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56 सालों तक 15 जनवरी को ही मनाई जाएगी मकर संक्रांति, क्यों आया एक दिन का अंतर?

ग्रहों के राजा सूर्य एक निश्चित अवधि के बाद राशि परिवर्तन करते हैं, ऐसे में इस दिन को संक्रांति कहा जाता है. सूर्य ने आज यानी 15 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश किया है. सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से इसे मकर संक्रांति कहा जाता है. हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है. इस दिन स्नान और दान से पुण्य प्राप्त होता है.

मकर संक्रांति मलमास या खरमास के अंत का प्रतीक है, जो हिंदू (पंचांग) कैलेंडर में एक अशुभ महीना है. सूर्य का मकर राशि में प्रवेश मौसम में बदलाव की शुरुआत करता है. इसे उत्तर में लोहड़ी, असम में बिहू और दक्षिण में पोंगल के रूप में मनाया जाता है. मकर संक्रांति का विशेष महत्व उत्तर दिशा से आने वाली सूर्य की किरणों से है, जिसे देवताओं का निवास स्थान माना जाता है. इसलिए इस दिन से अच्छी शक्तियों का उदय होता है और दक्षिण दिशा में रहने वाली बुरी शक्तियों की ताकत कम हो जाती है.

2080 तक मनेगी 15 जनवरी को
मकर संक्रांति लंबे समय से 14 जनवरी को ही मनाई जाती रही है, उसे 2019 से 15 जनवरी को मनाया जा रहा है. पिछले छह सालों में केवल वर्ष 2021 अपवाद रहा जब 14 जनवरी को ही मकर संक्रांति मनाई गई थी. लेकिन अब 2080 तक मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई जाएगी.

बदलाव क्यों?
मान्यता के अनुसार हर साल सूर्य के राशि परिवर्तन में 20 मिनट का अंतर आ जाता है. तीन सालों में यह अवधि बढ़कर एक घंटा हो जाती है. इस प्रकार 72 सालों में 24 घंटे या एक दिन का अंतर आ जाता है. इसीलिए मकर संक्रांति भी एक दिन आगे बढ़ जाती है. हिंदू कैलेंडर तय करने वाले संस्थान के अनुसार सूर्य के ग्रह विन्यास में परिवर्तन होता है, जिससे कैलेंडर बनाया जाता है. कैलेंडर के अनुसार इस बार अगले 56 सालों तक मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई जाएगी.

क्या नहीं बदलता
लोहड़ी, पोंगल और बिहू 13 और 14 जनवरी को मनाए जाते रहेंगे. क्योंकि ये त्योहार तिथि के अनुसार मनाए जाते हैं, न कि हिंदू कैलेंडर में परिवर्तन के अनुसार.

एक मान्यता ये भी
मकर संक्रांति को एक दिऩ आगे बढ़ाए जाने की परंपरा को खारिज करते हैं. उनका कहना है कि मेरे अनुसार मकर संक्रांति अभी भी 14 जनवरी को ही मनाई जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि जो लोग 14 जनवरी को मकर संक्रांति को मना रहे हैं वो ठीक कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अब हर त्योहार दो दिन मनाया जाने लगा है, ये परंपरा गलत है.

आम तौर पर शुक्र का उदय भी लगभग इसी समय होता है। इसलिए यहां से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। वाराणसी से प्रकाशित ऋषिकेश पंचांग के अनुसार, इस दिन पौष शुक्ल पंचमी है। इस दिन शतभिषा नक्षत्र और चंद्रमा की स्थिति कुंभ राशि पर है। इसी दिन सूर्य धनु राशि का परित्याग कर सुबह 9 बजकर 13 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। ग्रहों के राजा सूर्य 15 जनवरी को राशि परिवर्तन करेंगे। सूर्य, धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। ऐसे में अब 2080 तक मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई जाएगी। इसके बाद फिर ज्योतिष गणना के अनुसार, मकर संक्रांति एक दिन आगे बढ़ जाएगी। यानी सूर्य का राशि परिवर्तन हर वर्ष 16 जनवरी को होगा और इसी दिन मकर संक्रांति मनाई जाएगी। हर साल सूर्य की राशि परिवर्तन में 20 मिनट का विलंब होता है। इस प्रकार तीन वर्षों में यह अंतर एक घंटे का हो जाता है। 72 वर्षों में 24 घंटे का फर्क आ जाता है। सूर्य व चंद्रमा ग्रह मार्गीय होते हैं। यह पीछे नहीं चलते हैं। इसलिए एक दिन बढ़ जाता है। इस लिहाज से 2008 में ही 72 वर्ष पूरे हो गए थे।

मकर संक्राति के दिन पौष शुक्ल पंचमी है। इस दिन शतभिषा नक्षत्र और चंद्रमा की स्थिति कुंभ राशि पर है। इसी दिन सूर्य धनु राशि का परित्याग कर सुबह 09 बजकर 13 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इस दिन अमृत नामक औदायिक योग बन रहा है। अमृत योग में मकर संक्रांति होने से इस दिन किया गया दान, स्नान और समस्त धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत पुण्य फलदायक रहेगा।

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