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अमेरिकी दूतावास ने पंजाब के वीजा एजेंटों के खिलाफ एक दुर्लभ मामले में शिकायत दर्ज करवाई

वाशिंगटन
अमेरिकी दूतावास ने पंजाब के वीजा एजेंटों के खिलाफ एक दुर्लभ मामले में शिकायत दर्ज करवाई है। इन एजेंटों पर अमेरिकी वीज़ा के लिए फर्जी कार्य अनुभव और शिक्षा प्रमाणपत्र जमा करने का आरोप है, ताकि अमेरिकी सरकार को गुमराह किया जा सके। पंजाब की कुछ निजी कंपनियों के मालिकों पर भी फर्जी प्रमाणपत्र जारी करने के आरोप लगे हैं। ये एजेंट अमेरिकी दूतावास और सरकार को धोखा देने के लिए झूठी जानकारी देते थे। अमेरिकी दूतावास के अधिकारी एरिक सी मोलिटर्स ने इस संबंध में पंजाब के डीजीपी गौरव यादव को शिकायत भेजी, जिसके बाद मामला दर्ज किया गया।

शिकायत में "रेड लीफ इमिग्रेशन", "ओवरसीज पार्टनर एजुकेशन कंसल्टेंट्स" और अन्य कंपनियों के नाम सामने आए हैं। अमेरिकी दूतावास ने इन सभी के खिलाफ पंजाब पुलिस से उचित कार्रवाई की मांग की थी। इसके बाद पंजाब पुलिस ने इन आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। पुलिस अब आगे की जांच कर रही है ताकि यह पता चल सके कि इन एजेंटों ने कितने फर्जी वीज़ा आवेदन किए हैं और उनके पीछे कौन-कौन से अन्य लोग शामिल हो सकते हैं।

इस मामले में कम से कम सात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। इनमें अमनदीप सिंह और पूनम रानी (ज़िरकपुर), अंकुर केहर (लुधियाना), अक्षय शर्मा और कमलजीत कंसल (मोहाली), रोहित भल्ला (लुधियाना) और कीर्ति सूद (बरनाला) शामिल हैं।  अमनदीप सिंह और पूनम रानी (ज़िरकपुर): ये दोनों "रेड लीफ इमिग्रेशन", चंडीगढ़ के पार्टनर हैं। अंकुर केहर (लुधियाना): अंकुर "ओवरसीज पार्टनर एजुकेशन कंसल्टेंट्स" के मालिक हैं। इसके अलावा, वह "रुद्रा कंसल्टेंसी सर्विस" चलाते हैं, जो अमेरिकी वीज़ा के लिए धन की व्यवस्था करने के बदले बड़ी रकम लेते थे।

इस मामले की शुरुआत तब हुई जब अमेरिकी दूतावास ने पंजाब के वीजा एजेंटों द्वारा जमा किए गए फर्जी दस्तावेज़ों का पता लगाया। इन एजेंटों पर आरोप है कि उन्होंने अमेरिकी वीज़ा आवेदन में फर्जी शिक्षा प्रमाणपत्र और कार्य अनुभव के दस्तावेज़ जोड़े, ताकि वीज़ा प्रक्रिया में धोखाधड़ी कर सकें और अमेरिकी सरकार को गुमराह कर सकें। जांच में सामने आया है कि ये एजेंट आवेदनकर्ताओं से भारी शुल्क लेकर उनके वीज़ा आवेदन के लिए नकली प्रमाणपत्र तैयार करवाते थे। इनमें नकली कार्य अनुभव और शिक्षा प्रमाणपत्र शामिल होते थे। ये दस्तावेज़ अमेरिकी दूतावास के सामने असली प्रमाणपत्रों के रूप में पेश किए जाते थे।

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