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….तो वह इंसान से मिट्टी हो जाता है!

लघुकथा

मैं आज बहुत हतप्रभ था जब एक बच्चे को यह कहते सुना कि मेरे पापा को मिट्टी मत कहो वो अभी तो कुछ ही देर पहले मुझे स्कूल छोड़कर आये थे। पंद्रह मिनट पहले वो मुझे बोले थे बेटा शाम को मैं तुम्हे आज नए कपड़े दिला दूंगा। वो इंसान से इतना जल्दी मिट्टी कैसे बन सकते है। बहुत गुस्सा है उसकी बातों में और जो भी बोलता था कि मिट्टी को बाहर करो उसी से वह दुखी भाव मे पूंछता कि कोई इतना जल्दी मिट्टी कैसे बन सकता है?

बात उन दिनों की है जब मैं भोपाल में पढ़ाई करता था सुबह के नौ बजे मैं अपने कॉलेज जाने को तैयार ही हो रहा था कि पड़ोस में बहुत चीख पुकार मची थी, मैं भी सुनकर जल्दी जल्दी बिना कंघी किये बिना चप्पल पहने उधर को भगा……. पता चला कपिल के पापा का एक्सीडेंट हो गया और एक्सीडेंट इतना तगड़ा था कि मौके में ही उनकी मौत हो गयी! जब वह सुबह कपिल को स्कूल से छोड़कर वापस आ रहे थे। 

घर मे बहुत ही तेज विलाप चल रहा था।

सब लोग विलख रहे थे इस असीम दुख की घड़ी में, मैं भी अपने आप आपको असहज महसूस कर रहा था कपिल के प्रश्नवाचक शब्द सुनकर! गहरा घाव कर रहे थे उसके ये शब्द की मेरे पापा को मिट्टी मत कहो।

कपिल बहुत ही सुंदर और होनहार लड़का था अक्सर मेरी उसकी भेट पास वाले हनुमान मंदिर में हो जाती थी उसके पापा उसे लेकर हर मंगलवार और शनिवार को आते थे।
उसके पापा एक इन्सुरेंस कंपनी में काम करते थे निहायत बहुत ही सज्जन व्यक्ति थे वैसे तो वे इलाहाबाद के रहने वाले थे भोपाल से पढ़ाई करने के बाद वही जॉब करने लगे थे वो अपने माता पिता की इकलौती संतान थे उनके माता पिता भी उन्ही के साथ रहते थे।

मुझे भी लग रहा था जो कपिल पूंछ रहा है वह सही है,कैसे कोई इतना जल्दी इंसान से मिट्टी बन सकता है।
आज वो पिता मिट्टी हो गया जो हमे जन्म दिया, बड़े प्यार से हमारा लालन-पालन किया। हमारी हर छोटी बड़ी जरूरतों को पूरा किया।
आज वो पिता मिट्टी हो गया जो हमे उंगली पकड़कर चलना सिखाया, आज वो पिता मिट्टी हो गया, जो हमे थोड़ी बुखार आ जाती तो पता नही कहाँ कहाँ भागता…आज वो पिता मिट्टी हो गया जो स्कूल के दाखिला के लिए पता नही किसके-किसके हाथ जोड़ा ?.

कपिल का यह सवाल अक्सर मेरे दिलो-दिमाग में गूंजता रहता हैं कि आदमी, इंसान से मिट्टी कितना जल्दी बन जाता है।
इस घटना के बाद मुझे ये समझ आया कि सारे रिश्ते स्वार्थ के अधीन होते हैं, जब तक वह इंसान सबके स्वार्थ के लिए अपने आप को समर्पित रखता है तब तक इंसान है, लेकिन जैसे ही वह अपने आप को किसी के स्वार्थ सिद्ध में असमर्थ पाता है तो वह इंसान से मिट्टी हो जाता है.….😢😢😢😢😢😢 हाय रे मिट्टी…………!

                                                                                                   पण्डित योगेश गौतम

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