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ढाका में सड़क पर सेना और विपक्ष का बायकॉट… वोटिंग से पहले उबल रहा बांग्लादेश?

  ढाका

बांग्लादेश में 7 जनवरी को आम चुनाव होने वाले हैं. उससे पहले देश में काफी उथल-पुथल का दौर चल रहा है. स्थिति ये आ गई है कि विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को हिंसा करने से रोकने के लिए सेना को सड़कों पर उतरकर मोर्चा संभालना पड़ा है. कल रात राजधानी ढाका के गोलापबाग में बेनापोल एक्सप्रेस में आग लगने से कम से कम 5 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए. इस घटना के पीछे सरकार विरोधी तत्वों के होने की आशंका जताई जा रही है. वहीं, विपक्ष इसे सत्ताधारी दल की साजिश बता रहा है और संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में घटना की जांच की मांग की है. स्थानीय समाचार चैनलों के मुताबिक, ट्रेन में सवार कई यात्री भारतीय नागरिक थे. पुलिस को संदेह है कि यह आगजनी का मामला है, जिन्होंने पांच डिब्बों में आग लगा दी. 

बांग्लादेश में आम चुनाव और विपक्ष दलों का बहिष्कार

दरअसल, बांग्लादेश में 7 जनवरी को होने वाले आम चुनावों को लेकर सरगर्मी बढ़ गई है. भारत से चुनाव आयोग के  3 सदस्य 7 जनवरी को बांग्लादेश में होने वाले चुनावों का निरीक्षण करने के लिए ढाका पहुंच चुके हैं. एक ओर ​शेख ह​सीना लगातार चौथे कार्यकाल के लिए चुनावी मैदान में हैं, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल चुनावों का बहिष्कार कर रहे हैं. पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी-जमात-ए-इस्लामी (बीएनपी-जेईआई) और उसके सहयोगी दलों का की मांग है कि शेख हसीना पहले पीएम पद से इस्तीफा दें और एक तटस्थ या अंतरिम सरकार की देखरेख में आम चुनाव कराया जाए.

विपक्षी दलों का कहना है कि उन्हें इस बात का बिल्कुल भी भरोसा नहीं है की शेख हसीना के प्रधानमंत्री रहते निष्पक्ष चुनाव संभव हो पाएंगे. हसीना और उनकी पार्टी आवामी लीग ने विपक्षी दलों की इस मांग को ठुकरा दिया है. इसी बात को लेकर उन्होंने आम चुनावों के बहिष्कार करने का फैसला किया है. विपक्ष के इस फैसले के बाद शेख हसीना की जीत पक्की मानी जा रही है. बांग्लादेश के विपक्षी दलों ने चुनाव में भारत की दखलंदाजी का आरोप भी लगाया है. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता रुहुल कबीर रिजवी ने एक विदेशी समाचार एजेंसी से बातचीत में आम चुनावों को डमी चुनाव बताया. 

बांग्लादेश की विपक्षी पार्टियों की भारत से शिकायत क्यों?

उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, 'भारत शेख हसीना का समर्थन कर रहा है और बांग्लादेश के लोगों को अलग-थलग कर रहा है. भारत को किसी विशेष पार्टी नहीं बल्कि बांग्लादेश का समर्थन करना चाहिए. लेकिन भारत के नीति-नियंता यहां लोकतंत्र नहीं चाहते'. वहीं, भारत के विदेश मंत्रालय ने इसे बांग्लादेश का अंदरूनी मामला बताकर बीएनपी नेता के आरोपों पर जवाब देने से इनकार कर दिया. एमईए ने कहा, 'भारत चाहता है कि बांग्लादेश में चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हों'. खास बात है कि संयुक्त राज्य अमेरिका खुले तौर पर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी-जमात-ए-इस्लामी (बीएनपी-जेईआई) गठबंधन का समर्थन कर रहा है.

अमेरिका ने सत्ताधारी दल आवामी लीग को वीजा पाबंदी की धमकी दी है. वाशिंगटन का कहना है कि अगर देश में पारदर्शी तरीके से चुनाव संपन्न नहीं हुए, तो वह बांग्लादेशी अधिकारियों और पीएम शेख हसीना के करीबियों के वीजा पर बैन लगा देगा. बांग्लादेश में कुल 300 सीटें हैं और बहुमत का आंकड़ा 151 है. चूंकि विपक्ष ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया है, ऐसे में करीब 220 सीटों पर शेख हसीना की पार्टी या उनके समर्थक नेता ही आमने-सामने हैं. यहां बहुत संभव है कि जीतने और हारने वाला उम्मीदवार, शेख हसीना की आवामी लीग का हो या उसका समर्थन कर दे. इस तरह शेख हसीना का लगातार चौथी बार बांग्लादेश का प्रधानमंत्री बनने की पूरी संभावना नजर आ रही है.

बांग्लादेश के गृह मंत्री ने भारत को बताया अहम सहयोगी

बांग्लादेश के गृहमंत्री असदुज़मन खान ने गत 31 दिसंबर को एक समाचार एजेंसी से बातचीत में कहा था कि जब तक अवामी लीग सत्ता में है, तब तक बांग्लादेश किसी भी भारत विरोधी गतिविधि के लिए अपने क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं होने देगा. उन्होंने यह भी आश्वासन दिया की उनके देश में चीनी निवेश भारत के लिए चिंता का कारण नहीं होना चाहिए. पीएम शेख हसीना की सरकार के वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि भारत-बांग्लादेश संबंधों की तुलना किसी भी चीज से नहीं हो सकती, जो आने वाले दिनों में और मजबूत होगा. उन्होंने कहा था कि अवामी लीग सरकार 7 जनवरी को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के पक्ष में है और दावा किया कि मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने बहुमत हासिल न कर पाने के डर से चुनाव का बहिष्कार किया है.

भारत के लिए अहम क्यों हैं शेख हसीना और बांग्लादेश ?

चाहे आर्थिक हो, रणनीतिक या कूटनीतिक, हर लिहाज से बांग्लादेश, भारत के लिए काफी महत्व रखता है. भारत के लिए अपने उत्तर-पूर्वी राज्यों में सुरक्षा हितों को साधने में बांग्लादेश की जरूरत है. चूंकि चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत उत्तर-पूर्व में कई भारतीय क्षेत्रों पर अपना दावा ठोकता है, इसलिए बांग्लादेश इस क्षेत्र में भारत के लिए एक प्रतिरोध का काम करता है. भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों की बड़ी सीमा बांग्लादेश और म्यांमार से लगती है. असम सहित ये सभी राज्य भारत के बाकी हिस्सों से केवल 10-12 मील लंबे सिलीगुड़ी कॉरिडोर या चिकन नेक के माध्यम से जुड़े हुए हैं. शेख हसीना की अवामी लीग ने कभी उग्रवादग्रस्त रहे इन राज्यों के सभी प्रमुख भारत-विरोधी विद्रोही समूहों के नेताओं को भारत प्रत्यर्पित कर दिया है.

इसलिए, दुनिया के भारत के लिए, बांग्लादेश में कोई भी चुनावी बदलाव जो अवामी लीग को सत्ता से बेदखल करे, चिंता का कारण माना जा सकता है. बांग्लादेश के साथ भारत दुनिया की 5वीं सबसे लंबी सीमा साझा करता है. बांग्लादेश ने भारत को पूर्वोत्तर के राज्यों में माल परिवहन के लिए अपने क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति दी है. हाल के दिनों में, ढाका ने भारत को अपने चटगांव और मोंगला बंदरगाहों तक पहुंच प्राप्त करने की भी पेशकश की है, जिससे भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों की अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर मदद मिलेगी. शेख हसीना भारत समर्थक मानी जाती हैं. वहीं बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और उसके सहयोगी जमात-ए-इस्लामी को लेकर भारत यह दावा नहीं कर सकता. ऐसे में भारत नहीं चाहेगा कि बांग्लादेश में कोई ऐसी सरकार सत्ता में आए, जो उसके हितों को प्रभावित करे और इस क्षेत्र में चीनी मंसूबों का समर्थन बने.

 

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