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लोकसभा चुनाव में मतदाताओं तक पहुंचने के लिए भाजपा, कांग्रेस और आप वर्चुअल विज्ञापनों का सहारा ले रही

नईदिल्ली
लोकसभा चुनाव की आभासी सियासी जंग भी बेहद दिलचस्प है। मतदाताओं तक सीधे पहुंच बनाने वाले इस प्लेटफाॅर्म पर दिल्ली में मुकाबला अभी भाजपा व कांग्रेस के बीच दिख रहा है। गूगल एड व मेटा के सियासी विज्ञापन इसका सहारा बने हैं। आने वाले दिनों में इसमें बढ़ोतरी की उम्मीद है। जानकारों के अनुसार आभासी दुनिया में पार्टियां तीन तरीके से मतदाताओं तक पहुंच रही हैं। इसमें दो बड़े प्लेटफाॅर्म गूगल एड और मेटा है। पार्टियां दोनों प्लेटफाॅर्म पर लुभावने विज्ञापन दिखाकर मतदाताओं को अपने हक में लामबंद करने की कोशिश कर रही हैं। इसकी एवज में राजनीतिक दलों को खर्च भी करना पड़ता है। तीसरा तरीका एन्फ्लूएंसर होता है, जिस पर होने वाले खर्च का पता करना पाना आसान नहीं होता।

आंकड़ों के अनुसार लोकसभा चुनाव घोषित होने के बाद से भाजपा के साथ कांग्रेस ने भी इस माध्यम पर भरोसा जताया है। बीते करीब एक महीने में गूगल एड पर कांग्रेस ने 43.07 लाख रुपये व भाजपा ने 56.4 लाख रुपये खर्च किए हैं। वहीं, मेटा पर आंकड़ा क्रमश: पचास हजार व 1.76 लाख रुपये का है। दूसरी तरफ आप ने अभी तक मेटा पर सिर्फ सात लाख रुपये खर्च किए हैं। —–

हर दिन औसतन एक हजार डिजिटल विज्ञापन
गूगल एड ट्रांसपेरेंसी सेंटर की ओर से जारी किए गए डेटा के मुताबिक, राजनीतिक दलों ने चुनाव की घोषणा के दिन से लेकर अब तक दिल्ली में दिखाए जाने वाले 32,336 डिजिटल विज्ञापन जारी किए हैं। इस लिहाज से हर दिन एक हजार और हर घंटे 44 से ज्यादा विज्ञापन यूजर तक पहुंच रहे हैं। इस पर होने वाला खर्च 1.16 करोड़ रुपये है। इस मामले में भाजपा ने सबसे अधिक रुपये खर्च किए हैं। भाजपा ने 16 मार्च से अब तक लगभग 56 लाख रुपये गूगल एड पर खर्च किए हैं, जबकि कांग्रेस ने इस अवधि में 43 लाख रुपये खर्च किए हैं। आप ने अभी तक गूगल एड्स पर भरोसा नहीं जताया है।

उधर, मेटा की एड लाइब्रेरी रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले एक माह में 10 अप्रैल तक भाजपा ने केवल इंस्टाग्राम और फेसबुक पर ऑनलाइन विज्ञापनों में 1.76 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जबकि इस अवधि के दौरान कांग्रेस ने विज्ञापनों पर करीब दस हजार रुपये ही खर्च किए हैं। हालांकि, आप ने मेटा में रुचि दिखाई है। पार्टी ने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सात लाख रुपये खर्च किए हैं।

एक करोड़ यूजर तक पहुंचा एड
दिलचस्प यह कि यूजर तक पहुंच भी एड लग-अलग रही है। डेटा के मुताबिक, भाजपा के एक फोटो विज्ञापन को गूगल ने एक करोड़ से अधिक बार यूजर को दिखाया है। 23 दिनों में इस पर सिर्फ तीन लाख रुपये खर्च किए। वहीं, कांग्रेस का वीडियो विज्ञापन पांच लाख रुपये खर्च करने पर 45 लाख बार यूजर को दिखाया गया है। विशेषज्ञ बताते हैं कि फोटो विज्ञापन सस्ता पड़ता है,जबकि वीडियो व पॉड कॉस्ट महंगा पड़ता है।

विज्ञापन में पार्टियों के दावे:

    भाजपा का विज्ञापन सकारात्मक व अपनी योजनाओं को प्रचार करने वाला है। साथ में बीच-बीच में दावा भ्रष्टाचार हटाने का भी है।

    कांग्रेस व आप के ज्यादातर विज्ञापनों में भाजपा व केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया गया है। बीच-बीच में वादे व इरादों पर दोनों दल चर्चा करते हैं।

यूं होता विज्ञापन:
पार्टियां डिजिटल प्लेटफार्म पर क्षेत्र, आयु, वर्ग व पसंद के आधार पर लक्षित समूह बनाती हैं। इसके बाद बजट और उसे चलाने की अवधि भी तय की जाती है। फिर, यह विज्ञापन यूट्यूब वीडियो, वेबसाइट, एप आदि के जरिए यूजर तक पहुंचाता है। यूजर अपनी पसंद व जरूरत के अनुसार विज्ञापन पर जब अपनी प्रतिक्रिया देते हैं, तब विज्ञापन का मकसद पूरा हो जाता है।

संजीदगी से तय होता कंटेंट
विशेषज्ञ बताते हैं कि आज के दौर में नियम सख्त हैं। चुनाव आयोग भी निगरानी कर रहा है। ऐसे में विज्ञापन का कंटेंट तय करने में संजीदगी दिखानी पड़ती है। अगर विज्ञापन नियमों को तोड़ता है तो उसे गूगल एड व मेटा से हटा दिया जाता है।

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