Sunday , September 22 2024
Breaking News

छत्तीसगढ़ के कण-कण और रोम-रोम में बसे हैं प्रभु श्रीराम: नानी और मामा के गांव में रामोत्सव पर जश्न का माहौल

रायपुर.

छत्तीसगढ़ के कण-कण और रोम-रोम में प्रभु श्रीराम बसे हैं। वनवास के समय भगवान श्रीराम ने 14 साल में से 10 साल छत्तीसगढ़ में ही बिताये हैं। यहां की धरती पर नंगे पैर चले हैं। यहां की भूमि धन्य हैं, जो भगवान राम की लीलाओं को अपने अंदर समेटे हुई है। श्रीराम दंडकारण्य (वर्तमान बस्तर) समेत अनकों जगहों पर बिताये हैं। यहां के ऋषि-मुनियों से भेंट मुलाकात करने के साथ ही शिक्षा ग्रहण किए हैं। असुरों का संहार किए हैं।

प्रभु श्रीराम के वनवास काल की यादें आज भी छत्तीसगढ़ के वनांचल क्षेत्रों में बिखरी हुई हैं। इन स्मृतियों को संजोने का काम किया जा रहा है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि छत्तीसगढ़ की कण-कण और रोम-रोम में श्रीराम बसे हुए हैं। आज प्रभु श्रीराम के ननिहाल छत्तीसगढ़ में भी उत्सव और आनंद का माहौल है। साय की पहल पर इस ऐतिहासिक पल की यादों को संजोने के लिए पूरे छत्तीसगढ़ में 22 जनवरी को रामोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर छत्तीसगढ़ में जगह-जगह आयोजन हो रहे हैं। मंदिरों की साफ-सफाई, मानस गान सहित मंदिरों में भण्डारे जैसे आयोजन किए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ के लोगों से 22 जनवरी को दीपोत्सव का आयोजन की अपील की है। छत्तीसगढ़ में माता शबरी की नगरी, शिवरीनारायण और माता कौशल्या की नगरी चंदखुरी में भव्य रामोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। पूरे मंदिर परिसर की आकर्षक सजावट की गई है। इस मौके पर दीपोत्सव का आयोजन भी किया जा रहा है। प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर छत्तीसगढ़ के हर घर में अपार उत्साह और उमंग का माहौल है। लोग स्वस्फूर्त ढंग से अपने घरों की सजावट कर रहे हैं।

त्रेतायुग में छत्तीसगढ़ था दक्षिण कोशल प्रदेश
प्रभु श्रीराम का छत्तीसगढ़ से गहरा नाता रहा है। ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था। संभवतः इसी आधार पर श्रीराम को कोशलाधीश कहा जाता है। दक्षिण कोसल को ही श्रीराम का ननिहाल कहा जाता है। प्रभु श्रीराम ने वनवास काल का अधिकांश समय यहीं बिताया। इसकी स्मृति चिन्ह भी अनेक स्थानों पर मौजूद हैं। यह भी मान्यता है कि बलौदाबाजार के तुरतुरिया स्थित वाल्मीकि आश्रम में माता सीता ने पुत्र लव और कुश को जन्म दिया था। श्रीराम के पुत्र कुश की राजधानी श्रावस्ती (वर्तमान में सिरपुर, जिला महासमुन्द) में होने के प्रमाण विभिन्न ग्रंथों में मिलते हैं। सिहावा क्षेत्र को सप्तऋषियों की तपोभूमि कहा जाता है। जनश्रुतियों के अनुसार सिहावा के प्राचीन मंदिर कर्णेश्वर मंदिर का संबंध त्रेतायुग से बताया जाता है।

छत्तीसगढ़ में  प्रभु श्रीराम को मानते हैं भांजा  
पूरे देश में संभवतः छत्तीसगढ़ ही ऐसा राज्य है, जहां लोग अपने भांजे के पैर छूकर प्रणाम करते हैं। कहा जाता है कि दक्षिण कोसल श्रीराम का ननिहाल होने के कारण उन्हें समूचे छत्तीसगढ़ का भांजा माना जाता है और यहां के लोग प्रभु श्रीराम को श्रद्धा पूर्वक प्रणाम करते हैं। इसी कारण यहां के लोग अपने भांजे को श्रीराम का स्वरूप मानते हुए प्रणाम करते हैं और यह परिपाटी पूरे प्रदेश में है।
बालकांड, किष्किंधा कांड और अरण्य कांड में जिक्र
रामचरित मानस के बालकांड, किष्किंधा कांड और अरण्य कांड में त्रेतायुग के ऋषि मुनियों को सताने वाले, उनके यज्ञ का ध्वंस करने वाले राक्षसों का वर्णन है। वनवास काल में ही इन्हीं राक्षसों का वध प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण द्वारा किए जाने का उल्लेख है। तत्कालीन दंडक क्षेत्र वर्तमान में बस्तर संभाग के अधिकांश जिलों में सम्मिलित है।

श्रीराम ने माता शबरी के जूठे बेर खाये
वनवास के दौरान माता सीता का अपहरण किए जाने के बाद उनकी खोज में प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण वन में यत्र तत्र भटकते रहे। इसी बीच उनकी भेंट शबरी माता से हुई, जिनके जूठे बेर प्रभु ने ग्रहण किए। शिवरीनारायण मंदिर (जिला जांजगीर) में स्थापित मंदिर में इसके अनेकों प्रमाण उपलब्ध हैं। मंदिर प्रांगण में एक अतिप्राचीन बरगद का पेड़ है जिसके पत्ते आज भी दोना के आकार में मुड़े हुए हैं। ऐसी मान्यता है कि शबरी ने इसी पेड़ के पत्तों से दोना बनाकर प्रभु श्रीराम को जूठे बेर परोसे थे। यहीं समीप के ग्राम खरौद में लक्ष्मणेश्वर मंदिर है जहां राम के अनुज लक्ष्मण ने शक्ति बाण के दुष्प्रभाव से मुक्त होने यहां स्थित प्राचीन शिवलिंग पर चावल के एक लाख साबूत दाने चढ़ाए थे। इसके बाद वे मेघनाथ के द्वारा चलाए गए शक्ति बाण के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त हो गए

सरगुजा की सीताबेंगरा की गुफा विश्व की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला
 सरगुजा की सीताबेंगरा की गुफा को विश्व की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला माना जाता है। इस गुफा का इतिहास प्रभु श्री राम के वनवासकाल से जुड़ा है। कहा जाता है कि वे माता सीता और लक्ष्मण ने वनवास के समय उदयपुर ब्लॉक अंतर्गत रामगढ़ की पहाड़ी और जंगल में समय व्यतीत किया था। रामगढ़ के जंगल में तीन कमरों वाली एक गुफा भी है जिसे सीताबेंगरा के नाम से जाना जाता है। सीताबेंगरा का शाब्दिक अर्थ है सीता माता का निजी कक्ष। भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में इस बात का उल्लेख मिलता है कि इस जगह पर विश्व की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला है, जहां पर उस समय लोग नाटकों का यहां मंचन किया करते थे। यह भी मान्यता है कि त्रेता युग में प्रभु श्री राम का खल्लारी (वर्तमान में जिला महासमुन्द) आगमन हुआ था, इस स्थान को द्वापर युग में खलवाटिका नगरी के नाम से जाना जाता था। यह भी मान्यता है कि प्रभु श्रीराम जिस नाव से यहां आए थे, अब वो पत्थर में तब्दील हो चुका है, और वो वैसा का वैसा ही है।

प्रभु श्रीराम से जुड़े छत्तीसगढ़ के प्रमुख स्थान
0- माता कौशल्या की नगरी चंदखुरी, जिला रायपुर
0- शिवरीनारायण, जिला जांजगीर चांपा
0- राजिम-कुलेश्वर मंदिर, जिला गरियाबंद
0- तुरतुरिया स्थित वाल्मीकि आश्रम, बलौदाबाजार
0- श्रीराम के पुत्र कुश की राजधानी श्रावस्ती (वर्तमान में सिरपुर, जिला महासमुन्द)
0- सिहावा सप्तऋषियों की तपोभूमि, जिला धमतरी
0- सीताबेंगरा की गुफा, जिला सरगुजा
0- प्रभु श्रीराम का खल्लारी, जिला महासमुन्द

About rishi pandit

Check Also

नई लेदरी में स्वच्छस्वच्छता अभियान के तहत मैराथन दौड़़ का आयोजन रखा गया

झगराखाण्ड जिले के नगर पंचायत नई लेदरी में छत्तीसगढ़ सरकार के निर्देशानुसार स्वच्छता ही सेवा …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *