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इतनी कम सीटों पर लड़ रही कांग्रेस, फिर 2004 वाले फॉर्मूले से क्यों है उम्मीद

नई दिल्ली

लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस करीब 330 सीटों पर ही उम्मीदवार उतारने वाली है। देश के चुनावी इतिहास में ऐसा पहली बार होगा, जब कांग्रेस सिर्फ इतनी सीटों पर ही कैंडिडेट उतार रही है। इस बारे में जब सवाल पूछा गया तो कांग्रेस का कहना है कि यह हमारी कमजोरी नहीं है बल्कि रणनीति है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने तो 20 साल पुराने 2004 के लोकसभा चुनाव का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि तब भी हम गठबंधन में उतरे थे और उस दौर में भी कहा गया था कि हम अपने इतिहास में सबसे कम सीटें लड़ रहे हैं। तब हमने अपने साथियों के लिए सीटें छोड़ी थीं और जब नतीजे आए तो आपने देखा कि सरकार बदल गई।

हालांकि यह आंकड़ा तो 2004 के मुकाबले भी काफी कम है। तब कांग्रेस ने 417 सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारे थे। इसके बाद 2009 में वह 440 सीटों और 2014 में 464 पर उतरी थी। फिर 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस ने 421 सीटों पर ही मुकाबला किया और अब यह संख्या उसके इतिहास की सबसे कम है, जब करीब 330 पर ही कैंडिडेट उतारने की तैयारी है। जयराम रमेश ने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि हम यूपी, महाराष्ट्र और बंगाल जैसे बड़े राज्यों में अपने साथियों से सीटों का समझौता कर रहे हैं।

जयराम रमेश ने कहा, 'आप मेरे शब्दों को याद रखिएगा। 2024 में भी स्थिति 2004 के जैसी ही है। हमने जानबूझकर इन सीटों में कम सीटें ली हैं। हम चाहते हैं कि एक प्रभावी गठबंधन तैयार हो। इस चुनाव में कांग्रेस और INDIA गठबंधन को स्पष्ट बहुमत हासिल होगा। हमें चुनाव के बाद किसी और दल या फिर एनडीए के फ्लॉप होने वाले साथियों की जरूरत नहीं होगी।' उन्होंने कहा कि हमने तो पूर्वोत्तर तक में भाजपा से मुकाबला करने वाले क्षेत्रीय दलों से गठबंधन किया है।

कांग्रेस का कहना है कि 2014 से पीएम नरेंद्र मोदी के उभार के बाद उसे झटका लगा है। यूपी, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल, बिहार जैसे बड़े राज्यों में उसकी उपस्थिति कम हुई है। ऐसी स्थिति में वह अपने मजबूत क्षेत्रीय सहयोगियों को ज्यादा सीटें दे रही है। ये दल भाजपा के मुकाबले मजबूत स्थिति में हैं। ऐसे में यदि इन राज्यों में भाजपा को झटका लगता है तो फिर कांग्रेस के नेतृत्व वाला INDIA अलायंस फायदे में होगा। अहम बात यह है कि इन्हीं राज्यों से लोकसभा की करीब 40 फीसदी सीटें आती हैं।

 

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