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MP: मप्र हाई कोर्ट ने नए कानून के तहत दिया पहला आदेश, पंडित धीरेंद्र शास्त्री से जुड़ा है मामला

  1. पंडित धीरेंद्र शास्त्री के विरुद्ध अशोभनीय टिप्पणी की होगी जांच
  2. हाई कोर्ट ने देश में लागू नए कानून के तहत दिया पहला आदेश
  3. जांच के बाद संज्ञेय अपराध मिलने पर FIR दर्ज करने के निर्देश

Madhya pradesh jabalpur mp high court gave first order under new criminal law the case is related to dhirendra shastri: digi desk/BHN/जबलपुर/ देश में एक जुलाई से लागू हुए तीन नए कानूनों के बाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने उनके प्रकाश में पहला आदेश पारित किया है। इसके अंतर्गत एक धर्मगुरु द्वारा अन्य धर्मगुरु व उनके परिवार पर अशोभनीय टिप्पणी करने के मामले में पुलिस को जांच करने के निर्देश दिए हैं।

नए कानून लागू होने के बाद यह पहला मामला

हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विशाल धगट की एकलपीठ ने नवीन नागरिक सुरक्षा संहिता की व्याख्या करते हुए पुलिस को निर्देश दिए कि जांच के बाद यदि संज्ञेय अपराध बनता है तो एफआइआर दर्ज कर आगे की कार्रवाई करें। यदि संज्ञेय अपराध नहीं बनता है तो उसकी जानकारी शिकायतकर्ता को दें ताकि वह उचित फोरम की शरण ले सके। इस तरह साफ है कि नए कानून लागू होने के बाद यह पहला मामला है, जिसमें हाई कोर्ट ने कोई आदेश पारित किया है।

याचिकाकर्ता गोटेगांव, नरसिंहपुर निवासी अमीश तिवारी की ओर से अधिवक्ता पंकज दुबे ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने गोटेगांव पुलिस में सात मई को शिकायत की थी कि दतिया निवासी धर्मगुरु गुरुशरण शर्मा तमाम साधु संतों के विरुद्ध टीका टिप्पणियां करते हैं और उन्हें इंटरनेट मीडिया के माध्यम से वायरल करते हैं।

पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर टिप्पणी

हाई कोर्ट को बताया गया कि गुरुशरण शर्मा ने बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के संबंध में अनादरपूर्वक संबोधन किया, जिसमें अशोभनीय भाषा का उपयोग किया गया। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री व उनके परिवार के लोगों के संबंध में अशोभनीय व लज्जा भंग करने जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया। इससे आहत होकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई।

भारतीय नागरिक संहिता की धारा 173 के तहत कार्रवाई

अधिवक्ता पंकज दुबे ने दलील दी कि नए कानून भारतीय नागरिक संहिता की धारा 173 के तहत पुलिस का यह दायित्व है कि शिकायत मिलने के 14 दिन के भीतर जांच करे। यदि अपराध असंज्ञेय है तो शिकायतकर्ता को उसकी सूचना दे। ऐसा नहीं होने पर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने नए कानून की व्याख्या करते हुए यह आदेश जारी किए।

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