी बताते हैं कि मंदिर की परंपरा के अनुसार 12 साल में एक बार रथ का पुनर्निर्माण किया जाता है।
ओडिशा के पुरी धाम के मुख्य मंदिर में जिस तरह हर 12 साल में भगवान का विग्रह नए सिरे से तैयार किया जाता है, उसी तरह सदर बाजार मंदिर का रथ हर 12 साल में बदला जाता है। भगवान का रथ इससे पहले 2010 में बनाया गया था और अब अगले साल 2022 में बनेगा। मूर्तियों की श्रृंगार सामग्री ओड़िसा के पुरी मंदिर से 20 किलोमीटर दूर पिपली गांव से मंगाई जाती है।
नीम-चंदन की प्रतिमा
मंदिर का जीर्णोद्घार सन् 1930 यानी हिन्दू संवत्सर 1986 में किया गया। मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ, बड़े भैय्या बलदाऊ एवं बहन देवी सुभद्रा की प्रतिमाएं चंदन और नीम मिश्रित लकड़ी से बनी हैं, जो सैकड़ों साल तक खराब नहीं होती।
वीआईपी निभाते हैं झाड़ू बुहारने की परंपरा
गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर के संस्थापक पुरंदर मिश्रा बताते हैं कि सबसे बड़े जगन्नाथ मंदिर की स्थापना छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के आसपास हुई थी। पुरी शैली की तर्ज पर मंदिर के पत्थरों को तराशा गया है। यहां हर साल राज्यपाल और मुख्यमंत्री छेरा-पहरा (रथ के आगे सोने की झाड़ू से बुहारना) की रस्म निभाते हैं। इस बार भी निमंत्रण दिया गया है। कोरोना नियमों के चलते रथयात्रा नहीं निकाली जाएगी। मंदिर परिसर में ही बने गुंडिचा मंदिर में भगवान को ले जाया जाएगा।