Bhishma Dwadashi 2021:digi desk/BHN/ महाभारत में भीष्म पितामह की भूमिका के बारे में तो हर कोई जानता है, लेकिन भीष्म पितामह के निर्वाण दिवस को भीष्म द्वादशी के बारे में मनाया जाता है, यह बहुत कम लोग ही जानते हैं। वैदिक शास्त्रों के मुताबिक भीष्म द्वादशी हर वर्ष माघ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भीष्म पितामह द्वार देह त्याग करने के बाद सभी धार्मिक अनुष्ठान व अंतिम समय के धार्मिक क्रियाकिलाप संपन्न किए गए थे। महाभारत के भीष्म पर्व अध्याय में इस बारे में स्पष्ट उल्लेख किया गया है। भीष्म द्वादशी के दिन भीष्म पितामह के साथ भगवान श्री कृष्ण की भी पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भीष्म पितामह ने भीष्म अष्टमी के दिन यानी माघ माह की अष्टमी तिथि को इच्छामृत्यु के वरदान का अनुपालन करते हुए अपना शरीर त्याग दिया था, लेकिन भीष्म पितामह का निर्वाण दिवस द्वादशी तिथि को मनाई जाती है।
- माघ मास, शुक्ल पक्ष, द्वादशी तिथि, 24 फरवरी, बुधवार
- द्वादशी तिथि आरंभ- 23 फरवरी 2021, मंगलवार शाम 6.06 मिनट से
- द्वादशी तिथि समाप्त- 24 फरवरी 2021, बुधवार शाम 6.07 मिनट तक
भीष्म द्वादशी का धार्मिक महत्व
पौराणिक मान्यता है कि भीष्म द्वादशी के दिन व्रत करने से व्यक्ति दृढ़निश्चयी बनता है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस दिन भूखे व्यक्तियों को भोज कराना चाहिए। साथ ही अपने सामर्थ के अनुसार दान दक्षिणा भी देना चाहिए। भीष्म द्वादशी के दिन स्नान-दान करने से व्यक्ति को सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है और धन-संतान की प्राप्ति भी होती है। भीष्म द्वादशी के दिन इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि भूखे व गरीब लोगों को भोजन कराने के बाद ही खुद भोजन करें। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है। महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि जो व्यक्ति भीष्म द्वादशी के दिन अपने पितरों के निमित दान करेगा तो उसे सदैव प्रसन्नता ही प्राप्त होगी। भीष्म द्वादशी के दिन मुरलीधर कृष्ण की भी पूजा अर्चना करना चाहिए और माखन का भोग चढ़ाना चाहिए।