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राहुल गांधी से प्रभावित हुईं, बैंकर से नेता बनीं, महुआ मोइत्रा का लोकसभा से एग्जिट होने तक कैसा रहा सफर

नई दिल्ली
तृणमूल कांग्रेस (TMC) नेता महुआ मोइत्रा को अपने 14 साल की राजनीतिक करियर यात्रा में उथल-पुथल का सामना करना पड़ा है। हाल ही में कैश-फॉर-क्वेरी मामले में संसद से नाष्कासित की गईं टीएमसी सांसद एक बैंकर रह चुकी हैं। वह कृष्णानगर लोकसभा सीट से पहली बार सांसद बनीं। एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट में उनके खिलाफ कार्रवाई की गई है। संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी ने उन्हें संसद से निष्कासित करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया, जिसे ध्वनि मत से पास कर दिया गया। अपने निष्कासन के जवाब में महुआ मोइत्रा कड़ी आलोचना की है। इसकी तुलना उन्होंने "कंगारू अदालत" से की है। उन्होंने सरकार पर विपक्ष को मजबूर करने के लिए संसदीय पैनल को हथियार बनाने का आरोप लगाया है।

एक नजर महुआ के अब तक के सफर पर
1974 में असम के कछार जिले में महुआ मोइत्रा का जन्म हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में हुई। हायर एजुकेशन के लिए वह संयुक्त राज्य अमेरिका गईं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत न्यूयॉर्क और लंदन में जेपी मॉर्गन चेज के साथ एक निवेश बैंकर के रूप में कही। वह राहुल गांधी की "आम आदमी का सिपाही" पहल से प्रेरित हुईं। 2009 में कांग्रेस की युवा शाखा में शामिल होने के लिए उन्होंने लंदन में अपना हाई-प्रोफाइल बैंकिंग करियर छोड़ दिया। एसका बाद कांग्रेस ने उन्हें पश्चिम बंगाल भेज दिया। यहां उन्होंने कांग्रेस नेता सुब्रत मुखर्जी के साथ मिलकर काम किया। वाम मोर्चा शासन के खिलाफ पश्चिम बंगाल में बदलाव की बयार के बीच महुआ मोइत्रा ने 2010 के कोलकाता नगर निगम चुनावों से कुछ दिन पहले टीएमसी का दामन थाम लिया। इस चुनाव में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी की जीत हुई।

2011 के विधानसभा चुनावों और 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी का टिकट नहीं मिलने के बावजूद महुआ मोइत्रा ने धैर्यपूर्वक इंतजार किया। 2016 के विधानसभा चुनावों में करीमपुर निर्वाचन क्षेत्र में जीत हासिल करते हुए चुनावी जीवन की शुरुआत की। हालांकि उन्हें राज्य सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया, लेकिन उनके शानदार भाषणों और बहस कौशल ने उन्हें राष्ट्रीय मीडिया में पार्टी का एक प्रमुख प्रवक्ता बना दिया। 2019 में उन्होंने कृष्णानगर से लोकसभा टिकट हासिल किया और शानदार जीत हासिल की। अपनी नौसिखिया स्टेटस के बावजूद संसद में महुआ मोइत्रा के जोशीले भाषणों ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में ला दिया। वह टेलीविजन बहसों में एक लोकप्रिय टीएमसी नेता बन गईं।

विवादों और पार्टी की आंतरिक लड़ाई ने कभी-कभी उनके उत्थान को बाधित कर दिया। अपने मन की बात कहने के लिए जानी जाने वाली महुआ मोइत्रा को अक्सर संगठनात्मक मामलों पर पार्टी के साथ मतभेदों का सामना करना पड़ता था। उन्हें ममता बनर्जी से सार्वजनिक तौर पर फटकार भी मिलती थी। पिछले दो वर्षों में महुआ मोइत्रा अक्सर विवादों में रहीं। उन्होंने पत्रकारों को "दो पैसे का पत्रकार" भी बताया था। इसके कारण स्थानीय बंगाली मीडिया ने लंबे समय तक उनका बहिष्कार किया। पिछले साल एक सम्मेलन के दौरान उन्होंने देवी काली को मांस खाने और शराब पीने वाली देवी करार दिया। उनके इस बयान से बंगाल में बड़ा विवाद खड़ा हो गया। कैश-फॉर-क्वेरी विवाद के बीच महुआ मोइत्रा ने कहा है कि उन्हें भाजपा सरकार को चुनौती देने के लिए धमकाया जा रहा है। उन्होंने बड़े जनादेश के साथ संसद में वापसी का वादा किया है। विपक्ष भी मोइत्रा के पीछे लामबंद हो गया है। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी उनके साथ खड़ी थीं। उन्होंने भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

 

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