Know what happens in mool nakshatra:digi desk/BHN/ आकाश मंडल में तारों के समूह को नक्षत्रों का दर्जा प्राप्त है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, इस तरह पूरे आकाश मंडल को 27 नक्षत्रों बांट दिया गया है। हर नक्षत्र का मूल स्वभाव अगल होता है और अलग ही फल देता है। कुछ नक्षत्र कोमल होते हैं तो कुछ उग्र व कठोर। जो नक्षत्र उग्र व कठोर होते हैं, उनको मूल नक्षत्र, सतईसा या गंडात कहा जाता है और नक्षत्र मंडल में इसका स्थान 19वां है। इस नक्षत्र में जब बच्चे का जन्म होता है तो उसका सीधा प्रभाव उसकी सेहत व स्वभाव पर पड़ता है। मान्यता है कि मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे को कुछ समय तक परेशानियां होती हैं। इसलिए इन नक्षत्रों का ज्यादा प्रभाव बच्चों पर न पड़े इसके लिए ग्रह-नक्षत्रों के लिए शांति के लिए पूजा की जाती है। आइए जानते हैं इस नक्षत्र के बारे में खास बातें…
गुरु और केतु का सीधा होता है प्रभाव
मूल नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में आते हैं और इस नक्षत्र का स्वामी केतु है और राशि के स्वामी देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं। इसलिए इस नक्षत्र में जन्मे लोगों पर गुरु और केतु का सीधा प्रभाव पड़ता है। जहां केतु कभी नकरात्मक तो कभी सकारात्मक असर डालता है तो वहीं गुरु हर बुरे प्रभाव को सही कर जीवन में प्रकाश डालने का काम करते हैं। मूल, ज्येष्ठा और आश्लेषा इन तीन नक्षत्रों को मूल नक्षत्र कहा जाता है और आश्विन, मेघा और रेवती को सहायक मूल नक्षत्र होते हैं।
इस तरह बनते हैं मूल नक्षत्र
मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा, आश्विन, मेघा और रेवती ये 6 मूल नक्षत्र कहलाते हैं और जब इनमें से किए एक नक्षत्र में बच्चे का जन्म होता है तो स्वास्थ्य थोड़ा संवेदनशील होता है। मान्यता है कि अगर बच्चे ने इन नक्षत्र में जन्म लिया है तो पिता को तब तक बच्चे का मुख नहीं देखना चाहिए, जब तक उसके मूल को शांत नहीं करवा लिए जाते। बच्चे के जन्म लेने के 27 दिन बाद ही मूल नक्षत्र शांत करवाने चाहिए। नक्षत्रों और कुंडलियों के आधार पर इसका निर्णय लेना चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि 8 वर्ष के बाद किसी भी मूल नक्षत्र का प्रभाव ज्यादा नहीं रह जाता लेकिन थोड़ा सा प्रभाव साथ में रहता जरूर है। साथ ही बच्चे के माता-पिता को 8 वर्ष तक ओम नम: शिवाय का जप भी हर रोज करना चाहिए। अगर बच्चे का स्वास्थ्य ज्यादा गंभीर है तो माता-पिता को पूर्णिमा को उपवास करना चाहिए।
लक्ष्य को लेकर हमेशा रहते हैं केंद्रित
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, केतु, गुरु व धनु राशि में उच्च का होता है और इसकी दशा 7 साल की होती है। इसके बाद सर्वाधिक 20 वर्ष की दशा शुक्र की लगती है, जो इनके जीवन में इन्ही दशाओं का महत्व अधिक होता है। ऐसे व्यक्ति स्वभाव में जिद्दी होते हैं लेकिन कार्य के प्रति हमेशा ईमानदारी बरतते हैं। यह अपने लक्ष्य को लेकर हमेशा केंद्रित रहते हैं और जब तक इनको इनका लक्ष्य नहीं मिल जाता तब तक राहत की सांस नहीं लेते। कुछ स्थितियों में मूल नक्षत्र का यह दोष अपने आप खत्म हो जाता है लेकिन कुछ स्थितियों में इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति खुद भाग्यशाली मानता है।
यह है बच्चों के लिए उपाय
अगर बच्चे की राशि मेष और नक्षत्र अश्विनी है तो बच्चे से हनुमानजी की पूजा कराएं। अगर बच्चे की राशि सिंह और नक्षत्र मघा है तो बच्चे से सूर्य को जल अर्पित करवाएं। बच्चे की राशि धनु और नक्षत्र मूल है तो गायत्री मंत्र की उपासना कराएं। वही राशि कर्क और नक्षत्र आश्लेष है तो शिवजी की उपासना कराएं। वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र होने पर हनुमानजी और मीन राशि और रेवती नक्षत्र होने पर गणेशजी की बच्चे से उपासना करवाएं।
मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव
मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति के विचार काफी दृढ़ होते हैं और निर्णय लेने की क्षमता भी आसानी से लेते हैं। बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई इनकी रुचि रहती है और भविष्य के प्रति हमेशा गंभीर रहते हैं। इनको बचपन से ही पता रहता है कि आगे चलकर इनको क्या करना है और क्या नहीं। हर चीज का इनके पास पहले से प्लान रहता है। मदद के लिए यह हमेशा तैयार रहते हैं और खोजी बुद्धि के होते हैं। हर चीज की जानकारी लेना इनकी आदत होती है और कभी-कभी इस चक्कर में यह बुरे फंस भी जाते हैं। इनका स्वभाव काफी दयालु होता है, जिसकी वजह से कई इनका गलत फायदा उठा ले जाते हैं और धोखा भी खा जाते हैं।
मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति का करियर
कुशल और निपुण होने के कारण भविष्य के प्रति हमेशा गंभीर रहते हैं और हर मुकाम तक पहुंचते हैं। कार्यस्थल पर हमेशा आगे रहते हैं और अपने कार्य को समय पर पूरा करने के चलते अधिकारियों की पसंद भी रहते हैं। यह लोग अपना खुद का व्यवसाय करना ज्यादा पसंद करते हैं। चुनौतियों से लड़ना इनको पसंद होता है और संयम के साथ शत्रुओं से भी आसानी से निपट लेते हैं। लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं और परिवार के हर सदस्य के साथ इनका अलग कनेक्शन बनता है। अपने परिवार की हर जरूरत को पूरा करते हैं और माता-पिता की आज्ञा इनके लिए सबसे पहले आती है। इनके मित्र काफी सलेक्टेड होते हैं और उनके लिए यह कुछ भी कर सकते हैं। यह जल्दी किसी बंधन में नहीं बंधते लेकिन जब यह किसी रिश्ता बना लेते हैं तो उसकी समस्याओं को भी अपना बना लेते हैं।
(हस्तरेखातज्ञ पंडित विनोद जी द्वारा दी गई जानकारी)