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राहुल के सिर पर नेता प्रतिपक्ष का भारी ताज! सहयोगी दलों की महत्वाकांक्षाएं

नई दिल्ली

'पहले काबिल बनो, फिर इच्छा जाहिर करो', ऐसा प्रतीत होता है कि यह राहुल गांधी का आदर्श वाक्य है, जिन्होंने आखिरकार लोकसभा में विपक्ष के नेता का कार्यभार संभाल लिया है.

2004 में जब राहुल लोकसभा में पहुंचे, तो उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्री के रूप में काम करने के कई प्रस्ताव और अवसर मिले. लेकिन 2014 में जबतक की यूपीए सरकार सत्ता से बाहर नहीं हो गई राहुल इससे लगातार इनकार करते रहे. 

पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने तीन बार सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि उन्होंने राहुल को अपने मंत्रिपरिषद में शामिल होने की सलाह दी थी. हालांकि, राहुल ने यह मानते हुए इससे दूरी बनाए रखी कि उनके पास मंत्री पद के लिए जरूरी अनुभव या योग्यता की कमी है. शायद राहुल को अपने पिता की विरासत याद थी.  

अब राजीव के अधूरे सपने को पूरा करना राहुल गांधी का लक्ष्य है. 

राजीव गांधी 1984 में प्रधानमंत्री बने थे, तब उनकी उम्र सिर्फ़ 40 साल थी, पीएम पद पर उनकी ताजपोशी दुखद और कठिन परिस्थितियों में हुई थी. राजीव का आधुनिक दृष्टिकोण, तकनीक पर उनका जोर और देश की अर्थव्यवस्था, समाज और मानसिकता में रिफॉर्म लाने की उनकी मंशा शायद मुकम्मल नहीं हो सकी. वे षड्यंत्रों, दुस्साहसों और सत्ता के खेल के जाल में फंस गए, जिसकी कीमत आखिरकार मई 1991 में उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. 

54 साल की उम्र में राहुल अब कहीं ज्यादा तैयार और संतुलित नजर आते हैं. 2011 से 2014 के बीच गांधी परिवार के इस वारिस को कई झटके लगे. उन्हें राजनीतिक विरोधियों द्वारा बदनामी और उपहास का सामना करना पड़ा. लेकिन वे इससे अप्रभावित रहे, वे अपनी राजनीतिक रणनीति का आकलन करते हैं और उससे सीखकर और उसमें सुधार करते रहे, जब तक कि भारत जोड़ो यात्रा ने उन्हें एक उद्देश्य और दिशा नहीं दे दी. 

राहुल गांधी के लिए राजीव गांधी को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि भारत राष्ट्र को उसकी करुणा की सहज संस्कृति को पुनर्स्थापित करना होगा. इसके अलावा राहुल की जिम्मेदारी समाज में सामंजस्य स्थापित करना, बौद्धिक स्वतंत्रता और तकनीकी कौशल का उपयोग करना, युवाओं को जिम्मेदारी सौंपना और आखिरकार आर्थिक समृद्धि और समानता के सिद्धांत पर चलते हुए भारत की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना होगा. 

भारत के नेता प्रतिपक्ष के सामने ममता को खुश रखने की चुनौती

इन उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, विपक्ष के नेता के रूप में राहुल एक आम सहमति वाले व्यक्ति बनना चाहते हैं. राहुल को कांग्रेस को मजबूत करने के बजाय INDIA ब्लॉक के सहयोगियों को साथ लेकर चलने की चिंता होगी. विपक्ष के नेता के रूप में पहले दिन राहुल लगभग हर घंटे अखिलेश यादव, कल्याण बनर्जी, सुप्रिया सुले और टीआर बालू से सलाह लेते रहे. उन्होंने सुनिश्चित किया कि अध्यक्ष के चुनाव की रणनीति में ममता बनर्जी की सहमति और समर्थन मिलती रहे. 

गठबंधन के लिए ममता का समर्थन बहुत ज़रूरी है. 2024 चुनाव के नतीजे के बाद राहुल गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे और सोनिया गांधी से सलाह-मशविरा करके वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम से अनुरोध किया कि वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री से मिलें. ममता और चिदंबरम के रिश्ते राजीव गांधी के दौर से हैं, जब वे युवा कांग्रेस में थे. कहा जाता है कि चिदंबरम ने ममता से यह पक्का आश्वासन भी लिया कि वे गठबंधन का अभिन्न अंग बनी रहेंगी.

शैडो कैबिनेट 

एक “शैडो प्रधानमंत्री” के रूप में, यह देखना बाकी है कि क्या राहुल गांधी नरेंद्र मोदी सरकार को कंट्रोल में रखने के लिए “शैडो कैबिनेट” को औपचारिक रूप देंगे. यूनाइटेड किंगडम में प्रचलित शैडो कैबिनेट की अवधारणा भारत में उतनी स्पष्ट नहीं है. लेकिन अगर राहुल INDIA ब्लॉक के भीतर प्रतिभा की तलाश करते हैं, तो वे अखिलेश यादव, अभिषेक बनर्जी, टीआर बालू और सुप्रिया सुले जैसे लोगों को इसमें शामिल कर सकते हैं.

वह अपनी पार्टी के अंदर भी शशि थरूर, मनीष तिवारी, तारिक अनवर, के सुरेश, गौरव गोगोई, कुमारी शैलजा, शशिकांत सेंथिल जैसे नेताओं को भी इस शैडो कैबिनेट में उपयुक्त पद और प्रतिष्ठा दे सकते हैं. शैडो कैबिनेट का ये सिस्टम मीडिया और मतदाताओं को ध्यान खींच सकता है. हालांकि इसके लिए ये जरूरी है कि INDIA ब्लॉक 2029 तक मोमेंटम कायम रख सके. 

संसदीय शाखा और पार्टी के बीच तारतम्यता

अब जबकि राहुल गांधी औपचारिक रूप से कांग्रेस के राजनीतिक नेतृत्व का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उन्हें पार्टी नेतृत्व को अधिक महत्व देने की आवश्यकता है. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे की शैली और कार्यप्रणाली ऐसी है कि वे नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल को लूप में रखेंगे. हालांकि पार्टी की कार्य प्रणाली को और भी चुस्त-दुरुस्त और एक्टिव करने की जरूरत है. 

इस प्रस्तावित योजना में राहुल गांधी के लिए एक राजनीतिक सचिव उनका उद्देश्य पूरा कर सकता है. राहुल केसी वेणुगोपाल को चुनने के बजाय, शशिकांत सेंथिल या प्रणीति शिंदे जैसे कुछ युवा चेहरों पर विचार कर सकते हैं.

खड़गे अक्टूबर 2023 से कांग्रेस अध्यक्ष हैं और अपने कर्तव्य को समर्पित और सराहनीय तरीके से निभा रहे हैं; लेकिन निर्णय लेने की प्रक्रिया में देरी से संबंधित मुद्दे भी रहे हैं. एक बड़ी समस्या दिल्ली में एक ऐसे शख्स की कमी है जो मुद्दों को सुना करें. यह काम अहमद पटेल बहुत ही कुशलता से किया करते थे. अगर प्रियंका केसी वेणुगोपाल की जगह कांग्रेस महासचिव बन जाती हैं, तो कांग्रेस पार्टी को नई जान मिल सकती है.

झारखंड, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव

राहुल गांधी, कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक को झारखंड, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और महाराष्ट्र के 2024 के विधानसभा चुनावों में लिटमस टेस्ट का सामना करना पड़ेगा. अगर NDA तीन में से चार चुनावों में हार जाता है, तो INDIA ब्लॉक की कहानी कहीं ज़्यादा आशाजनक हो सकती है, जिससे नरेंद्र मोदी 3.0 सरकार की उम्र पर सवालिया निशान लग सकता है. इसलिए सभी की निगाहें राहुल और उनके रोडमैप पर हैं. 
 

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