Monday , November 25 2024
Breaking News

लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल के लिए 42 में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा

नई दिल्ली 
लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल के लिए 42 में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को पाने के लिए बीजेपी राज्य की ममता सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दों पर लगातार घेर रही है. पार्टी अब भ्रष्टाचार के साथ-साथ अयोध्या में राम मंदिर और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) जैसे भावनात्मक विषयों पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है. दरअसल बीजेपी तृणमूल कांग्रेस के INDIA ब्लॉक से अलग होकर चुनाव लड़ने के फैसले से उत्साहित है. 

इस कदम ने भगवा खेमे के भीतर टीएमसी विरोधी वोटों को एकजुट करने की उम्मीदें बढ़ा दी हैं. 2014 में बंगाल में जहां बीजेपी का मत प्रतिशत 17% था वो 2019 में बढ़कर 40% हो गया, जिसके परिणामस्वरूप  बीजेपी को राज्य 18 लोकसभा सीटों पर जीत मिली. पार्टी को 2021 के विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था और उसके बाद हुए आंतरिक कलह तथा उप चुनाव में भी सफलता नहीं मिली थी. तब से ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को भुनाने की भाजपा की कोशिशें विफल रही हैं.

बीजेपी नेताओं ने बताया भावात्मक मुद्दा
42 लोकसभा सीटों में से 35 सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ, भाजपा अब राम मंदिर और सीएए जैसे भावनात्मक मुद्दों के भरोसे आगे बढ़ रही है. भाजपा की राज्य महासचिव अग्निमित्रा पॉल ने एजेंसी से बात करते हुए बताया, 'राम मंदिर का उद्घाटन और सीएए का कार्यान्वयन दोनों पार्टी के मुख्य मुद्दे हैं. दोनों मुद्दे भावनात्मक हैं, और लोग इससे जुड़ सकते हैं.' राम मंदिर में हुई प्राण प्रतिष्ठा का जिक्र करते हुए भाजपा सांसद और पूर्व राज्य अध्यक्ष दिलीप घोष ने इन मुद्दों की भावनात्मक अपील को रेखांकित किया. उन्होंने हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने और विशेष रूप से मतुआ समुदाय के बीच शरणार्थी चिंताओं पर जोर दिया. घोष ने कहा, 'सीएए लागू करने के वादे ने भाजपा की चुनावी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.'

मतुआ समुदाय पर नजर
2015 से 2021 तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में काम करने वाले घोष ने कहा, "राम मंदिर मुद्दे ने पहले भी भाजपा को फायदा पहुंचाया है और इस बार भी फायदा मिलेगा. इससे हमें बंगाल सहित देश भर में हिंदुओं को एकजुट करने में मदद मिलेगी. राज्य में बड़ी संख्या में मतुआ समुदाय के लोग रहते हैं, जो राज्य की अनुसूचित जाति आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. भारत के विभाजन के बाद 1950 के दशक से पूर्वी पाकिस्तान, अब बांग्लादेश से बड़ी संख्या में मतुआ समुदाय के लोग भागकर पश्चिम बंगाल आ गए.
 
मतुआ समुदाय के मतों पर हर दल की नजर रहती है. नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के वादों के वादों को लेकर मतुआ समुदाय ने 2019 में बीजेपी के पक्ष में एकजुट होकर मतदान किया था. 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अधिनियमित सीएए,31 दिसंबर 2014 से पहले बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत में आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध से, पारसी और ईसाइयों सहित सताए गए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है.

आपको बता दें कि बंगाल चुनाव में मतुआ समुदाय का रोल बेहद अहम रहा है. बंगाल की कुल अनुसूचित जाति में करीब 50 फीसदी मतुआ समुदाय है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक़ बंगाल में अनुसूचित जाति 23.51 फीसदी है. इसमें 50 फीसदी मतुआ मतदाता हैं. ये बंगाल की 70 विधानसभा सीटों पर असर रखते हैं. यही वजह है कि हर दल मतुआ समुदाय को साधने की कोशिश कर रहा है.

क्यों है बीजेपी को भरोसा
लोकसभा चुनाव से पहले सीएए लागू करने की खबरों के बीच केंद्रीय मंत्री और मतुआ नेता शांतनु ठाकुर ने हाल ही में कहा था कि सीएए जल्द ही लागू किया जाएगा.  राज्य में चुनाव जीतने के लिए भाजपा द्वारा राम मंदिर और सीएए का सहारा लेने के मुद्दे पर बीजेपी नेताओं ने कहा कि यह "संगठनात्मक चुनौतियों की स्वीकार्यता" को दर्शाता है.

About rishi pandit

Check Also

शिवसेना नेता संजय राउत ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ पर जमकर निशाना साधा, लगाए गंभीर आरोप

नई दिल्ली शिवसेना नेता संजय राउत ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ पर रविवार को …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *