सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/इस्लाम धर्म में रमजान का महीना सबसे पवित्र माना जाता है। सतना शहर के जवाहर नगर निवासी शेरू खान के पुत्री ऐवं पुत्र मोहम्मद अल शागिल और शिरीन खान पूरे उत्साह के साथ रमजान में रोजे रख रहे है ।रमजान के महीने में मुस्लिम लोग रोजा रखते हुए अल्लाह की इबादत करते हैं। रोजे रखने का मतलब सिर्फ भूखा रहना नहीं होता है, बल्कि यह खुदा ही नहीं खुद की भी इबादत है।
मोहम्मद अल शागिल ने बताया कि रोजे रखने का अर्थ अपनी आदतों और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण भी होता है। रोजा रखने के कुछ खास नियम होते हैं। आइए इनके बारे में जानते हैं …माह-ए-रमजान मुबारक को तीन हिस्सों में बांटा गया है। पहला खंड 1 से 10 रोजे तक होगा। इसमें बताया गया है कि यह रहमतों (कृपा) का दौर है। इसके बाद दूसरे दस दिन मगफिरत (माफी) के और आखिरी हिस्सा जहन्नुम (नर्क) की आग से बचाने का करार दिया गया है।
अल सुबह फजर की अजान यानी सूरज उगने से पहले जो खाना खाया जाता है, उसे सहरी कहते हैं। सहरी करते-करते सुबह अजान का वक्त हो जाता है और रोजेदार नियत करके रोजा रख लेता है। शिरीन ने आगे बताया कि नमाज के बाद कुरान-ए-पाक की तिलावत की जाती है। दोपहर एक से सवा बजे के बीच जोहर की नमाज अता करनी होती है। शाम में 5 बजे के बाद असर की नमाज होती है। असर की नमाज के बाद लोग इफ्तार की तैयारी शुरू कर देते हैं और सूर्यास्त होते ही इफ्तार करते हैं।
इफ्तार के कुछ मिनट के अंदर मगरिब की नमाज होती है। रात में ईशा की नमाज के बाद लोग खाना खाकर तरावीह की नमाज पढ़ते हैं। तरावीह के दौरान कुरान की आयतों को पढ़ा जाता है और पूरी एक कुरान खत्म की जाती है। कहीं 5 दिन, कहीं 7 दिन तो कहीं महीने भर तरावीह की नमाज पढ़ी जाती है।
रोजे के दौरान सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का ही नियम नहीं है। बल्कि आंख, कान और जीभ का भी रोज़ा रखा जाता है यानि न बुरा देखें, न बुरा सुनें और न ही बुरा कहें। इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि आपके द्वारा बोली गई बातों से किसी की भावनाएं आहत न हों।