Black and white fungs case: digi desk/BHN/भोपाल/ गांधाी मेडिकल कॉलेज भोपाल में 40 साल के एक युवक के फेफड़े में ब्लैक फंगस के साथ व्हाइट फंगस भी मिला है। व्हाइंट फंगस सांस नली के ऊपरी हिस्से में और ब्लैक फंगस फेफड़े के निचले हिस्से में मिला है। ब्रांकोस्कोपी से यह सामने आया है। विशेषज्ञों के मुताबिक दोनों फंगस एक साथ मिलना बहुत ही दुलर्भ मामला है। युवक कोरोना से हफ्ते भर पहले ही ठीक हुआ था।
अभी तक यही माना जा रहा था कि ब्लैक फंगस की बीमारी आम तौर पर उन्हीं लोगों को हो रही है जो डायबिटीज से पीड़ित हैं, लेकिन इस युवक को पहले से कोई बीमारी नहीं थी। कोरोना संक्रमण के बाद भी शुगर नहीं है। हमीदिया अस्पताल के छाती व श्वास रोग विभाग के प्राध्यापक डॉ. निशांत श्रीवास्तव ने कहा कि दोनों फंगस की वजह यह हो सकती है कि कोरोना के चलते मरीज की प्रतिरोधक क्षमता कम हुई होगी, जिससे यह बीमारी हुई। उन्होंने यह भी कहा कि आमतौर पर ब्लैक फंगस नाक, आंख और ब्रेन में पहुंचता है। फेफड़े में उन्हें पहली बार ब्लैक फंगस मिला है।
हालांकि, डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि म्यूकरमाइकोसिस पर्यावरण में रहता है। यह मुंह या श्वास नली से कहीं भी पहुंच सकता है। इस मरीज को नाक, ऑख या मुंह में कोई तकलीफ नहीं हुई। उन्होंने बताया कि मरीज आसानी से ठीक हो जाएगा। एक साथ दोनों बीमारियां होने से स्वस्थ होने में कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि व्हाइट फंगस सामान्य दवा से ठीक हो जाता है। व्हाइट फंगस के मामले पहले भी आते रहे हैं। 20 दिन से कुछ ज्यादा आ रहे हैं।
एक और मरीज के फेफड़े में मिला ब्लैक फंगस
हमीदिया अस्पताल में एक और मरीज के फेफड़े में ब्लैक फंगस का संक्रमण मिला है। उसका हमीदिया अस्पताल में इलाज चल रहा है। यहां नाक, कान एवं गला रोग विभाग के सह प्राध्यापक डॉ. यशवीर जेके ने बताया कि इंडोस्कोपी से नाक का फंगस निकालने के दौरान फेफड़े में संक्रमण मिला है
मरीज ने कहा कि कोरोना नहीं था
बुखार के चलते अप्रैल में भोपाल के एक निजी अस्पताल में भर्ती हुआ था। अस्पताल में कोरोना की कई बार जांच हुई। सीटी स्कैन भी हुआ, लेकिन कोरोना नहीं निकला। 22 दिन तक भर्ती रहने के बाद वहां से छुट्टी हो गई। इसके बाद हमीदिया के चिकित्सक डॉ . निशांत श्रीवास्तव को दिखाया तो उन्होंने पहले सीटी स्कैन कराई। इसके बाद ब्रांकोस्कोपी भी की । इसमें ब्लैक और व्हाइट फंगस का बीमारी का पता चला।
- नइम खान, मरीज
- निवासी, बिलकिसगंज सीहोर
क्या है व्हाइट फंगस
यह बीमारी कैंडिडा नामक फंगस से होती है। यह उन लोगों में आसानी से मिल जाती है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इनमें टीबी, एचआइवी और डायबिटीज पीिडत शामिल हैं। यह खतरनाक नहीं है जब तक ब्लड में न पहुंच जाए। खून में पहुंचना दुर्लभ होता है। इसका इलाज भी आसान है। साधारण एंटी फंगल दवाओं से इसे ठीक किया जा सकता है।
लक्षण
मुंह खोलने पर सफेद परत जैसी दिखती है। आहार नली में यह पहुंच जाता है, जिसे इंडोस्कोपी से देखा जा सकता है। आहार नली में पहुंचने पर खाना निगलने में तकलीफ होती है।